धम्मपद १३५ उपोसट्ठिका इत्थीनम वठु , धम्मपद ४०९ अन्नतराथेरा वठु

उन महिलावों की कहानी जो नैतिक उपदेशों का अवलोकन कर रही थी |

जब बुद्ध पुब्बरम मठ में ठहरे हुवे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद उन पाँचसो महिलावों के संदर्भ में कही |

एक समय पाँच सो महिलाये सावत्थी नगर से पुब्बरम मठ में उपोसथ शील प्रतिज्ञा रखने के लिए आयी | विशाखा जो मठ की प्रसिद्ध दान कर्ता थी , उसने उन महिलावों से पूछा के वह विश्राम किस कारण आयी है | उसको अनेक उम्र के महिला और बच्चियों से अनेक प्रकार के उत्तर मिले | जो जादा वयस्क महिला थी वह अगले जन्म में देव लोक से संपत्ति वैभव और महिमा पाना चाहती थी | मध्यम उम्र की औरते इसलिये आयी थी ताकि उन्हें उनके पति के उप पत्नी के साथ एक छत के नीचे नहीं रहना था | नयी विवाह हुवी जवान लड़कियाँ चाहती थी के उनका पहला अपत्य लड़का होना चाहिए , और बहुत जवान बच्चिया वहा आयी थी जो चाहती थी के उनका विवाह बहुत अच्छे लड़के से हो जो अच्छा पति साबित हो |

उन सब के जवाब सुनने के बाद विशाखा ने उन सब को बुद्ध के पास लायी | जब विशाखा ने बुद्ध को अलग उम्र की स्त्रियों का उत्तर भगवान बुद्ध को बताया तब बुद्ध ने कहा , " विशाखा , जन्म , वयस्क होना और मृत्यु हमेशा सजीवों में होते रहते है | क्योंकि हम जन्मे है , हम वयस्क और क्षय होने के अधीन है , अंततः मृत्यु को |  फिर भी वो संसार में अस्तित्व में रहने से मुक्ति का प्रयास नहीं करते , फिर भी संसार में रहने के लिए समय व्यतीत करते है | "

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जिस तरह चरवाह छड़ी से गायों को चरागाह में चलाता है , वैसे ही बुढ़ापा और मृत्यु सजीवों का जीवन चलाता है  | "



धम्मपद ४०९ अन्नतराथेरा वठु 

एक थेरा की कहानी | 

जब बुद्ध जेतवन मठ में रह रहे थे तब यह धम्मपद एक थेरा के संदर्भ में कही | 

एक दिन , सावत्थी नगर के एक ब्राह्मण ने अपना ऊपरी पोशाक बाहर सुखाने के लिए रखा | थेरा को वह पोशाक मिला जब वह वापस मठ जा रहा था | उसने सोचा के वह कपड़ा फेक दिया गया है और उसका कोई मालिक नहीं है , थेरा ने कपड़ा उठाया | ब्राह्मण खिड़की से बाहर देख रहा था जब थेरा कपड़ा उठा रहा है , वह ब्राह्मण थेरा पे गाली बरसाने लगा और आरोप लगाने लगा | " गंजे कही के , मेरा कपड़ा चुराता है | " थेरा ने तुरंत वह कपड़ा ब्राह्मण को लौटा दिया | 

वापस मठ में , थेरा ने वह घटना दूसरे भिक्खुवों को बतायी , और उन्होंने उसका मज़ाक उड़ाया फिर मज़ाक से पूछा के कपड़ा लंबा था या नाटा , फटा या बेहतर | इस प्रश्न पर थेरा ने कहा , " चाहे कपड़ा लंबा या नाटा , फटा या उमदा , मुझे फरक नहीं पड़ता | मे उसमे जरा भी आसक्त नहीं | " तब दूसरे भिक्खुवों ने बुद्ध को यह समाचार बताया के वह थेरा खुद को ऐसे ही अरहंत बता रहा है | उन सबको बुद्ध ने जवाब दिया , " भिक्खुवों ! थेरा सच कह रहा है , अरहंत कभी वह चीजें नहीं लेता जो उसे न दी गयी हो | "

तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 

" में उसे ब्राह्मण कहता हुं , जो , इस दुनिया से कुछ नहीं लेता जो उसे नहीं दिया हो , चाहे वह लंबा हो या नाटा , बड़ा या छोटा , अच्छा या बुरा  | "

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