धम्मपद ३२७ पवेय्यकहठी वठु , धम्मपद ३७८ संतकाया थेरा वठु
पवेय्यक हाथी की कहानी |
बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद हाथी के संदर्भ कहा जिसका नाम पवेय्यका था |
पवेय्यक जब जवान था तब बहुत शक्तिशाली था , समय बितने के बाद , वह बुढ़ा और निर्बल हुवा | एक दिन जब बुढ़ा पवेय्यक तालाब मे उतरा तो वह दलदल मे फस गया और किनारे तक नही आ पा रहा था | जब राजा पसेनदी को इसके बारे में बताया गया , उसने एक महावत को वहा भेजा उस हाथी को दलदल से बाहर निकालने | महावत वहा चला गया जहा हाथी फसा हुवा था | वहा उसने संगीतकारों से युद्ध की धुन बजवाई | युद्ध के वक्त बजने वाला संगीत सुनकर हाथी को लगा के युद्ध भूमि मे है | उसका उत्साह जगा , उसने पूरी शक्ति से खुद को बाहर निकाला , और जल्दी से बाहर आ चुका था |
जब भिक्खुवों ने यह बुद्ध को बताया , तब बुद्ध ने कहा " भिक्खुवों ! जैसे उस हाथी ने खुद को दलदल से बाहर निकाला , वैसे ही तुम सबने खुद को नैतिक मलिनता के दलदल से खुद को बाहर निकालना चाहिए | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" सचेत रहने मे ख़ुशी मानो , अपने मन की ठीक से रक्षा करो | जैसे दलदल में फसा हुवा हाथी खुदको बाहर निकालता है , वैसे ही खुद को नैतिक अशुद्धीवों से बाहर निकालो | "
प्रवचन के अंत में भिक्खु अरहंत बन गये |
धम्मपद ३७८ संतकाया थेरा वठु
थेरा संतकाया की कहानी |
बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा संतकाया के संदर्भ मे कहा |
एक थेरा संतकाया हुवा करता था , जो पिछले अस्तित्व में शेर था | ऐसा कहते है शेर खाना ढूंढने एक दिन बाहर निकलते है फिर सात दिन गुहा मे आराम करते है बिना चले | थेरा संतकाया जो पिछले जन्म मे शेर था वह इस जन्म मे भी शेर की तरह था | वह बहुत कम चलता था और उसकी गति धीरे और स्थिर थी , और वह सामान्यता शांत और एकाग्रह रहता | दूसरे भिक्खुवों को उसका व्यवहार बिलकुल विचित्र लगा और यह बात उन्होंने भगवान बुद्ध से कही | वह बात सुनने के बाद भगवान बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों ! , भिक्खु शांत और एकाग्रह होना चाहिए , उसने संतकाया की तरह आचरण करना चाहिए | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो भिक्खु शरीर से शांत है , बात करने मे शांत है , और मन से भी शांत है , जो अच्छे से शांत चित्त है और जिसने सांसारिक सुख त्याग दिए है , उसे असली मायने मे ' शांत ' कहते है | "
बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद हाथी के संदर्भ कहा जिसका नाम पवेय्यका था |
पवेय्यक जब जवान था तब बहुत शक्तिशाली था , समय बितने के बाद , वह बुढ़ा और निर्बल हुवा | एक दिन जब बुढ़ा पवेय्यक तालाब मे उतरा तो वह दलदल मे फस गया और किनारे तक नही आ पा रहा था | जब राजा पसेनदी को इसके बारे में बताया गया , उसने एक महावत को वहा भेजा उस हाथी को दलदल से बाहर निकालने | महावत वहा चला गया जहा हाथी फसा हुवा था | वहा उसने संगीतकारों से युद्ध की धुन बजवाई | युद्ध के वक्त बजने वाला संगीत सुनकर हाथी को लगा के युद्ध भूमि मे है | उसका उत्साह जगा , उसने पूरी शक्ति से खुद को बाहर निकाला , और जल्दी से बाहर आ चुका था |
जब भिक्खुवों ने यह बुद्ध को बताया , तब बुद्ध ने कहा " भिक्खुवों ! जैसे उस हाथी ने खुद को दलदल से बाहर निकाला , वैसे ही तुम सबने खुद को नैतिक मलिनता के दलदल से खुद को बाहर निकालना चाहिए | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" सचेत रहने मे ख़ुशी मानो , अपने मन की ठीक से रक्षा करो | जैसे दलदल में फसा हुवा हाथी खुदको बाहर निकालता है , वैसे ही खुद को नैतिक अशुद्धीवों से बाहर निकालो | "
प्रवचन के अंत में भिक्खु अरहंत बन गये |
धम्मपद ३७८ संतकाया थेरा वठु
थेरा संतकाया की कहानी |
बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा संतकाया के संदर्भ मे कहा |
एक थेरा संतकाया हुवा करता था , जो पिछले अस्तित्व में शेर था | ऐसा कहते है शेर खाना ढूंढने एक दिन बाहर निकलते है फिर सात दिन गुहा मे आराम करते है बिना चले | थेरा संतकाया जो पिछले जन्म मे शेर था वह इस जन्म मे भी शेर की तरह था | वह बहुत कम चलता था और उसकी गति धीरे और स्थिर थी , और वह सामान्यता शांत और एकाग्रह रहता | दूसरे भिक्खुवों को उसका व्यवहार बिलकुल विचित्र लगा और यह बात उन्होंने भगवान बुद्ध से कही | वह बात सुनने के बाद भगवान बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों ! , भिक्खु शांत और एकाग्रह होना चाहिए , उसने संतकाया की तरह आचरण करना चाहिए | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो भिक्खु शरीर से शांत है , बात करने मे शांत है , और मन से भी शांत है , जो अच्छे से शांत चित्त है और जिसने सांसारिक सुख त्याग दिए है , उसे असली मायने मे ' शांत ' कहते है | "