धम्मपद १५९ पधनिकातिस्साथेरा वठु

थेरा पधनिकातिस्सा की कहानी | 

जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा पधनिकातिस्सा के संदर्भ मे कहा | 

बुद्ध से विपस्सना ध्यान की शिक्षा सिखाने के बाद थेरा पधनिकातिस्सा वन में पाँचसो भिक्खुवों के साथ चला गया | उसने भिक्खुवों से कहा के उन सबने अपने विप्पसना ध्यान साधना मे परिश्रमी और सचेत रहना चाहिए | सबको प्रोत्साहित करने के बाद वह बाद मे लेटा रहता और सो जाता | जवान भिक्खुवों ने वैसा ही किया जैसा बताया गया | उन्होंने विप्पसना साधना रात के पहले प्रहर और सोने से पहले की , पधनिकातिस्सा तभी उठता और उन सबको जगाकर ध्यान करने के लिए जगाता | जब वे सारे भिक्खु दूसरे और तीसरे प्रहर विप्पसना ध्यान करके वापस आते तब भी वह वैसा की करता और वापस भेजता | 

इस तरह वह हमेशा ऐसा ही व्यवहार करता , जवान भिक्खुवों को कभी मन मे शांति नही रही , इसलिये वे अपने विप्पसना साधना पर या धम्म पाठ पढ़ने मे ध्यान केंद्रित नही कर सके | एक दिन सब भिक्खुवों ने पता लगाने की ठानी के उनको पढ़ाने वाला भिक्खु क्या सहिमे इतना उत्साही और सतर्क है या नही जिस तरह वह व्यवहार करता है | जब उनको पता चला के उनका शिक्षक केवल दूसरों को प्रोत्साहित करने पर तुला रहता लेकिन खुद जादातर समय सोया रहता , उन्होंने सोचा , " हम बरबाद हो गये है , हमारे शिक्षक को बस हमें डांटना और फटकारना ही आता है , पर वह खुद केवल समय बर्बाद कर रहा है , कुछ न करके | " अब तक , जैसे भिक्खुवों को अच्छी तरह से विश्राम नही मिल रहा था , वे थक गये और मंद हो गये | इसके नतीजे , किसी भी भिक्खु की विप्पसना ध्यान लगाने मे तरक्की नही हो सकी | 

वर्षा ऋतु के अंत तक , वे जेतवन मठ मे लौट गये और सारी बात बुद्ध को बताई | उन सबसे बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों ! जिसे दूसरों को सिखाने की इच्छा है उसने पहले खुद को सिखाना चाहिए और अच्छा व्यवहार करना चाहिए | " 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" खुद ने वैसा बर्ताव करना चाहिए जैसा हम दूसरों को सिखाते है , खुद को बिलकुल सुधारने के बाद ही हमने दूसरों को सुधारना चाहिए  | खुद को सुधारना बहुत मुश्किल है  | "

उपदेश के अंत में सभी पाँच सो भिक्खु अरहंत हो गए | 

* जातक कथा के अनुसार वह शिक्षक भिक्खु पुर्व जन्म में मुर्गा था जो कभी भी समय असमय जाग कर चिल्लाया करता था जिससे दूसरे लोगों की नींद ख़राब होती थी | 

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