धम्मपद ४६ मरसिकम्मट्ठानिका भिक्खु वठु

उस भिक्खु की कहानी जिसने मृगतृष्णा जैसे शरीर का चिंतन किया |

जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ में ठहरे हुवे थे तब उन्होंने यह धम्मपद मरसिकम्मट्ठानिका भिक्खु के संधर्भ में कही |

एक समय एक भिक्खु ने भगवान बुद्ध से विपस्सना ध्यान करने की विधि सीखी और जंगलो में अभ्यास करता रहा | उसने बहुत प्रयास किया लेकिन जादा प्रगती नहीं कर सका | इसलिये उसने और जादा सलाह पाने के लिए भगवान बुद्ध के पास वापस जाना चाहा | वापस जाते हुवे राह में उसने एक मृगतृष्णा देखा जो एक छोटे जल के समान मायावी था | तब उसे अहसास हुवा के शरीर भी उस मृगतृष्णा के समान मायावी है | फिर वह अपने शरीर के क्षणभंगुर होने के अहसास को महसूस करते हुवे अचिरावती नदी के तठ पे पहुँचा | वहा एक पेड़ के निचे बैठ गया , जब उसने नदी में बड़े झाग को पलों में नष्ट होते हुवे देखा तो उसे शरीर के अस्थिर स्वभाव का अहसास हुवा |

उसी समय , उसके दृष्टि में भगवान बुद्ध प्रकट हुवे और कहा | " मेरे पुत्र , जिस प्रकार तुम्हें अहसास हुवा है , उसी तरह यह शरीर क्षण भंगुर और मायावी है | "

तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |

" जो जानता है के उसका शरीर झाग / बुलबुले की तरह क्षणिक है , और मृगतृष्णा की तरह असाध्य होने की समझ है , वह मारा के फूलों को काटेगा और मृत्यु के राजा के दृष्टि को चकमा देगा  | "

प्रवचन ख़तम होने पर भिक्खु अरहंत बना  | 

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