धम्मपद ३५६ , ३५७ , ३५८ , ३५९ अंकुर वठु

देव अंकुर की कहानी | 

जब बुद्ध तवतीम्स जगत को भेट दे रहे थे तब बुद्ध ने यह धम्मपद देव अंकुर के संदर्भ मे कहा | 

बुद्ध ने तवतीम्स जगत को भेट दी ताकी वे देव संतुसित के लिए अभिधम्म की व्याख्या कर सके , जो उनकी माँ हुवा करती थी | उस समय मे तवतीम्स जगत मे इंदक नाम का एक देव था | इंदक जब पिछले जन्म मे आदमी था उसने थेरा अनुरुद्ध को भिक्षा मे खाना दिया था | बुद्ध के समय मे उसने यह अच्छा काम किया इसलिये उसका जन्म तवतीम्स जगत मे हुवा और उस जगत के सारे ऐश्वर्य का उपभोग करने को उसको मिल रहा था | उसी समय वहा अंकुर नाम का एक देव भी रहा करता था जिसने दान धर्म मे बहुत अर्पण किया था , असल मे देव इंदक से कही जादा | लेकिन उसने जो दान धर्म किया था वह किसी भी बुद्ध के शिक्षा के न रहते किया था | इसलिये उसके बहुत अधिक मात्रा मे दान करने से भी वह इंदक से कम मात्रा मे सुख और ऐशर्य भोग रहा था | तब बुद्ध को अंकुर ने इसका कारण पूछा | उसको बुद्ध ने जवाब दिया , " ओ देव ! जब भी दान धर्म करना हो तब तुमने देखना चाहिए की तुम किसे दान दे रहे हो | दान पुण्य करना बीज की तरह काम करता है | जो बीज उपजावु जमीन मे डाले है उससे मजबुत , जोरदार पौदा या पेड़ आएगा जो बहुत अधिक फल देंगे , लेकिन तुमने बीज अनुपजावु जमीन मे डाले थे इसलिये कम फल मिले है | 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहे | 
" मातम उस क्षेत्र की हानि करती है , हवस हर प्राणी को बिगाड़ देती है , इसलिये जो काम वासना से मुक्त है उसे दान देने से जादा हित होता है  | "

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