धम्मपद ४८ पतिपूजिका कुमारी वठु
पतिपूजिका कुमारी की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ में ठहरे हुवे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पतिपूजिका कुमारी के संदर्भ मे कहा |
पतिपूजिका कुमारी सावत्थी मे रहने वाली महिला थी | वह सोलह साल के उम्र मे ब्याही थी और उसके चार बेटे थे | वह धार्मिक और उदार महिला थी , जिसे भिक्खुवों के लिए खाना और ज़रुरी सामान दान करना पसंद था | वह अक्सर मठ जाती और परिसर साफ करती , बर्तन और मट्टी के घड़े पानी से भरती और दूसरे काम भी करती |
पतिपूजिका को जातिसार ज्ञान अवगत था जिससे उसको उसके एक पिछले जन्म का अस्तित्व याद आया जब वह मालभारी की कही पत्नियों में से एक थी , देव लोक के तवतीम्स जगत में | उसको यह भी याद आया के वह वहा मर गयी थी जब वे सारे बगीचे मे मजे कर रहे थे , फुल चुनते और तोड़ते समय | तब वह जब भी भिक्खुवों को भिक्षा देती या कोई भी अच्छा काम करती , वह प्रार्थना करती के वह फिर से तवतीम्स जगत मे पैदा होकर मालभारी की पत्नी बने , जो उसका पिछला पति था |
एक दिन , पतिपूजिका बीमार पड़ी और उसी शाम मर गयी | जिस तरह उसने उत्साह से मनोकामना की थी , वह तवतीम्स जगत मे पैदा हुवी और मालभारी की पत्नी बनी | पृथ्वी के सौ साल तवतीम्स पर केवल एक दिन के बराबर है | मालभारी और उसकी बीविया बगीचे मे ही थे और उनको पतिपूजिका की याद भी नही सतायी | जब वह उन सबसे शामिल हुवी , मालभारी ने पुछा के वह पुरे सुबह कहा थी | तब उसने कहा के वह मर गयी थी और उसका जन्म पृथ्वी पर हुवा था , उसका विवाह एक आदमी के साथ हुवा था और उसे चार बेटे भी हुवे , वह वहा मर गयी और फिरसे तवतीम्स जगत मे पैदा हुवी |
जब भिक्खुवों को पता चला के पतिपूजिका मर गयी है तो वे शोक से व्यथित हुवे | वे बुद्ध के पास गए और बताया के पतिपूजिका जो उन्हें सुबह भिक्षा मे अन्न दिया करती थी , वह शाम मे मर गयी | उनको बुद्ध ने कहा सजीवों का जीवन बहुत संक्षिप्त है , और वे काम वासनावों में तृप्त होने से पहले ही मृत्यु की जपेट मे आ जाते है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जिस तरह कोई फुल चुनता और तोड़ता है , मनुष्य जिसका मन काम वासनावों से लिप्त है और उससे अतृप्त है , वह मृत्यु से संचालित होता है | "
जब बुद्ध जेतवन मठ में ठहरे हुवे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पतिपूजिका कुमारी के संदर्भ मे कहा |
पतिपूजिका कुमारी सावत्थी मे रहने वाली महिला थी | वह सोलह साल के उम्र मे ब्याही थी और उसके चार बेटे थे | वह धार्मिक और उदार महिला थी , जिसे भिक्खुवों के लिए खाना और ज़रुरी सामान दान करना पसंद था | वह अक्सर मठ जाती और परिसर साफ करती , बर्तन और मट्टी के घड़े पानी से भरती और दूसरे काम भी करती |
पतिपूजिका को जातिसार ज्ञान अवगत था जिससे उसको उसके एक पिछले जन्म का अस्तित्व याद आया जब वह मालभारी की कही पत्नियों में से एक थी , देव लोक के तवतीम्स जगत में | उसको यह भी याद आया के वह वहा मर गयी थी जब वे सारे बगीचे मे मजे कर रहे थे , फुल चुनते और तोड़ते समय | तब वह जब भी भिक्खुवों को भिक्षा देती या कोई भी अच्छा काम करती , वह प्रार्थना करती के वह फिर से तवतीम्स जगत मे पैदा होकर मालभारी की पत्नी बने , जो उसका पिछला पति था |
एक दिन , पतिपूजिका बीमार पड़ी और उसी शाम मर गयी | जिस तरह उसने उत्साह से मनोकामना की थी , वह तवतीम्स जगत मे पैदा हुवी और मालभारी की पत्नी बनी | पृथ्वी के सौ साल तवतीम्स पर केवल एक दिन के बराबर है | मालभारी और उसकी बीविया बगीचे मे ही थे और उनको पतिपूजिका की याद भी नही सतायी | जब वह उन सबसे शामिल हुवी , मालभारी ने पुछा के वह पुरे सुबह कहा थी | तब उसने कहा के वह मर गयी थी और उसका जन्म पृथ्वी पर हुवा था , उसका विवाह एक आदमी के साथ हुवा था और उसे चार बेटे भी हुवे , वह वहा मर गयी और फिरसे तवतीम्स जगत मे पैदा हुवी |
जब भिक्खुवों को पता चला के पतिपूजिका मर गयी है तो वे शोक से व्यथित हुवे | वे बुद्ध के पास गए और बताया के पतिपूजिका जो उन्हें सुबह भिक्षा मे अन्न दिया करती थी , वह शाम मे मर गयी | उनको बुद्ध ने कहा सजीवों का जीवन बहुत संक्षिप्त है , और वे काम वासनावों में तृप्त होने से पहले ही मृत्यु की जपेट मे आ जाते है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जिस तरह कोई फुल चुनता और तोड़ता है , मनुष्य जिसका मन काम वासनावों से लिप्त है और उससे अतृप्त है , वह मृत्यु से संचालित होता है | "