धम्मपद २७३ , २७४ , २७५ , २७६ पंचसताभिक्खु वठु
पाँच सो भिक्खुवों की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पाँच सो भिक्खुवों के संदर्भ मे कहा |
पाँच सो भिक्खु , बुद्ध के साथ गाव तक पहुँचने के बाद , जेतवन मठ मे लौट गये | शाम को वे यात्रा के बारे मे बात करने लगे , खासकर ज़मीन के बनावट के बारे में , वह समतल थी या पहाड़ी , मट्टीमय थी या पत्थरी इत्यादि | बुध्द उनके बातचीत के दौरान आये और उनको बताया , " भिक्खुवों , जिस मार्ग की तुम बात कर रहे हो वह बाहरी है , भिक्खुवों ने केवल कुलीन लोगों के आर्य मार्ग के बारे चिंतन करना चाहिए और जो आर्य मग्गा का मार्ग है उसे पाने के लिए हर उचित संभव प्रयास करना चाहिए , वह उत्तम शांति ( निब्बान )अनुभव करने की तरफ जाता है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कही |
" अनेक पथों में , अष्टांग मार्ग सबसे कुलीन है , सत्यों में , चार आर्य सत्य सबसे कुलीन है , सर्व धर्मो में , आसक्ति विरहित होना ( निर्वाण ) सबसे श्रेयस्कर है , दो पैरो के सजीवों में , सारे देखे गए बुद्ध सबसे कुलीन है | "
" ये केवल एक मार्ग है , और दूसरा कोई मार्ग नहीं है शुद्ध दृष्टि पाने के लिए , इस मार्ग का अनुसरण करो , यह मारा को हैरान कर देता है | "
" इस मार्ग का अनुसरण करके , तुम दुखों का नाश करोगे , जिस तरह मुझे इस मार्ग का पता है जो नैतिक अशुद्धियों को मिटाता है , मैंने तुम्हें मार्ग दिखाया है | "
" तुम खुद ने प्रयास करना चाहिए , तथागत ( बुद्ध ) केवल मार्ग दिख ला सकते है | जो समता और अंत दृष्टि साधना / विपस्सना का अभ्यास करते है , वे मारा के बंधन से मुक्त होते है | "
उपदेश के अंत मे वे पाँच सो भिक्खु अरहंत बन गए |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पाँच सो भिक्खुवों के संदर्भ मे कहा |
पाँच सो भिक्खु , बुद्ध के साथ गाव तक पहुँचने के बाद , जेतवन मठ मे लौट गये | शाम को वे यात्रा के बारे मे बात करने लगे , खासकर ज़मीन के बनावट के बारे में , वह समतल थी या पहाड़ी , मट्टीमय थी या पत्थरी इत्यादि | बुध्द उनके बातचीत के दौरान आये और उनको बताया , " भिक्खुवों , जिस मार्ग की तुम बात कर रहे हो वह बाहरी है , भिक्खुवों ने केवल कुलीन लोगों के आर्य मार्ग के बारे चिंतन करना चाहिए और जो आर्य मग्गा का मार्ग है उसे पाने के लिए हर उचित संभव प्रयास करना चाहिए , वह उत्तम शांति ( निब्बान )अनुभव करने की तरफ जाता है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कही |
" अनेक पथों में , अष्टांग मार्ग सबसे कुलीन है , सत्यों में , चार आर्य सत्य सबसे कुलीन है , सर्व धर्मो में , आसक्ति विरहित होना ( निर्वाण ) सबसे श्रेयस्कर है , दो पैरो के सजीवों में , सारे देखे गए बुद्ध सबसे कुलीन है | "
" ये केवल एक मार्ग है , और दूसरा कोई मार्ग नहीं है शुद्ध दृष्टि पाने के लिए , इस मार्ग का अनुसरण करो , यह मारा को हैरान कर देता है | "
" इस मार्ग का अनुसरण करके , तुम दुखों का नाश करोगे , जिस तरह मुझे इस मार्ग का पता है जो नैतिक अशुद्धियों को मिटाता है , मैंने तुम्हें मार्ग दिखाया है | "
" तुम खुद ने प्रयास करना चाहिए , तथागत ( बुद्ध ) केवल मार्ग दिख ला सकते है | जो समता और अंत दृष्टि साधना / विपस्सना का अभ्यास करते है , वे मारा के बंधन से मुक्त होते है | "
उपदेश के अंत मे वे पाँच सो भिक्खु अरहंत बन गए |