धम्मपद ३८८ अन्नताराब्राह्मण पब्बजित वठु , धम्मपद २८२ पोथिलाथेरा वठु

एक वैरागी ब्राह्मण की कहानी | 

जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने एक ब्राह्मण अनुयायी के संदर्भ के कहा | 

एक समय सावत्थी नगर मे एक ब्राह्मण था | एक दिन ऐसा हुवा के बुद्ध ने कुछ भिक्खुवों को पब्बजित कहा तब ब्राह्मण ने कहा के उसे भी पब्बजित कहना चाहिए क्योंकि वह भी बुद्ध का अनुयायी है | तब वह बुद्ध के पास गया और पूछा के उसे पब्बजित क्यों नही कहा जाता | बुद्ध ने उसे इस प्रकार से जवाब दिया , " केवल अनुयायी होने से कोई पब्बजित नही हो जाता , पब्बजित मे और भी गुण होने आवश्यक है | "

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" उसने बुराई को त्याग दिया है इसलिए उसे ब्राह्मण कहते है , वह शांति से रहता है इसलिए उसे समन कहते है , और उसने अपने अशुद्धियों को निकाल दिया है इसलिए उसको पब्बजिता कहते है  | "

उपदेश के अंत मे ब्राह्मण सोतपन्न बना | 




धम्मपद २८२ पोथिलाथेरा वठु 

वास्तव में , बुद्धिमता ध्यान करने से विकसित होती है , ध्यान न करने से बुद्धिमत्ता समाप्त होती है | इस बुद्धिमत्ता पाने और खोने के दो नियमों को जानकर , खुद ने प्रयास करना चाहिए ताकी बुद्धिमत्ता बढ़ सके | 

थेरा पोथिला की कहानी | 

जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा पोथिला के संदर्भ मे कहा | 

पोथिला जेष्ठ भिक्खु था और पिटिका अच्छे से जानता था और वह पाँच सो भिक्खुवों को धम्म सिखा रहा था | क्योंकि वह पिटिका जानता था , वह बहुत अभिमानी भी था | बुद्ध को उसकी कमज़ोरी पता थी और वे उसको सुधारना चाहते थे और उसे सही राह पर लाना चाहते थे | इसलिये , जब भी पोथिला आदर व्यक्त करने आता , बुद्ध उसे कहते ' अनुपयोगी पोथिला ' | जब पोथिला ने यह टिप्पणी सुनी , उसने बुद्ध के शब्दों पर विचार किया और उसे अहसास हुवा के बुध्द ने वह शब्द इसलिये इस्तेमाल किये क्योंकि उसने गंभीरता से विप्पसना साधना के अभ्यास मे मेहनत नही की थी और उसे किसी भी मग्गा फल का लाभ नही हुवा था , न ही मानसिक रूप से किसी भी jhana तक पहुँच पाया था | 

तब पोथिला ने बिना किसी को बताये हुवे जेतवन मठ से २० योजना दूर बसे मठ की तरफ निकल पड़ा | उस मठ मे तिस भिक्खु थे | पहले , वह सबसे जेष्ठ भिक्खु के पास गया और विनम्रता से उसका उस्ताद बनने को कहा , लेकिन थेरा ने , उसे विनयी करने के लिए , उसके बाद आने वाले जेष्ठ भिक्खु के पास जाने को कहा , उसने भी अगले वाले के पास भेजा | इस प्रकार उसे दूसरे भिक्खुवों के पास भेजा जाता रहा जबतक के वह सात वर्ष आयु के श्रामणेर बालक के यहा पहुँचा | उस बालक श्रामणेर ने उसे अपना शिष्य स्वीकार तभी किया जबतक उसने यह जांच लिया के वह उसके निर्देशों का विनय पूर्वक पालन करेगा | जैसे श्रामणेर ने निर्देश दिए , थेरा पोथिला ने अपना मन अपने शरीर के असली स्वभाव और चेतनावों पर दृढ़ता से रखा , वह ध्यान करने मे बहुत उत्साही और चौकस था | 

बुद्ध ने अपने दृष्टी मे पोथिला को देखा और अपने असाधारण शक्ति से पोथिला को आभास कराया के वह वहा मौजूद है , उसे उत्कटता और दृढ़ता से अभ्यास करने को प्रोत्साहित किया | 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" वास्तव में , बुद्धिमता ध्यान करने से विकसित होती है , ध्यान न करने से बुद्धिमत्ता  क्षीण  होती है  | इस बुद्धिमत्ता पाने और खोने के दो नियमों को जानकर , खुद ने प्रयास करना चाहिए ताकी बुद्धिमत्ता बढ़ सके  | "


उपदेश के अंत मे पोथिला अरहंत बना | 

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