धम्मपद २०३ एक उपासक वठु , धम्मपद ३४५ , ३४६ बंधनगरा वठु

एक ग्रहस्त शिष्य की कहानी |

अलवी गाव मे बुद्ध ने यह धम्मपद एक गृहस्थ शिष्य के बारे मे कहा |

एक दिन , बुद्ध ने देखा के अलवी गाव का एक गरीब आदमी सोतापन्न बन पायेगा | इसलिए बुद्ध उस गाव गये , जो सावत्थी नगर से ३० योजना दूर था | उस दिन उस गरीब का एक बैल खो गया | उसे बैल को खोजते रहना पड़ा | उसी समय बुद्ध और उनके शिष्यों को भोजन उस गांव के एक घर मे दिया जा रहा था | खाना खाने के बाद उस गाव के लोग बुद्ध का प्रवचन सुनने के लिए तैयार बैठे थे , लेकिन बुद्ध उस जवान आदमी की राह देखी | आखिरकार उस आदमी को उसका बैल मिल गया , वह आदमी भागते हुवे उस घर आया जहा बुद्ध रुके थे | वह थका और बहुत भुखा था , तब बुद्ध ने दानकर्तावों को निर्देश दिया के उसे खाना परोसा जाना चाहिए | जब उस आदमी का खाना पूरा हुवा तभी बुद्ध ने प्रवचन शुरू किया , धम्म को क्रम क्रम से समझाते हुवे चार आर्य सत्य को बताया |  गृहस्थ शिष्य इससे प्रवचन के आखिर में सोतापन्न हुवे | 

उसके बाद बुद्ध और इनके शिष्य जेतवन मठ लौट गए | राह से गुजरते हुवे भिक्खु चर्चा कर रहे थे के भगवान बुद्ध ने प्रवचन शुरू नही किया जब तक के उस गरीब आदमी ने खाना नही खाया | उनके वार्तालाप को सुनकर भगवान बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों ! जो आप लोगो ने कहा वह सही है , पर आप लोग यह नहीं जानते के मे यहाँ ३० योजना पार करके आया , सिर्फ इसलिये के मुझे पता था के वह आदमी सोतापन्न बनने मे समर्थ है  | वह बहुत भूख से व्याकुल था , भूख से पीड़ा होने से उसे धम्म ठीक से समझने में परेशानी हो सकती थी  | वह आदमी सुबह से खोया हुवा बैल ढूंढने मे फिर रहा था , और बहुत थका हुवा और भूखा था  | भिक्खुवों आखिरकार भूख के अलावा ऎसा कोई रोग नहीं है जो सहन करने के परे है  | "

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" भुख सब से बड़ा रोग है , स्कंद ( पंचेंद्रिय  की  क्रिया  ) सबसे बड़ी बिमारी , बुद्धिमान , उनको वे जैसे है वैसे ही जानकर , निर्वाण का अनुभव करते है , परमोच्च सुख  | "



धम्मपद ३४५ , ३४६ बंधनगरा वठु 

कारावास की कहानी | 

जब बुद्ध भगवान जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद उन चोरों के बारे मे कहा जो बेड़ियों से बंधे थे | 

एक दिन तिस भिक्खु सावत्थी नगर मे भिक्षा मांगने आये | जब वह रास्ते से चल रहे थे तब उन्होंने कुछ कैदियों को देखा जिनके हाथ और पैर बेड़ियों से बंधे हुवे थे | वापस मठ पर लौटने पर भिक्खुवों ने बुद्ध से पूछा के क्या इन बेड़ियों से भी कोई और बेड़िया है जो इनसे अधिक मजबूत है | उनको बुद्ध ने जवाब मे कहा , " भिक्खुवों ! , ये बेड़िया कुछ नही है अगर उनकी तुलना भोजन और कपडे  , धन संपत्ति और परिवार मे आसक्ति होने से की जाये | तृष्णा उन जंजीरों  , हथकड़ी और पिंजरों से हजार गुना , सौ हजार गुणा अधिक मजबूत है  | यही कारण है की बुद्धिमान तृष्णावों को समाप्त कर भौतिक जगत त्याग कर भिक्खु संघ में प्रवेश करते है  | "

तब बुद्ध ने कहा | 

" बुद्धिमान यह नही कहता के लोहा , लकड़ी या सुतली से बनी बेड़िया मजबूत होती है , वे कहते है सिर्फ जुनून से भरी हुवी आसक्ति और चिंता अपने रत्न , जेवर , पत्नियों और बच्चों के प्रति मजबूत बेड़िया होती है  | ये खुद को निचले अस्तित्व मे धकेलते है और वे उपयुक्त लगने पर भी सुस्त करते है | बुद्धिमान इन आसक्तियों की श्रृंखला तोड़कर दृढ़ता से विषय वासनावों को त्याग कर भौतिक जगत को छोड़ देता है  | "

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