बुद्ध का मध्यम मार्ग
बहुत सालों तक बुद्ध होने से पहले सिद्धार्थ किसी साधू की तरह रहे । भूखे रहकर समय बिताया । वे किसी रहने की जगह बिना , और बिना माथे पे छत के रह रहे थे । जब तक उनका सुंदर धष्ट पुष्ट शरीर एक काले , बारीक़ और करीब करीब मरने के नजदिग आ गया ।
एक दिन बुद्ध बोधी वृक्ष के नीचे नदी किनारे ध्यान कर रहे थे , नदी के उस पार एक मछुवारा अपने बेटे को संतूर वाद्य की लय बजाना सिखा रहा था ।
मछुवारेने अपने बेटे से कहा " अगर तुमने संतूर की तार बहुत ज्यादा कसी तो वह टूट जाएगी , और बहुत जादा ढीली कसी तो बज ही नहीं पायेगा । अगर तुमने तार सही तरह से योग्य मात्रा में तान कर लगाया तो वह बहुत मधुर संगीत बजा सकेगा । "
मछुवारे का यह कहना सुनकर सिद्धार्थ के समझ में आया के जीवन को सुखी और सुंदर बनाने के लिए जीवन के तार नही बहुत कसे हुवे और नही बहुत ढीली होने चाहिए । अलग शब्दों में नहीं बहुत अधिक अमिर या बहुत गरीब , नही अधिक भूखा या बहुत भरे पेट रहना जीवन को ठीक है । जीवन को सुखी बनाने के लिए मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए ।
एक दिन बुद्ध बोधी वृक्ष के नीचे नदी किनारे ध्यान कर रहे थे , नदी के उस पार एक मछुवारा अपने बेटे को संतूर वाद्य की लय बजाना सिखा रहा था ।
मछुवारेने अपने बेटे से कहा " अगर तुमने संतूर की तार बहुत ज्यादा कसी तो वह टूट जाएगी , और बहुत जादा ढीली कसी तो बज ही नहीं पायेगा । अगर तुमने तार सही तरह से योग्य मात्रा में तान कर लगाया तो वह बहुत मधुर संगीत बजा सकेगा । "
मछुवारे का यह कहना सुनकर सिद्धार्थ के समझ में आया के जीवन को सुखी और सुंदर बनाने के लिए जीवन के तार नही बहुत कसे हुवे और नही बहुत ढीली होने चाहिए । अलग शब्दों में नहीं बहुत अधिक अमिर या बहुत गरीब , नही अधिक भूखा या बहुत भरे पेट रहना जीवन को ठीक है । जीवन को सुखी बनाने के लिए मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए ।