धम्मपद १७१ अभयराजकुमार वठु , धम्मपद ८१ लकुण्डकभद्दीयथेरा वठु
राजकुमार अभय की कहानी |
वेळुवन मठ मे जब भगवान बुद्ध रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद राजकुमार अभय के संदर्भ मे कहा |
एक समय , राजकुमार अभय राज्य के सीमावर्ती भाग से राजद्रोहीयों को दडप कर विजयी होकर लौटा | राजा बिम्बिसार उसके बहुत प्रभावित था इसलिए उसने सात दिन तक , राजकुमार अभय को राज्यकर्ता को मिलने वाला सम्मान और महिमा दियी , इसके साथ नृत्य करने वाली लड़की मन बहलाने के लिए | सातवें दिन जब नाचने वाली लड़की बगीचे मे उसे और उसके साथियों का मनोरंजन कर रही थी , उसे बड़ा दिल का दौरा पड़ा , वह गिरकर उसी स्थान पर गिर गयी | राजकुमार अचंभित हुवा और बहुत तनाव मे था | दुखी होकर वह बुद्ध के पास गया हौसला पाने केलिए | उसे बुद्ध ने कहा , " ओ राजकुमार , तुमने जितने आसु पुनर्जन्मों तक बहाये है उसे माप नही सकते | इस तत्वों ( स्कंद ) के दुनिया की यह जगह है जहा मुर्ख तड़पते है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" आवो , इस दुनिया को देखो ( पांच स्कंद ) , जो एक सजे हुवे राजसी वाहन की तरह है | मुर्ख इस स्कंद रूपी कीचड़ मे तड़पते है , लेकिन बुद्धिमान इसमे आसक्ति नही रखता | "
धम्मपद ८१ लकुण्डकभद्दीयथेरा वठु
थेरा लकुण्डकभद्दीय थेरा की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा भद्दीय के संधर्भ में कहा |
भद्दीय एक भिक्खु था जो जेतवन मठ मे रहता था | वह कद से कम था इसलिए दूसरे भिक्खु उसे लकुण्डक ( नाटा ) नाम से जानते थे | लकुण्डक भद्दीय स्वभाव से अच्छा था , यहा तक के कम उम्र के भिक्खु भी उसका नाक या कान पकड़कर उसे परेशान करते थे , या उसके सर पर थपथपाकर | अक्सर मज़ाक मे कहते , " चाचा आप कैसे हो ? क्या तुम खुश हो , या यहा भिक्खु रहकर दुःखी हो ? " , इत्यादि | लकुण्डक भद्दीय ने कभी गुस्से से प्रतिकार नही किया , या नही गाली दी | असल मे वह दिल मे भी उनसे गुस्सा नही करता था |
जब लकुण्डक भद्दीय के सब्र के बारे मे पूछा गया , बुद्ध ने कहा , " अरहंत कभी अपना आपा नही खोते , उसे रूखे से बोलने की इच्छा या दूसरों के बारे मे बुरा सोचने की इच्छा नही है | वह मजबूत चट्टानों की पर्वत की तरह है , जैसे ठोस पत्थर अविचल रहते है , उसी तरह , अरहंत घृणा और प्रशंसा मे अविचलित रहते है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
वेळुवन मठ मे जब भगवान बुद्ध रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद राजकुमार अभय के संदर्भ मे कहा |
एक समय , राजकुमार अभय राज्य के सीमावर्ती भाग से राजद्रोहीयों को दडप कर विजयी होकर लौटा | राजा बिम्बिसार उसके बहुत प्रभावित था इसलिए उसने सात दिन तक , राजकुमार अभय को राज्यकर्ता को मिलने वाला सम्मान और महिमा दियी , इसके साथ नृत्य करने वाली लड़की मन बहलाने के लिए | सातवें दिन जब नाचने वाली लड़की बगीचे मे उसे और उसके साथियों का मनोरंजन कर रही थी , उसे बड़ा दिल का दौरा पड़ा , वह गिरकर उसी स्थान पर गिर गयी | राजकुमार अचंभित हुवा और बहुत तनाव मे था | दुखी होकर वह बुद्ध के पास गया हौसला पाने केलिए | उसे बुद्ध ने कहा , " ओ राजकुमार , तुमने जितने आसु पुनर्जन्मों तक बहाये है उसे माप नही सकते | इस तत्वों ( स्कंद ) के दुनिया की यह जगह है जहा मुर्ख तड़पते है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" आवो , इस दुनिया को देखो ( पांच स्कंद ) , जो एक सजे हुवे राजसी वाहन की तरह है | मुर्ख इस स्कंद रूपी कीचड़ मे तड़पते है , लेकिन बुद्धिमान इसमे आसक्ति नही रखता | "
धम्मपद ८१ लकुण्डकभद्दीयथेरा वठु
थेरा लकुण्डकभद्दीय थेरा की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा भद्दीय के संधर्भ में कहा |
भद्दीय एक भिक्खु था जो जेतवन मठ मे रहता था | वह कद से कम था इसलिए दूसरे भिक्खु उसे लकुण्डक ( नाटा ) नाम से जानते थे | लकुण्डक भद्दीय स्वभाव से अच्छा था , यहा तक के कम उम्र के भिक्खु भी उसका नाक या कान पकड़कर उसे परेशान करते थे , या उसके सर पर थपथपाकर | अक्सर मज़ाक मे कहते , " चाचा आप कैसे हो ? क्या तुम खुश हो , या यहा भिक्खु रहकर दुःखी हो ? " , इत्यादि | लकुण्डक भद्दीय ने कभी गुस्से से प्रतिकार नही किया , या नही गाली दी | असल मे वह दिल मे भी उनसे गुस्सा नही करता था |
जब लकुण्डक भद्दीय के सब्र के बारे मे पूछा गया , बुद्ध ने कहा , " अरहंत कभी अपना आपा नही खोते , उसे रूखे से बोलने की इच्छा या दूसरों के बारे मे बुरा सोचने की इच्छा नही है | वह मजबूत चट्टानों की पर्वत की तरह है , जैसे ठोस पत्थर अविचल रहते है , उसी तरह , अरहंत घृणा और प्रशंसा मे अविचलित रहते है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जैसे चट्टानों का पर्वत हवा से नही हिलता , वैसे ही , बुद्धिमान तारीफ या इल्जाम से विचलित नही होते | "