धम्मपद ३२० , ३२१ , ३२२ अत्तदन्ता वठु
स्वयं को वश में करने के बारे में |
जब बुद्ध घोसितरम मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद खुद ने दिखाए धैर्य और सहन शक्ति के संधर्भ मे कहा जब उनको भाड़े के सिफायियों और लोगों से गाली गलोच हुवी थी , जो राजा उदेणा की तीन रानियों मे से एक ने भेजे थे |
एक समय , मंगदिया के पिता , बुद्ध के व्यक्तित्व और रूप से बहुत प्रभावित होकर , उसकी सुंदर बेटी के रिश्ते का प्रस्ताव सामने रखा |
वह भागते हुवे अपने निवास स्थान गया और अपने बीवी से कहा के पुत्री को अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनाये ताकि वे उस व्यक्ति से मिल सक |
जब वह उस स्थान पहुँचे तो बुद्ध वहा से चले गए थे | वहा सिर्फ बुध्द के पैरो के निशान थे | उसे देखकर उसकी बीवी ने कहा पैरो के निशान है जिसपे चक्र भी है | यह असामान्य व्यक्ति अपनी काम वासनावों पर विजय पा चुका होगा तो शादी नही कर सकता |
दरअसल वे इन चीजों को जानते थे क्योंकि वे ब्राह्मण जाति के थे | लेकिन फिर भी वे सारे पैरों के निशान देखते हुवे बुद्ध से मिले | लेकिन बुद्ध ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा के वह ऐसी चीज को पैर से भी स्पर्श नही करना चाहते जो मल मूत्र से भरी हो | बुद्ध बनने से पहले मारा की तीन अति सुंदर बेटियों ने भी मन भटकाने का प्रयास किया था लेकिन वे भी सफल नही रही | यह टिपण्णी सुनकर मंगदिया के माता पिता ने विचार किया और वे अनागामी बन गए | मंगदिया को बहुत अपमान अनुभव हुवा , और उसने भगवान बुद्ध को अपना शत्रु समझ बैठी और बदला लेने की ठानी |
बाद मे , वह राजा उदेणा की तीन मे से एक रानी बनी | जब मंगदिया ने सुना के भगवान बुद्ध कोसंबी नगर मे आये है | उसने कुछ नगर के लोग और नौकरों को भाड़े पर लिया गाली गलोच करने केलिए जब भी भगवान बुद्ध नगर मे भिक्षा मांगने आये | उन भाड़े के लोगों ने भगवान बुद्ध को गाली गलोच करते हुवे पिछा किया और कहा , चोर , मुर्ख , ऊंट , गधा , नरक मे जायेगा | उन गाली गलोच को सुनकर , भंते आनंद ने भगवान बुद्ध को वह नगर को छोड़कर दुसरे जगह जाने की प्रार्थना की | लेकिन बुद्ध ने मना किया और कहा , " दूसरे नगर मे भी हमपर गाली गलोच हो सकती है और यह व्यवहार्य नही है के हम गाली गलोच होने पर हर बार जगह बदलते रहे | यही उचित है की हम समस्या को वही निपटा दे जहा वह उत्पन्न हुवी है | मे युद्ध के हाथी के तरह हु , हाथी जो हर तरफ से आये बाणों को सहन करता है , मै भी धैर्य से गाली गलोच सहुँगा जो अनैतिक लोगों से हुवी है | "
तब बुद्ध ने कहा |
" जिस तरह हाथी युद्ध मे धनुष्य से निकला बान लगने पर भी अडिग रहता है , वैसे ही मे गाली गलोच सहन करूँगा , वास्तव मे जादा तर लोग नैतिकता हीन होते है | "
" सिर्फ प्रशिक्षित हाथी और घोड़ों को सभा में आने दिया जाता है , राजा सिर्फ प्रशिक्षित घोड़ों और हाथियों पर विराजमान होता है , कुलीन व्यक्तियों मे से शिक्षित लोग गाली गलोच को सहते है | "
" खच्चर , असली घोडा , सिंध के घोड़े , और विशाल हाथी कुलीन होते है जब वे प्रशिक्षित होते है , लेकिन जिन्होंने खुद को ( मग्गा होकर ) शिक्षित किया है वे सबसे जादा कुलीन होते है |
प्रवचन के आखिर में , जिन्होंने भगवान बुद्ध को गाली गलोच की थी , उनको खुदकी गलती का अहसास होने पर बुद्ध से उन भाड़े के लोगों ने क्षमा याचना की , कुछ को सोतापन्न फल मिला |
जब बुद्ध घोसितरम मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद खुद ने दिखाए धैर्य और सहन शक्ति के संधर्भ मे कहा जब उनको भाड़े के सिफायियों और लोगों से गाली गलोच हुवी थी , जो राजा उदेणा की तीन रानियों मे से एक ने भेजे थे |
एक समय , मंगदिया के पिता , बुद्ध के व्यक्तित्व और रूप से बहुत प्रभावित होकर , उसकी सुंदर बेटी के रिश्ते का प्रस्ताव सामने रखा |
वह भागते हुवे अपने निवास स्थान गया और अपने बीवी से कहा के पुत्री को अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनाये ताकि वे उस व्यक्ति से मिल सक |
जब वह उस स्थान पहुँचे तो बुद्ध वहा से चले गए थे | वहा सिर्फ बुध्द के पैरो के निशान थे | उसे देखकर उसकी बीवी ने कहा पैरो के निशान है जिसपे चक्र भी है | यह असामान्य व्यक्ति अपनी काम वासनावों पर विजय पा चुका होगा तो शादी नही कर सकता |
दरअसल वे इन चीजों को जानते थे क्योंकि वे ब्राह्मण जाति के थे | लेकिन फिर भी वे सारे पैरों के निशान देखते हुवे बुद्ध से मिले | लेकिन बुद्ध ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा के वह ऐसी चीज को पैर से भी स्पर्श नही करना चाहते जो मल मूत्र से भरी हो | बुद्ध बनने से पहले मारा की तीन अति सुंदर बेटियों ने भी मन भटकाने का प्रयास किया था लेकिन वे भी सफल नही रही | यह टिपण्णी सुनकर मंगदिया के माता पिता ने विचार किया और वे अनागामी बन गए | मंगदिया को बहुत अपमान अनुभव हुवा , और उसने भगवान बुद्ध को अपना शत्रु समझ बैठी और बदला लेने की ठानी |
बाद मे , वह राजा उदेणा की तीन मे से एक रानी बनी | जब मंगदिया ने सुना के भगवान बुद्ध कोसंबी नगर मे आये है | उसने कुछ नगर के लोग और नौकरों को भाड़े पर लिया गाली गलोच करने केलिए जब भी भगवान बुद्ध नगर मे भिक्षा मांगने आये | उन भाड़े के लोगों ने भगवान बुद्ध को गाली गलोच करते हुवे पिछा किया और कहा , चोर , मुर्ख , ऊंट , गधा , नरक मे जायेगा | उन गाली गलोच को सुनकर , भंते आनंद ने भगवान बुद्ध को वह नगर को छोड़कर दुसरे जगह जाने की प्रार्थना की | लेकिन बुद्ध ने मना किया और कहा , " दूसरे नगर मे भी हमपर गाली गलोच हो सकती है और यह व्यवहार्य नही है के हम गाली गलोच होने पर हर बार जगह बदलते रहे | यही उचित है की हम समस्या को वही निपटा दे जहा वह उत्पन्न हुवी है | मे युद्ध के हाथी के तरह हु , हाथी जो हर तरफ से आये बाणों को सहन करता है , मै भी धैर्य से गाली गलोच सहुँगा जो अनैतिक लोगों से हुवी है | "
तब बुद्ध ने कहा |
" जिस तरह हाथी युद्ध मे धनुष्य से निकला बान लगने पर भी अडिग रहता है , वैसे ही मे गाली गलोच सहन करूँगा , वास्तव मे जादा तर लोग नैतिकता हीन होते है | "
" सिर्फ प्रशिक्षित हाथी और घोड़ों को सभा में आने दिया जाता है , राजा सिर्फ प्रशिक्षित घोड़ों और हाथियों पर विराजमान होता है , कुलीन व्यक्तियों मे से शिक्षित लोग गाली गलोच को सहते है | "
" खच्चर , असली घोडा , सिंध के घोड़े , और विशाल हाथी कुलीन होते है जब वे प्रशिक्षित होते है , लेकिन जिन्होंने खुद को ( मग्गा होकर ) शिक्षित किया है वे सबसे जादा कुलीन होते है |
प्रवचन के आखिर में , जिन्होंने भगवान बुद्ध को गाली गलोच की थी , उनको खुदकी गलती का अहसास होने पर बुद्ध से उन भाड़े के लोगों ने क्षमा याचना की , कुछ को सोतापन्न फल मिला |