धम्मपद २४६ , २४७ , २४८ पंच उपासक वठु , धम्मपद २१४ लिच्चवि वठु
पाँच गृहस्थ अनुयायियों की कहानी |
जेतवन मठ मे बुद्ध रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पांच गृहस्थ अनुयायियों के संदर्भ मे कही |
एक समय पांच गृहस्थ जेतवन मठ मे विश्राम कर रहे थे | उनमे से ज़्यादातर पंचशीलों मे से एक या दो का ही पालन कर रहे थे | उनमे से हर कोई बता रहा था शील जो वे पालन कर रहे थे वह दूसरों के मुकाबले जादा कठिन है और इसपर झगड़ पड़ते थे | आखिरकार इस मसले को लेकर वे बुद्ध के यहा आये | उनको बुद्ध ने कहा , " तुम सबने कोई एक शील को आसान और महत्त्वहीन समझने की गलती नही करनी चाहिए | इनमें से हर शील का पालन करना जरुरी है | किसी भी शील के पालन मे सहजता से न सोचों | उनमें से किसी का भी पालन करना आसान काम नही है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो जीवन को बर्बाद करता है , झूठ बोलता है , जो नही दिया होता वह लेता है , व्यभिचार करता है और नशीली पदार्थों का सेवन करता है , इसी जीवन मे खुद की जड़ों को खोदता है | "
" जान लो , ये इंसान ! खुद पे काबू न होना बुराई है ; लालच और बुरी भावना को अपनी लंबी दुर्गती बनने न दो | "
उपदेश के अंत में उन पांच गृहस्थ अनुयायियों को सोतापन्न फल मिला |
धम्मपद २१४ लिच्चवि वठु
लिच्चवि के राजकुमार की कहानी |
जब बुद्ध वैशाली नगर के कुटगर मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने लिच्चवि के राजकुमार के संदर्भ मे कहा |
एक त्योहार पर , बुद्ध वैशाली गाव मे आये , भिक्खुवों के साथ | मार्ग पर उन्हें कुछ लिच्चवि के राजकुमार मिले , जो बाहर अच्छे कपड़े पहनकर आये थे | बुद्ध ने उनको पुरे राजसी ठाट मे देखकर भिक्खुवों से कहा , " भिक्खुवों , जो तवतीम्सा स्वर्ग नही गए उन्होंने इन लिच्चवि के राजकुमारों को गौर से देखना चाहिए | " तब राजकुमार मजे करने बगीचे जा रहे थे | वहा , वे एक वैश्या के लिए एक दूसरे से विवाद करने लगे और जल्द ही लढ पड़े | उसके नतीजे उनमें से कुछ को घर ले जाना पड़ा , रक्त स्राव के साथ | जब बुद्ध भिक्खुवों के साथ खाना खाकर नगर से लौट रहे थे , उन्होंने जख़्मी राजकुमारों को घर ले जाते हुवे देखा |
ऊपर हुवे घटना के बारे मे भिक्खुवों ने कहा , " स्त्री की चाहत में , लिच्चवि के राजकुमार बिगड़ गए है | " उनको बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों , दुःख और भय विषय वासनावों में आनंद मानने से और उसमे आसक्त होने पर उत्पन्न होते है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
जेतवन मठ मे बुद्ध रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पांच गृहस्थ अनुयायियों के संदर्भ मे कही |
एक समय पांच गृहस्थ जेतवन मठ मे विश्राम कर रहे थे | उनमे से ज़्यादातर पंचशीलों मे से एक या दो का ही पालन कर रहे थे | उनमे से हर कोई बता रहा था शील जो वे पालन कर रहे थे वह दूसरों के मुकाबले जादा कठिन है और इसपर झगड़ पड़ते थे | आखिरकार इस मसले को लेकर वे बुद्ध के यहा आये | उनको बुद्ध ने कहा , " तुम सबने कोई एक शील को आसान और महत्त्वहीन समझने की गलती नही करनी चाहिए | इनमें से हर शील का पालन करना जरुरी है | किसी भी शील के पालन मे सहजता से न सोचों | उनमें से किसी का भी पालन करना आसान काम नही है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो जीवन को बर्बाद करता है , झूठ बोलता है , जो नही दिया होता वह लेता है , व्यभिचार करता है और नशीली पदार्थों का सेवन करता है , इसी जीवन मे खुद की जड़ों को खोदता है | "
" जान लो , ये इंसान ! खुद पे काबू न होना बुराई है ; लालच और बुरी भावना को अपनी लंबी दुर्गती बनने न दो | "
उपदेश के अंत में उन पांच गृहस्थ अनुयायियों को सोतापन्न फल मिला |
धम्मपद २१४ लिच्चवि वठु
लिच्चवि के राजकुमार की कहानी |
जब बुद्ध वैशाली नगर के कुटगर मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने लिच्चवि के राजकुमार के संदर्भ मे कहा |
एक त्योहार पर , बुद्ध वैशाली गाव मे आये , भिक्खुवों के साथ | मार्ग पर उन्हें कुछ लिच्चवि के राजकुमार मिले , जो बाहर अच्छे कपड़े पहनकर आये थे | बुद्ध ने उनको पुरे राजसी ठाट मे देखकर भिक्खुवों से कहा , " भिक्खुवों , जो तवतीम्सा स्वर्ग नही गए उन्होंने इन लिच्चवि के राजकुमारों को गौर से देखना चाहिए | " तब राजकुमार मजे करने बगीचे जा रहे थे | वहा , वे एक वैश्या के लिए एक दूसरे से विवाद करने लगे और जल्द ही लढ पड़े | उसके नतीजे उनमें से कुछ को घर ले जाना पड़ा , रक्त स्राव के साथ | जब बुद्ध भिक्खुवों के साथ खाना खाकर नगर से लौट रहे थे , उन्होंने जख़्मी राजकुमारों को घर ले जाते हुवे देखा |
ऊपर हुवे घटना के बारे मे भिक्खुवों ने कहा , " स्त्री की चाहत में , लिच्चवि के राजकुमार बिगड़ गए है | " उनको बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों , दुःख और भय विषय वासनावों में आनंद मानने से और उसमे आसक्त होने पर उत्पन्न होते है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" विषय वसानवों से आसक्ति खिन्नता उत्पन्न करती है , आसक्ति भय उत्पन्न करती है | जो आसक्ति से मुक्त है वहा खिन्नता नही है , वहा उसके लिए कैसा भय हो सकता है | "