जातक कथा संग्रह
मेहनत न करने का फल
एक किसान था । वह खेती करने के लिए दो बैल पालता था । वह बैल खेती में बड़ी मेहनत करते थे । पर किसान उन दोनों का कुछ खास ख़याल नहीं रखता था । उन दोनों के लिए बस कुछ सुखी घास डालता था । बहुत दिन ऐसे ही बिताने के बाद एक बैल दूसरे से बोला |
" हम इतनी मेहनत करते है और किसान हमें खाने के लिए सिर्फ कुछ सुखी घास और रहने के लिए यह गंदी सी जगह का ही इंतज़ाम कर पाया है । मैं तो इस फ़िजूल की मेहनत से परेशान हो गया हुं । हम दोनों से अच्छा तो उस किसान के सुवर है जो बिना कुछ किये दिन रात बहुत दिनों से अच्छा खाना खा रहे है । किसान उनका कितना ख्याल रखता है । "
यह बात सुनकर दूसरे बैल ने उसे कुछ दिन और रुकने के लिए कहता है । एक दिन किसान घर जल्दी आ जाता है । उसके साथ कुछ मेहमान भी होते है । दरअसल किसान उनको अपनी बेटी के लिए रिश्ता तय करने के लिए घर बुलाता है । रसोई घर में महिलाये जोरो से काम की तैयारी कर रही होती है । कुछ ही देर में किसान बाहर आता है और सुवरो को मुक्त करके उनका गला काट देता है ।
यह सारी घटना देखकर बोधिसत्व बैल पहले से कहता है "मैंने तुम्हें इसी दिन के लिए रुकने को कहा था , देखो मेहनत न करने का नतीजा !!! "
नीच लोगो से संगत का नतीजा
एक समय बोधिसत्व बिस्खोपरा के कुल में जन्म लेता है । बूढ़े होने पर वह बहुत बड़े बिस्खोपरा के टोली का सरदार बन जाता है । सबका ख़याल रखना और मार्गदर्शन करना उसका फर्ज होता है । कुछ दिन में उसके टोली में एक नन्हे बिस्खोपरा का जन्म लेता है । बचपन से ही उसकी दोस्ती बिल के पास रहने वाले छिपकली के बच्चे के साथ हो जाती है । सरदार उस नन्हे बिस्खोपरा के माता पिता को बहुत समझाता है के उसके बच्चे को छिपकली के बच्चे की संगत नहीं करने की सलाह दे । पर कुछ फायदा नहीं होता ।
सरदार यह भी कहता की इससे हम मुसीबत में पड सकते है । पर माता पिता नहीं उनका बचा सरदार की बात को गंभीरता से सोचते है । बच्चा छिपकली के बच्चे के साथ खेलते खेलते एक दिन बड़ा होने लगता है । बिस्खोपरा बच्चा छिपकली के बच्चे से जादा बड़ा होने लगता है । इससे छिपकली का बच्चा दिन बर दिन बिस्खोपरा से ईर्ष्या करने लगता है । वह सोचता है की वह एक साथ रह कर एक जैसा व्यवहार करते है पर बिस्खोपरा का बच्चा उससे जादा बड़ा हो रहा है और बहुत अधिक शानदार लग रहा है । पर वह बहुत दुर्बल लगता है उसके सामने ! पर वह कुछ नहीं कर पाता है ।
एक दिन जंगल में शिकारी आ जाते है । छिपकली का बच्चा शिकारी को बहकाकर बिस्खोपरा के पास ले आता है । बिस्खोपरा अपने बिल में जाता है । शिकारी बिल में आग लगा देते है । सारे बिस्खोपरा धुवे और आग के कारण बाहर आते है । शिकारी एक एक करके बहुत सारे बिस्खोपरा को मार देता है । बिस्खोपरा का सरदार और कुछ बिस्खोपरा भाग लेने में सफल होता है । बाद में बिस्खोपरा का सरदार कहता है देखा नीच जीव की
संगति का नतीजा !! हम सब टोली को उसी दिन भाग जाना चाहिए था जब बिस्खोपरा के बच्चे ने उस नीच के साथ दोस्ती की थी ।
स्वादिष्ट खाने का मोह
एक राजा था उसके आलीशान महल के पिछे बहुत सुन्दर बगीचा बनाया गया था । उसमे अनेक प्रकार के फलों के साथ आम के वृक्ष थे । सभी पेड़ पोैधे स्वादिष्ट फलो से बहराते रहते थे । उसका आनंद राजा शाम में लिया करता था । एक दिन एक नर हिरण को बगीचे का पता लगता है । तब वह बारी बारी से दोपहर आकर फूल पोैधे और फलो को तहस नहस करके बर्बाद करके और खाकर चले जाने लगता है ।
जब राजा को यह पता लगता है तब वह उस नर हिरन को पकड़ने का आदेश देता है पर उसे कोई पकड़ नहीं पाता । सारे सैनिक हैरान रह जाते है । कुछ दिन बाद माली जब राजा के पास आता है तो राजा सब बात उसे समज़ाता है ।
माली कहता है के वह हिरन को अकेले ही पकड़ देगा बस उसे कुछ सामान की जरुरत पड़ेगी । राजा सब सहयोग पहुँचाने का बंदोबस्त करता है ।
कुछ दिन बाद राजा काम काज निपटा कर कर जब वापस शाम को बगीचे में देखता है की माली ने हिरण को रस्सी से बाँध दिया है । तब राजा कहता है "तुमने अकेले ने यह काम कैसे किया । "
तब माली कहता है वह हर रोज घास पर शहद फैला दिया करता था । इससे उस हिरण को इतनी चटक पड गयी के हिरन रोज घास खाने आने लगा । जब वह उसे पकड़ने गया तो हिरन भागा भी नहीं क्योंकि उसे वह शहद से युक्त घास इतनी प्रिय है की उसने अपनी जान की परवाह भी नहीं की ।
मोक्ष
एक बार भगवान बुद्ध एक गांव में ठहरे हुवे थे | वहा एक गरीब आदमी रहता था | जब उसको पता चला के बुद्ध भगवान उसके गांव में ठहरे हुवे है ,वह जल्दी से उनको मिलने के लिए भाग पड़ा | उसने भगवान बुद्ध से पूछा के उसके पिता कुछ दिन पहले मर चुके है | उसने ब्राह्मणो को बहुत सारे पैसे देकर क्रियाकर्म किया है तो क्या उसके पिता स्वर्ग पहुंच चुके है या नहीं ? भगवान बुद्ध ने कुछ नहीं कहा | तब पागल होते हुवे उस इंसान ने कहा कृपया करके बताये के उसके पिता स्वर्ग पहुंचे या नहीं ? अगर नहीं पहुंचे तो कुछ कर्मकांड करके उनको स्वर्ग पहुंचा दे |
तब भगवान बुद्ध ने उसे एक माटी का मडका , घी और छोटे पत्थर लाने को कहा | जब वह वापस आया तो उसे बुद्ध ने घी और पत्थर मडके में डालकर नदी में जाने को कहकर लाठी से मडके को फोड़ने को कहा | और यह भी बताया के अगर घी पानी में डूब जाये और पत्थर तैरने लगे तो तभी वे बतायेंगे के उसके पिता स्वर्ग पहुंचे है या नहीं !
आदमी ने कहा के ये कैसे हो सकता है लेकिन उसने वैसे ही किया | तब पत्थर नदी में डूब गए और घी तैरने लगा | तब वह आदमी समझ गया के जैसा स्वभाव होगा वैसे ही गति मिलती है | भगवान बुद्ध ने कहा के वह कैसे किसीको को मोक्ष दिला सकते है | जैसा व्यक्ति का स्वभाव होगा वैसे ही उसको गति मिलेगी , फिर चाहे कितने भी कर्मकांड कर लो |
लोभ
एक आदमी था उसे एक दोस्त भी था लेकिन उसका दोस्त साधू बन गया था | वह साधू बड़ा ही नेक और त्यागी था , और अच्छे से साधू का जीवन जीता था | एक दिन साधू के गृहस्त मित्र ने शादी कर दी | उसकी बीवी बहुत जवान थी और यह उम्र से बड़ा था | एक दिन उसके बीवी ने लड़के को जन्म दिया | उनका परिवार झोपड़ी में नगर से दूर जंगल के पास रहता था | एक दिन उस औरत का पति बहुत बीमार पड़ गया | कभी कभी उस आदमी का साधू मित्र उसे मिलने आता था | अपनी मृत्यु नजदिग आते देखकर उस आदमी ने बहुत सारी स्वर्ण मुद्रा वो से भरा हुवा मडका साथ लेकर अपने मित्र को जंगल में जाने को कहा | जब वो दोनों जंगल पहुंचे एक जगह रुककर वह स्वर्ण मुद्रा वो से भरा मडका जमीन में गाड दिया और वहा कुछ निशान बना दिया | आदमी सोचता था की उसकी बिवी बहुत जवान है , जब वह मर जायेगा तो उसकी बिवी सारा सोना लेकर दूसरी शादी कर लेगी और उसके लड़के का ख़याल नहीं रखेगी |
आदमी ने साधू से कहा उसके मरने के बाद उसका लड़का जब अठारा साल का होगा तब उसे जंगल में ले जाकर उस जगह से सोना निकलने को कहे ताकि वह ठीक से जीवन जी सके | कुछ दिन बाद आदमी मर गया |
साधू ठीक से सन्यासी जीवन जीता था | उसे पैसों का मोह नहीं था |
जब लड़का बड़ा हुवा उसकी मा ने लडके को कहा की उसके पिता ने सोना जंगल में गाड़ दिया था | उस साधू से पूछो की वह उसे वहा तक ले जाए | जब लड़का अठारा साल का हुवा तो वह साधू राजी हुवा | वह हर रोज उसे जंगल में लेकर जाता लेकिन जैसे ही वह कुछ दूर पहुंचते , वह साधू लडके को खरी खोटी सुनाकर गालिया देने लग जाता | ऐसा बहुत दिन हुवा | हालाँकि बाकी समय साधू बड़ा अच्छा व्यवहार करता था , एक अच्छे संन्यासी की तरह !
ऐसा बहुत दिन चलता रहा | साधू जंगल में उसे ले जाता , अच्छा व्यवहार करता लेकिन कुछ समय बाद गालिया देते देते लड़के को वापस जंगल से बाहर ले आता | बाद में लड़का परेशान हो गया | उस नगर में उन दिनों एक बोधिसत्त्व भी रहता था | लड़का बोधिसत्त्व के पास राय मांगने चला गया | बोधिसत्व ने लड़के को कहा के वह "साधू से फिर कहे के जंगल में चले और उसके पिता ने जहा सोना गाड़ दिया था वो जगह दिखाए | जैसे ही वह साधू गालिया देने लगे उसे बाजू सरका के उसके पैरो के निचे की जमीन खोदना शुरू कर दे | "
लडके ने वैसा ही किया तब उसे उसके पिता ने गाड़ा हुवा सोना मिल गया |
बाद में लडका बोधिसत्व के पास गया ताकि वह शुक्रिया कर सके | लडके ने पूछा के उनको कैसे पता लगा की सोना उसके पैरो के निचे मिलेगा ?
बोधिसत्व ने कहा साधू अच्छा जीवन जीता था , त्यागी था | लेकिन ऐसा उसे क्या हो जाता के वह अशोभनीय व्यवहार करता और गालिया देने लगता | लोभ बड़ी बुरी बला है , वह साधू जब उस जगह आता तो उसमे लोभ और लालच जाग जाता और वह गालिया बकने लगता | इस तरह बोधिसत्व ने अनुमान लगाया के सोना वही गड़ा था जिस जगह आके वह साधू गालिया बकने लगता |
घटिया लोगो से नहीं उलझना चाहिए |
एक जंगल में एक शेर रहता था | उसका बड़ा डाम डौल था | वह बड़ा ही सुन्दर , चमकदार और युवा शेर था | उसका लोहा हर कोई मनाता था | उसकी बहुत तारीफ होती रहती थी जो भी उसे एक बार देखता था | उससे कोई भी शत्रुता नहीं करता था क्योंकि इतना साहस लाना कठिन था | एक बार शेर घूमते घूमते एक कीचड़ के पास आ गया वह बहुत ठंडा महसूस कर रहा था वहा पर भरी गर्मी में !
अचानक से झाड़ियों में से एक सुवर बहार निकल आया और शेर को गालिया बकने लगा | शेर को यह देखकर बहुत ग़ुस्सा आया | शेर ने उसे लड़ने की चुनौती दी | पर बाद में सुवर का दिमाग ठिकाने आ गया तो उसने बात को टालने के लिए अगले दिन आने को कहा | इधर सुवर बड़ा डर गया था , उसको खुद के बर्ताव पर पछतावा हो रहा था | वह रात भर सो नहीं पाया |
यह देखकर एक बंदर ने उसे सुझाव दिया की वह कीचड़ में रेंगकर उसमे नहाये और पूरा कीचड़ शरीर पे लगा दे | दूसरे दिन शेर लड़ने के लिए आया | लेकिन वहा पर वह उसने सुवर को कीचड़ से लथपथ पाया | उससे बदबू भी आ रही थी | जंगल के अलग अलग प्राणी भी आये थे मुकाबला देखने |
सुवर डरा हुवा था लेकिन वह कीचड़ में खड़े रहकर शेर को चुनौती दे रहा था | शेर तो अचंभित रह गया था सुवर का दुःसाहस देखकर | लेकिन पल भर में शेर के ख़याल में आया के वह खुद इतना साफ़ सुथरा है और सुवर इतना गन्दा और भद्दा है , उससे लड़कर उसका शरीर भी गंदा हो जायेगा | आखिर सुवर से मुकाबला जीतकर उसे क्या खास रुतबा मिलेगा ! , उल्टा मज़ाक होगा अगर वह भी कीचड़ में गंदा हो पड़े |
यह सोचकर वह शेर बिना लड़ाई किये वहा से वैसे ही लौट गया |
खोटी शान
एक राज्य में एक राजकुमार था जो जल्द ही राजा का पद संभालने वाला था | वह अक्सर अपने राज्य में वेश बदलकर घूमा करता था | एक दिन वह एक गांव के खेत में पहुंच गया वह अपने महल से काफी दूर आ गया था |
उसका हाल प्यास और भूख से बहुत बुरा हो गया था | तब वह पानी और खाने के तलाश में गुजर रहा था तब उसे एक खेत में बेर और पेड़ मिला जिसपर एक प्यारी सी लड़की डाली पर बैठकर आराम फरमा रही थी |
लड़की ने उसका बुरा हाल देखकर उसे पानी और खाना परोसा | लड़की के हाथों से लिए बैर उसे बहुत पसंद आये , वह पहली बार बेर से परिचित हुवा था | लड़की के पिता ने उसे कुटिया के बाहर सोने की अनुमति दी |
दूसरे दिन जब राजकुमार राहत महसूस कर रहा था तब किसान ने उसे खाने के साथ विदा कर दिया | राजकुमार बहुत अहसानमंद महसूस कर रहा था | उसे उस प्यारी लड़की की याद आती रहती थी | एक दिन राजकुमार अपने असली रूप में कुछ सैनिक लेकर उस किसान के पास पहुँचा और सारी हकीकत बताकर , उसने उसके बेटी से विवाह करने की इच्छा प्रगट की | किसान बहुत खुश हो गया था , उसने कभी नहीं सोचा था के उसे इतना अच्छा दामाद मिल सकता है |
शादी होने के बाद राजकुमार राजा बन गया | वह पत्नी के साथ खुश था | लेकिन रानी हमेशा चाहती थी के राजा उसे गांव की गवार न समझे , इसके लिए वह शालीनता से व्यवहार कराती थी | एक बार राजा ने सोचा के रानी के साथ बाहर घूमने चले जाते है | दोनों बाहर घूमने गए थे तब रानी एक पेड़ पर नजर आये पेड़ के बेर को देखकर राजा से कहती है ! " हे राजन , ये कौनसा पेड़ है जिसपर ये अजीब से फल लगे हुवे है |
राजा को बहुत ग़ुस्सा आया , उसने रानी को वापस अपने पिता के घर पहुंचा दिया | तब रानी को बहुत पछतावा हुवा | उसने राजा से माफ़ी मांगी , तब राजा ने कहा उसने उससे इस लिए विवाह किया था क्योंकि उसे उसके हाथ से लिए हुवे बेर बहुत पसंद आये थे | इसके अलावा उसकी सादगी और प्यारी अदा उसको भा गयी थी | लेकिन अब वह रानी झूठा व्यवहार और केवल दिखावा करने लगी थी जो किसी को भी प्रभावित नहीं कर सकता | यह कहकर राजा ने रानी को माफ़ करके वापस राज महल लाया | फिर वह वापस ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे |
खोटा पासा
एक बार बोधिसत्व अमिर परिवार मे पैदा हुवा लेकिन कुछ गलत कर्मो की वजह से जुवारी बना | शाम होते ही जुवा खेलने के लिए कुछ जुवारियों के अड्डे पर जाता था और अपना कमाया हुवा पैसा दाव पर लगाता था | लेकिन उसके दोस्त और वो एक दिन के बाद से हर दिन हारने लगे और हमेशा एक ही आदमी जितने लगा | इस तरह वह और उसके दोस्त कंगाल होने लगे और परेशान रहने लगे | लेकिन बोधिसत्व समझदार और बुद्धिमानी था | वह जनता था के जुवे में एक ही व्यक्ति के जितने की संभावना नहीं होती | ज़रूर वह आदमी कुछ चालाकी करता होगा जिससे वही हमेशा जितता है | तब उस जुवारी ने अपने दूसरे जुवारी से इसके बारे में बात की | एक दिन वे सारे उसी जुवारी के साथ जुवा खेलने बैठ गए | बोधिसत्व सिर्फ उस आदमी को ही देखता और उसकी चाल समझने की कोशिश करता |
तब उसे पता चला के वह चालाक आदमी कुछ पासे अपने कपडे में चुप के से छुपाके रखता था जिसपे एक की आंकड़े लिखे हुवे रहते | जब भी वो पासा फेकता जल्द से बिजली के गति से मन चाहे पासे निकालता और असली वाले पासे मुँह में छुपा लेता था | अब बोधिसत्व जान गया था | दूसरे दिन बोधिसत्व ने यह बात अपने दोस्तों से कही | उन सबने पासो पर कड़वा सा औषधी का लेप लगवाकर फिर से उस आदमी के साथ जुवा खेलने बैठ गए | जैसे ही उस आदमी पासा फेकते वक्त असली वाले पासे मुँह में डाले वह कड़वे स्वाद से बेहाल हो गया और ज़मीन पे लेटकर रोने पे आ गया | लेकिन बोधिसत्व का मन बुरा नहीं था उसने जल्दी से उस आदमी से उसके जुठ को कबुलवाकर उसे गरम पानी से ठीक करवाया और वह आदमी ठीक हो गया | बाद में उस आदमी को सारे पैसे लौटने पड़े |
किरकिरी
कही सारे व्यापारी बहुत परेशानी झेलते हुवे एक गांव से दूसरे गांव की राह पर बहुत सारा सामान लिए बैलगाड़ियों से जा रहे होते है | लेकिन वह राह आसान नहीं थी | कही सारी बाधावों का सामना करना पड़ता है | कड़ी धुप के बाद रात में बारिश होती है | दूसरे दिन कीचड़ से राह निकालनी पड़ती है | बैल , व्यापारी से लेकर नौकर चाकर कोई खुश नहीं होता , सब शिकायत करते है | लेकिन जब वह दूसरे गांव पहुंचते है तो सबको काफी सारा मुनाफा मिलता है | सब खूब मजे उड़ाते है और गांव वापस जा रहे होते है लेकिन सिर्फ बैलगाड़ियों के चक्को से कीर कीर कीर कीर की आवाज आती रहती है | तब बैलगाड़ी खींच रहा एक बैल दूसरे समझदार बैल से पूछता है , क्या बात है अब सब खुश है तो ये चक्के किस बात की शिकायत कर रहे है | तब समझदार बैल कहता है , " तुम उनकी तरफ ध्यान मत दो हमें हमेशा ऐसे लोग मिलते ही है जहा सब खुश हो और अच्छा चल रहा हो तो भी ऐसे लोग बिना वजह कीर कीर करेंगे ही | कोई न कोई होता ही है जो किसी भी स्थिति में नाखुश होता है | "
जन्म भूमि से अति प्रेम
एक नदी के पात्र में अनेक तरह के जिव जंतु रहते थे | वे सारे अपने इच्छा अनुरूप नदी में घूम कर वापस आ जाते थे | इन जिव जंतु को पहले ही पता चल जाता है के कब सूखा पड़ने वाला है | तब सारे जिव जंतु वहा से
सुरक्षित जगह पलायन कर गये | लेकिन वहा एक कछवा था , वो वहा से नहीं भागा | वह सोचता था के उसने वही जन्म लिया , उसके माता पिता भी वही रहते थे और वह युवा भी उसी जगह हुवा था | ऐसे जगह को वह कैसे छोड़ सकता है !
एक दिन कुछ कुम्भार वहा की सुखी चिकनी मिट्टी जमा करने आये | जब वह खुदाई कर रहे थे तब एक प्रहार जोर से मिट्टी में धसे हुवे कछुवे पर पड़ी जो वहा से नहीं भागा था | तब उसे बड़ी पीड़ा से समझ आया के " वही रहना उचित है जहा चैन मिले चाहे वह जिस प्रकार की जगह रहे , चाहे वह जंगल हो , गाव अथवा जन्मभूमि हो लेकिन जहा आनंद मिलता है , उसी जगह को घर मानकर रहना चाहिए | "
राजा की पत्नी
एक राजा था जिसने एक नागराज को कुछ दबंगी बच्चों से बचाया था जो नागराज को मार डालने वाले थे | तब नागराज ने प्रसन्न होकर राजा को वरदान दिया के वह हर जानवर तथा जिव जंतु की भाषा समझ सकेगा | लेकिन एक शर्त थी अगर वह किसी को यह बताये के उसे जानवरों तथा जिव जंतुवो की भाषा अवगत है तो उसकी जान चली जाएगी | एक दिन राज्य का कार्यभार ख़तम करने के बाद अपने रानी के साथ बाग़ में कुछ खा रहा था तो एक टुकड़ा निचे गिर गया तभी वहा से गुज़र रही चिटी ने कहा 'अरे ! वाह कितना बड़ा स्वादिष्ट टुकड़ा है , इसे ले जाने के लिए तो एक बैल गाड़ी लगेगी | ' बाद में चीटी टुकड़े को उठाने की कोशिश करने लगी | यह सब सुनकर राजा को हसी आयी | तब पास में बैठी रानी को लगा के राजा उसपर ही हस रहे है | तब रानी ने इसका कारण राजा से पूछा के उसके श्रृंगार में कुछ गड़बड़ी तो नहीं है ?
लेकिन राजा ने बात को टाल दिया | जब राजा और रानी शयन कक्ष पहुंचे तो रानी तरह तरह के नखरे कर राजा से जानने की कोशिश करने लगी के राजा को किस बात पर हसी आयी थी | तब राजा ने बताया के वह नहीं बता सकता क्योंकि कारण बताने से उसकी जान भी जा सकती है | लेकिन रानी नहीं मानी | तब राजा ने रानी से कहा के वह कल बाग़ में बतायेगा |
जब राजा बाग़ में कुछ सहकारियों के साथ बाग़ से गुजर रहा था तब उसने एक बकरी और गधे की बात सुनी | बकरी ने गधे से कहा के "राजा तो गधे से भी जादा मुर्ख है | वह जब रानी को बतायेगा के उसको चिटी की भाषा समझ आयी थी तभी वह मर जायेगा यह बात जानकर भी राजा सिर्फ रानी को खुश करने के लिए जान से हात धो बैठे गा | जब राजा मर जायेगा तो रानी उसकी सारी सम्पत्ति पाकर दूसरे पुरुष के साथ मजे करेगी | " यह बात सुनकर राजा को अहसास हुवा के वह बहुत मूर्खता कर रहा है |
जब रानी बाग़ आयी तब राजा ने कहा के वह बात बताएगा लेकिन उसके जान निकल जायेंगे इसलिये रानी को एक शर्त राखी | रानी को सौ कोडो की मार खानी पड़ेगी तभी वह बतायेगा | तब रानी को लगा के राजा उससे बहुत अधिक प्रेम करता है इसलिये हलके से कोड़े मारेगा | लेकिन राजा ने एक सिफाई को बुलाकर जोर जोर से रानी को कोडो से मारने की आज्ञा दी | तब रानी चिल्ला के कहने लगी उसे नहीं जानना के राजा क्यों हस पड़ा था लेकिन उसे कोड़े न मारे जाए | तब राजा ने सोचा के रानी को उसके जीवन की परवाह नहीं लेकिन उसे कोडो से परेशानी है | तब राजा ने और जोर से कोड़े बरसाने की आज्ञा दी | बाद में मंत्री ने राजा से कहा के वह रानी को क्षमा कर दे | राजा ने रानी को माफ़ तो किया लेकिन उसको पहले जैसा प्यार और मान सम्मान नहीं दिया |
कुशल व्यापारी
थेनगर नाम के एक गांव में एक सेथु नाम का युवक नौकरी की खोज कर रहा था | जब एक दिन वह घूम रहा था , राज्य का कोशागार उसके मित्र के साथ उसी रस्ते से गुज़र रहे थे | मित्र ने राज कोशागार से कहा के "राजा उससे बहुत खुश है क्योंकि राज्य का भंडार संपत्ति से बहुत भरा पड़ा है | आखिर तुम्हारे यश पाने का रहस्य क्या है ?" तब कोशागार ने कहा " व्यापार का अच्छा तरीका !" मित्र ने कहा मुझे कुछ समझ नहीं आया | तब राज कोशागर ने कहा में कैसे समझा सकता हूँ ? तब राह में चलते चलते एक मरा हुवा घुस जो बड़े चुवे के समान होता है | उसे दिखाते हुवे कोशागार ने कहा क्या तुम उस राह में पड़े चुवे को देख सकते हो ? अगर में अपना मन लगावु तो उस मरे हुवे चुवे से भी बिना पैसा लगाए व्यापार शुरू कर सकता हु | मित्र फिर सोच में पडकर हँसने लगा |
सेथू वह सारी बाते सुन रहा था क्योंकि वह उनके पीछे बाते सुनते हुवे चल रहा था | वह अचंभित होते हुवे उस मरे हुवे चुवे की तरफ देखने लगा | उसने सोचा राज कोषागार ने जरूर कुछ तथ्य के आधार पर ही कहा होगा | तब उसने बात पर अमल करने की ठानी | उसने मरे हुवे चुवे को उठाया और चल पड़ा | एक व्यापारी दूसरी तरफ से अपने बिल्ली के साथ आ रहा था | बिल्ली उसके हाथो से निचे उतर गयी और दौड़ ने लगी | तब सेथु को देखकर समझ गया के बिल्ली क्यों उसके तरफ भाग रही है | व्यापारी ने कहा अगर तुम ये मरा हुवा चुवा मुझे दोगे तो में तुम्हें एक पैसा दुँगा | इस तरह सेथु ने एक पैसा कमाया और राह में चलते हुवे सोचने लगा के वह उस एक पैसे का क्या कर सकता है | तब उसने कुछ सोचते हुवे एक दुकान पे गया और गूढ़ ख़रीदा | और गांव के बाहर जहा लोग फूल ख़रीद कर गुजरते है वहा पानी और गूढ़ के साथ राह देखने लगा |
तब उसे बहुत सारे लोग दिखे जो काम ख़तम करके पास से गुज़र रहे थे | एक बूढ़ा इंसान फूलों के साथ पास आया तब सेतु ने कहा "आप बहुत थक गए होंगे कुछ गूढ़ और पानी लेकर थकान में राहत पावो " तब उस बूढ़े इंसान ने आशीर्वाद देते हुवे कहा बेटा में बहुत आभारी हु | क्या तुम कल भी पानी लेकर आवोगे ?" तब कुछ फूल देकर वो बूढ़ा इंसान राह पे चल पड़ा | अगले दिन उसने बहुत सारे लोगो को जो फूल ला रहे थे उनको पानी पिलाया और उसके बदले उसे बहुत सारे फूल मिले |
वह सारे फूल लेकर शाम को मंदिर के बाहर फूल बेचने बैठ गया | वह बहुत खुश हुवा यह सोचकर के उसने पहली बार आठ पैसे कमा ये | बाद में वो और जादा गूढ़ और पानी बेचने के लिए उसी जगह जाने लगा | तब राह में उसे लोग मिले जो चावल के खेत में काम करके बहुत थके हुवे थे | सेथु ने उन्हें पानी पिलाया | तब उन मेहनती किसानो ने कहा अगर कुछ मदत की जरुरत पड़े तो ज़रुर कहना | ऐसे करते करते एक माह बित गया | जब वह एक दिन शाम को घर लौट रहा था तब बहुत जोरो से हवा बहने लगी | जोरो की हवा से सारी ओर झाड़ पौधों की डालिया ईधर उधर टूट कर बिखर गयी | उसने सोचा जब मरे हुवे चुवे से पैसे बनाये जा सकते है तो इन टूटे हुवे डालियो से क्यों नहीं | दूसरे दिन वह राजा के बगीचे के माली के पास गया | माली ने कहा के वह बहुत डरा हुवा है क्योंकि जब राजा लौटे गा तो बिखरी हुवी डलिया और पौधे देखकर बहुत डाटेगा | उसे नहीं लगता के वह अकेला सब साफ़ कर सकेगा | तब सेथु ने कहा डरो मत में तुम्हें सफाई में मदत करूँगा लेकिन उसके बदले तुम्हें सारी टूटी हुवी डलिया और पेड़ मुझे देने पड़ेंगे | सेथु सारी लकड़ी लेकर गया और कुम्भार को बेच दी | कुम्भार ने उसे सौ ताम्बे की राशिया दी | राह से जब सेथु गुजर रहा था तब उसने सुना के एक व्यापारी पाच सौ घोड़े लेकर आने वाला है | तब सेतु ने सोचा के वो उनको घास बेच सकेगा | तब वह किसानो के पास गया जिनको उसने पानी दिया था | सेथु को उन्होंने घास ले जाने केलिए अनुमति दी | सेथु पांच सौ घास की गड्डिया ले कर चल पड़ा | व्यापारी घोड़ो केलिए चारा खोज रहा था तब उसे सेतु दिखयी पड़ा | उसे देखकर वह बहुत खुश हुवा | व्यापारी ने एक हज़ार तांबे के मुद्राये देकर सारी घास ख़रीद ली | सेतु बहुत खुश हुवा था तब उसने सोचा के अब इन सारे पैसो से बड़ा व्यापार शुरु करने में वह सक्षम है | सेतु ने सुना के दूसरे दिन एक व्यापारी जहाज़ लेकर बहुत सामान बेचने आया है |
तब सेतु ने सोचा के नए कपडे ख़रीदे जाए | सेतु ने अच्छे कपड़े ख़रीदे और उन्हें पहनकर किनारे पहुंचा जहा जहाज़ लेकर आया था | तब सेतु ने उसका स्वागत किया जिससे व्यापारी बहुत खुश हुवा | सेतु ने कहा की वह उसका सारा सामान ख़रीदेगा लेकिन उसको पैसा लौटाने में कुछ समय लगेगा | उसने सौ तांबे के मुद्रा उसे अग्रिम / पेशगी के तोर पर दी | व्यापारी राजी हुवा | कुछ देर में दूसरे कही सारे व्यापारी आये तो उन्हें पता चला के सारा माल तो सेतु ख़रीद चुका है |
वह सारे व्यापारी सेतु के पास गए और एक लाख स्वर्ण मुद्रावो में उससे सारा माल ख़रीदा | सेतु ने महसूस किया के वह बहुत अमिर बन चूका है | उसको ख़याल आया के उसको राज कोषागार को धन्यवाद करना चाहिए | वह राज कोषागार के यहा जाकर उसने उन्हें सोने का चुवा उपहार में देना चाहा | तब कोषागार ने कहा उसने उसे पहली बार देखा है तब उसने उसकी मदत कब की | सारी बात बताने के बाद राज कोशागार बहुत प्रभावित हुवा | सेथु की लगन और होशियारी से खुश होकर राज कोषागार ने उसकी लड़की से सेथु का ब्याह करके सारी संपत्ति उसको सोप दी | उसको यकीन था के वह उसका अच्छे से ख़याल रखेगा |
बुराई की जड़
यह एक उत्तर भारत की कहानी है , जहा का राजा बहुत परेशान था उसके बेटे के व्यवहार के कारण ! उसका लड़का युवक होने वाला था लेकिन उसके व्यवहार में बिलकुल शालीनता नहीं थी | वह नौकरो से गाली गलोच करता था | किसी से भी अच्छे से व्यवहार नहीं करता | किसी के अहसान की कीमत नहीं समझता था | यहाँ तक के मंत्री लोगों का अपमान करता था | राजा ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो नहीं माना | बाद में राजा परेशान रहने लगा | राजा को डर था के उसके लडके का आचरण न केवल उसके व्यक्तित्व को ख़राब करेगा लेकिन राजा बनने के बाद लोग उसे गद्दी से उतार फेकेंगे |
प्रवचन करते करते भगवान बुद्ध एक बार एक शहर रुके हुवे थे | तब एक मंत्री ने राजा से कहा के भगवान बुद्ध पास शहर में रुके हुवे है | अगर भगवान बुद्ध राजी हुवे तो शायद युवराज का आचरण सुधर सकता है | तब राजा ने अनुमति देकर मंत्री ने भगवान बुद्ध को राजमहल बुलाया |
भगवान बुद्ध का प्रभावी व्यक्तित्व और सुन्दर आचरण से युवराज शांत हुवा | भगवान बुद्ध के मधुर वाणी से युवराज को बुद्ध अच्छे लगने लगे | भगवान बुद्ध युवराज से बाते करते करते सीढ़ियों से उतर रहे थे तब भगवान बुद्ध को एक विषैला पौधा नजर आया , जब भगवान बुद्ध उसे छूने वाले थे तब युवराज कह पड़ा | " भगवान रुक जाए वह विषैला पौधा है उसे नहीं छुवे , और फिर वह पौधा उखेड़ के फेक दिया " | तब भगवान बुद्ध ने उसे पूछा के उसने वह पौधा तोड़कर क्यों फेका |
तब युवराज ने कहा के वह विषैला पौधा बड़ा होकर बहुत विषैला होगा | तब उससे निजाद पाना बहुत मुश्किल होगा | तब भगवान बुद्ध ने कहा हमें भी अपने गलत आचरण और व्यवहार को समय रहते ही ठीक करना चाहिए | और बुरे संस्कारो को उखाड़ देना चाहिए ताकि समय रहते फायदा हो सके | तब युवराज समझ गया और भगवान् बुद्ध को वचन दिया के वह अब उसका गलत आचरण सुधरेगा और अच्छा संस्कारी जीवन जियेगा |
नखरेल युवराज
यह कहानी उत्तर भारत की है जहा एक सुंदर और अच्छे व्यक्तिमत्व वाला युवराज था जो हमेशा बहुत सज धज के रहता था | उससे बहुत सारी लडकिया आकर्षित होती थी | जब उसे शादी करने को कहा तब उसने एक राजकुमारी बहुत पसंद आयी जिससे उसने शादी की | उन दिनों एक मर्द अनेक विवाह कर सकते थे | लेकिन उस युवराज को अपने पत्नी से अधिक प्रेम था इसिलिये उसने और शादी नही की | कुछ साल गुजरने के बाद एक दिन वह राजा बन गया | एक दिन वह अपने महल के सामने वाले रस्ते से गुजर रहा था तब उसने पेड़ के निचे बैठे भिखारी से मुलाकात हुवी |
तब राजा ने अपने मंत्री से कहा यह भिखारी कितना गंदा है , पता नहीं कितने दिन से नहाया नहीं होगा | तब भिखारी ने कहा "क्या बात करते हो मालिक , मुझसे एक रानी बहुत प्यार करती है और हर दोपहर मेरे लिए खाना लेकर आती है | " तब राजा को यकीन नही हुवा | दूसरे दिन राजा छुप कर देख रहा था के कही भिखारी सच तो नही कह रहा है |
तब उसने देखा की उसकी रानी खाना लेकर आयी और भिखारी से प्यार से बात करने लगी | तब राजा को बहुत गुस्सा आया | उसने रानी और भिखारी को फांसी की सजा सुनायी | तब मंत्रियो ने समझा बुझाकर राजा को ऐसा करने से रोका | तब राजा ने रानी और भिखारी को उसका राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया | तब रानी ख़ुशी से उस भिखारी के साथ दूसरे राज्य चली गयी |
मूर्खो को उपदेश नही देना चाहिए !
एक वन में बहुत वृक्ष थे | जहा अनेक पक्षी और बंदर रहते थे | जैसे जैसे बारिश के दिन पास आने लगे चिड़िया अपने आने वाले बच्चों के लिए घोंसला बनाने में व्यस्त हो गयी | उसी पेड़ पर एक बंदर था जिसे देखकर चिड़िया ने बंदर को कहा अभी कुछ महीनों में बारिश आयेगी तो काफी तकलीफ होगी इस लिए तुम्हें हमारे जैसा घोसला बनाने केलिए परिश्रम करना चाहिये | तब बंदर को लगा चिड़िया अपने आप को बहुत होशियार समझती है और उसको नीचा दिखाना चाहती है |
लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया | कुछ दिन बाद चिड़िया को अंडे हुवे जो घोसले में सुरक्षित थे | लेकिन चिड़िया ने हमेशा की तरह बंदर को कहा की कुछ करते क्यों नही तुम भी अपने लिये एक घोसला बनावो | इस बार बंदर को बहुत घुस्सा आया और क्रोधित होकर उसने वहा बनाये सारे घोसले और अंडो को फेक कर तहस नहस कर दिया |
हर कार्य का प्रमाण होता ही है |
एक समय पर एक गुरु के अनेक शिष्य उनसे शिक्षा अर्जित कर रहे थे | एक दिन गुरु ने अपने शिष्यों से कहा | " मै बहुत साल से तुम्हें सीखा रहा हु , लेकिन मैंने अभी तक गुरु दक्षिणा नही ली , मेरी बेटी अब विवाह के योग्य हो गयी लेकिन मेरे पास उसका विवाह करने केलिए ज्यादा साधन नही है , तुम सब ऐसा करो के अपने अपने घर से बिना किसी को बताये और पता न लगते हुवे कोई चीजे लावो जिससे मेरे बेटी के शादी केलिए आसानी हो सके | "
गुरु के पास कही सारे शिष्य थे , कुछ बहुत अमिर थे और कुछ सामान्य घर से थे | घर से लौटने के बाद सभी अपने घर से कुछ न कुछ उठाकर ले आये लेकिन एक शिष्य जो बोधिसत्त्व था कुछ नही ला सका | तब गुरु ने पूछा , " तुम खाली हात वापस क्यों आये ? " तब उसने कहा , " मैने बहुत प्रयास किया की कोई चीज बिना किसी को पता चले उठाकर ले आवु , लेकिन हर समय मेरा मन उस क्षण का गवाह था | " इसलिए वह वैसे ही वापस आ गया | उसके जवाब से गुरु बहुत प्रसन्न हुवे और सारे शिष्यों से कहा के वह सारी चीजें घर वापस कर दे | वे केवल उनकी परीक्षा लेना चाहते थे जिसमे शिष्य जो बोधिसत्त्व था वह सफल हो गया था | गुरु ने कहा ऐसा कोई क्षण नही है जिस पल हमारा मन गवाह नही होता इसीलिए हमें सदैव सजगता से बुराई से बचना है , जिससे विपरीत परिणामों से रक्षा होती है | बाद मे गुरु ने अपने बेटी की शादी शिष्य जो बोधिसत्त्व था उससे कर दी |
जातक कथा बोधिसत्व के अनेक जन्मों की कहानी है | जब बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुवी थी तब उनको उनके अनेक जन्मों की स्मृति याद आयी | बोधिसत्त्व अनेक जन्मों के अनुभवों से सिखता है जिससे वह प्रगल्भ बनता है | जातक कथावों से हमे बहुत कुछ सिखने को मिलता है | इन्हीं कहानियों को जातक कथा नाम से जाना जाता है | कहीं सारी जातक कथाये है | उनमे से कुछ को इस ब्लॉग मे शामिल किया गया है | बहुत सारी जातक कथाएँ प्राचीन अजंता गुफावों में चित्रित की गयी है |
एक किसान था । वह खेती करने के लिए दो बैल पालता था । वह बैल खेती में बड़ी मेहनत करते थे । पर किसान उन दोनों का कुछ खास ख़याल नहीं रखता था । उन दोनों के लिए बस कुछ सुखी घास डालता था । बहुत दिन ऐसे ही बिताने के बाद एक बैल दूसरे से बोला |
" हम इतनी मेहनत करते है और किसान हमें खाने के लिए सिर्फ कुछ सुखी घास और रहने के लिए यह गंदी सी जगह का ही इंतज़ाम कर पाया है । मैं तो इस फ़िजूल की मेहनत से परेशान हो गया हुं । हम दोनों से अच्छा तो उस किसान के सुवर है जो बिना कुछ किये दिन रात बहुत दिनों से अच्छा खाना खा रहे है । किसान उनका कितना ख्याल रखता है । "
यह बात सुनकर दूसरे बैल ने उसे कुछ दिन और रुकने के लिए कहता है । एक दिन किसान घर जल्दी आ जाता है । उसके साथ कुछ मेहमान भी होते है । दरअसल किसान उनको अपनी बेटी के लिए रिश्ता तय करने के लिए घर बुलाता है । रसोई घर में महिलाये जोरो से काम की तैयारी कर रही होती है । कुछ ही देर में किसान बाहर आता है और सुवरो को मुक्त करके उनका गला काट देता है ।
यह सारी घटना देखकर बोधिसत्व बैल पहले से कहता है "मैंने तुम्हें इसी दिन के लिए रुकने को कहा था , देखो मेहनत न करने का नतीजा !!! "
नीच लोगो से संगत का नतीजा
एक समय बोधिसत्व बिस्खोपरा के कुल में जन्म लेता है । बूढ़े होने पर वह बहुत बड़े बिस्खोपरा के टोली का सरदार बन जाता है । सबका ख़याल रखना और मार्गदर्शन करना उसका फर्ज होता है । कुछ दिन में उसके टोली में एक नन्हे बिस्खोपरा का जन्म लेता है । बचपन से ही उसकी दोस्ती बिल के पास रहने वाले छिपकली के बच्चे के साथ हो जाती है । सरदार उस नन्हे बिस्खोपरा के माता पिता को बहुत समझाता है के उसके बच्चे को छिपकली के बच्चे की संगत नहीं करने की सलाह दे । पर कुछ फायदा नहीं होता ।
सरदार यह भी कहता की इससे हम मुसीबत में पड सकते है । पर माता पिता नहीं उनका बचा सरदार की बात को गंभीरता से सोचते है । बच्चा छिपकली के बच्चे के साथ खेलते खेलते एक दिन बड़ा होने लगता है । बिस्खोपरा बच्चा छिपकली के बच्चे से जादा बड़ा होने लगता है । इससे छिपकली का बच्चा दिन बर दिन बिस्खोपरा से ईर्ष्या करने लगता है । वह सोचता है की वह एक साथ रह कर एक जैसा व्यवहार करते है पर बिस्खोपरा का बच्चा उससे जादा बड़ा हो रहा है और बहुत अधिक शानदार लग रहा है । पर वह बहुत दुर्बल लगता है उसके सामने ! पर वह कुछ नहीं कर पाता है ।
एक दिन जंगल में शिकारी आ जाते है । छिपकली का बच्चा शिकारी को बहकाकर बिस्खोपरा के पास ले आता है । बिस्खोपरा अपने बिल में जाता है । शिकारी बिल में आग लगा देते है । सारे बिस्खोपरा धुवे और आग के कारण बाहर आते है । शिकारी एक एक करके बहुत सारे बिस्खोपरा को मार देता है । बिस्खोपरा का सरदार और कुछ बिस्खोपरा भाग लेने में सफल होता है । बाद में बिस्खोपरा का सरदार कहता है देखा नीच जीव की
संगति का नतीजा !! हम सब टोली को उसी दिन भाग जाना चाहिए था जब बिस्खोपरा के बच्चे ने उस नीच के साथ दोस्ती की थी ।
स्वादिष्ट खाने का मोह
एक राजा था उसके आलीशान महल के पिछे बहुत सुन्दर बगीचा बनाया गया था । उसमे अनेक प्रकार के फलों के साथ आम के वृक्ष थे । सभी पेड़ पोैधे स्वादिष्ट फलो से बहराते रहते थे । उसका आनंद राजा शाम में लिया करता था । एक दिन एक नर हिरण को बगीचे का पता लगता है । तब वह बारी बारी से दोपहर आकर फूल पोैधे और फलो को तहस नहस करके बर्बाद करके और खाकर चले जाने लगता है ।
जब राजा को यह पता लगता है तब वह उस नर हिरन को पकड़ने का आदेश देता है पर उसे कोई पकड़ नहीं पाता । सारे सैनिक हैरान रह जाते है । कुछ दिन बाद माली जब राजा के पास आता है तो राजा सब बात उसे समज़ाता है ।
माली कहता है के वह हिरन को अकेले ही पकड़ देगा बस उसे कुछ सामान की जरुरत पड़ेगी । राजा सब सहयोग पहुँचाने का बंदोबस्त करता है ।
कुछ दिन बाद राजा काम काज निपटा कर कर जब वापस शाम को बगीचे में देखता है की माली ने हिरण को रस्सी से बाँध दिया है । तब राजा कहता है "तुमने अकेले ने यह काम कैसे किया । "
तब माली कहता है वह हर रोज घास पर शहद फैला दिया करता था । इससे उस हिरण को इतनी चटक पड गयी के हिरन रोज घास खाने आने लगा । जब वह उसे पकड़ने गया तो हिरन भागा भी नहीं क्योंकि उसे वह शहद से युक्त घास इतनी प्रिय है की उसने अपनी जान की परवाह भी नहीं की ।
मोक्ष
एक बार भगवान बुद्ध एक गांव में ठहरे हुवे थे | वहा एक गरीब आदमी रहता था | जब उसको पता चला के बुद्ध भगवान उसके गांव में ठहरे हुवे है ,वह जल्दी से उनको मिलने के लिए भाग पड़ा | उसने भगवान बुद्ध से पूछा के उसके पिता कुछ दिन पहले मर चुके है | उसने ब्राह्मणो को बहुत सारे पैसे देकर क्रियाकर्म किया है तो क्या उसके पिता स्वर्ग पहुंच चुके है या नहीं ? भगवान बुद्ध ने कुछ नहीं कहा | तब पागल होते हुवे उस इंसान ने कहा कृपया करके बताये के उसके पिता स्वर्ग पहुंचे या नहीं ? अगर नहीं पहुंचे तो कुछ कर्मकांड करके उनको स्वर्ग पहुंचा दे |
तब भगवान बुद्ध ने उसे एक माटी का मडका , घी और छोटे पत्थर लाने को कहा | जब वह वापस आया तो उसे बुद्ध ने घी और पत्थर मडके में डालकर नदी में जाने को कहकर लाठी से मडके को फोड़ने को कहा | और यह भी बताया के अगर घी पानी में डूब जाये और पत्थर तैरने लगे तो तभी वे बतायेंगे के उसके पिता स्वर्ग पहुंचे है या नहीं !
आदमी ने कहा के ये कैसे हो सकता है लेकिन उसने वैसे ही किया | तब पत्थर नदी में डूब गए और घी तैरने लगा | तब वह आदमी समझ गया के जैसा स्वभाव होगा वैसे ही गति मिलती है | भगवान बुद्ध ने कहा के वह कैसे किसीको को मोक्ष दिला सकते है | जैसा व्यक्ति का स्वभाव होगा वैसे ही उसको गति मिलेगी , फिर चाहे कितने भी कर्मकांड कर लो |
लोभ
एक आदमी था उसे एक दोस्त भी था लेकिन उसका दोस्त साधू बन गया था | वह साधू बड़ा ही नेक और त्यागी था , और अच्छे से साधू का जीवन जीता था | एक दिन साधू के गृहस्त मित्र ने शादी कर दी | उसकी बीवी बहुत जवान थी और यह उम्र से बड़ा था | एक दिन उसके बीवी ने लड़के को जन्म दिया | उनका परिवार झोपड़ी में नगर से दूर जंगल के पास रहता था | एक दिन उस औरत का पति बहुत बीमार पड़ गया | कभी कभी उस आदमी का साधू मित्र उसे मिलने आता था | अपनी मृत्यु नजदिग आते देखकर उस आदमी ने बहुत सारी स्वर्ण मुद्रा वो से भरा हुवा मडका साथ लेकर अपने मित्र को जंगल में जाने को कहा | जब वो दोनों जंगल पहुंचे एक जगह रुककर वह स्वर्ण मुद्रा वो से भरा मडका जमीन में गाड दिया और वहा कुछ निशान बना दिया | आदमी सोचता था की उसकी बिवी बहुत जवान है , जब वह मर जायेगा तो उसकी बिवी सारा सोना लेकर दूसरी शादी कर लेगी और उसके लड़के का ख़याल नहीं रखेगी |
आदमी ने साधू से कहा उसके मरने के बाद उसका लड़का जब अठारा साल का होगा तब उसे जंगल में ले जाकर उस जगह से सोना निकलने को कहे ताकि वह ठीक से जीवन जी सके | कुछ दिन बाद आदमी मर गया |
साधू ठीक से सन्यासी जीवन जीता था | उसे पैसों का मोह नहीं था |
जब लड़का बड़ा हुवा उसकी मा ने लडके को कहा की उसके पिता ने सोना जंगल में गाड़ दिया था | उस साधू से पूछो की वह उसे वहा तक ले जाए | जब लड़का अठारा साल का हुवा तो वह साधू राजी हुवा | वह हर रोज उसे जंगल में लेकर जाता लेकिन जैसे ही वह कुछ दूर पहुंचते , वह साधू लडके को खरी खोटी सुनाकर गालिया देने लग जाता | ऐसा बहुत दिन हुवा | हालाँकि बाकी समय साधू बड़ा अच्छा व्यवहार करता था , एक अच्छे संन्यासी की तरह !
ऐसा बहुत दिन चलता रहा | साधू जंगल में उसे ले जाता , अच्छा व्यवहार करता लेकिन कुछ समय बाद गालिया देते देते लड़के को वापस जंगल से बाहर ले आता | बाद में लड़का परेशान हो गया | उस नगर में उन दिनों एक बोधिसत्त्व भी रहता था | लड़का बोधिसत्त्व के पास राय मांगने चला गया | बोधिसत्व ने लड़के को कहा के वह "साधू से फिर कहे के जंगल में चले और उसके पिता ने जहा सोना गाड़ दिया था वो जगह दिखाए | जैसे ही वह साधू गालिया देने लगे उसे बाजू सरका के उसके पैरो के निचे की जमीन खोदना शुरू कर दे | "
लडके ने वैसा ही किया तब उसे उसके पिता ने गाड़ा हुवा सोना मिल गया |
बाद में लडका बोधिसत्व के पास गया ताकि वह शुक्रिया कर सके | लडके ने पूछा के उनको कैसे पता लगा की सोना उसके पैरो के निचे मिलेगा ?
बोधिसत्व ने कहा साधू अच्छा जीवन जीता था , त्यागी था | लेकिन ऐसा उसे क्या हो जाता के वह अशोभनीय व्यवहार करता और गालिया देने लगता | लोभ बड़ी बुरी बला है , वह साधू जब उस जगह आता तो उसमे लोभ और लालच जाग जाता और वह गालिया बकने लगता | इस तरह बोधिसत्व ने अनुमान लगाया के सोना वही गड़ा था जिस जगह आके वह साधू गालिया बकने लगता |
घटिया लोगो से नहीं उलझना चाहिए |
एक जंगल में एक शेर रहता था | उसका बड़ा डाम डौल था | वह बड़ा ही सुन्दर , चमकदार और युवा शेर था | उसका लोहा हर कोई मनाता था | उसकी बहुत तारीफ होती रहती थी जो भी उसे एक बार देखता था | उससे कोई भी शत्रुता नहीं करता था क्योंकि इतना साहस लाना कठिन था | एक बार शेर घूमते घूमते एक कीचड़ के पास आ गया वह बहुत ठंडा महसूस कर रहा था वहा पर भरी गर्मी में !
अचानक से झाड़ियों में से एक सुवर बहार निकल आया और शेर को गालिया बकने लगा | शेर को यह देखकर बहुत ग़ुस्सा आया | शेर ने उसे लड़ने की चुनौती दी | पर बाद में सुवर का दिमाग ठिकाने आ गया तो उसने बात को टालने के लिए अगले दिन आने को कहा | इधर सुवर बड़ा डर गया था , उसको खुद के बर्ताव पर पछतावा हो रहा था | वह रात भर सो नहीं पाया |
यह देखकर एक बंदर ने उसे सुझाव दिया की वह कीचड़ में रेंगकर उसमे नहाये और पूरा कीचड़ शरीर पे लगा दे | दूसरे दिन शेर लड़ने के लिए आया | लेकिन वहा पर वह उसने सुवर को कीचड़ से लथपथ पाया | उससे बदबू भी आ रही थी | जंगल के अलग अलग प्राणी भी आये थे मुकाबला देखने |
सुवर डरा हुवा था लेकिन वह कीचड़ में खड़े रहकर शेर को चुनौती दे रहा था | शेर तो अचंभित रह गया था सुवर का दुःसाहस देखकर | लेकिन पल भर में शेर के ख़याल में आया के वह खुद इतना साफ़ सुथरा है और सुवर इतना गन्दा और भद्दा है , उससे लड़कर उसका शरीर भी गंदा हो जायेगा | आखिर सुवर से मुकाबला जीतकर उसे क्या खास रुतबा मिलेगा ! , उल्टा मज़ाक होगा अगर वह भी कीचड़ में गंदा हो पड़े |
यह सोचकर वह शेर बिना लड़ाई किये वहा से वैसे ही लौट गया |
खोटी शान
एक राज्य में एक राजकुमार था जो जल्द ही राजा का पद संभालने वाला था | वह अक्सर अपने राज्य में वेश बदलकर घूमा करता था | एक दिन वह एक गांव के खेत में पहुंच गया वह अपने महल से काफी दूर आ गया था |
लड़की ने उसका बुरा हाल देखकर उसे पानी और खाना परोसा | लड़की के हाथों से लिए बैर उसे बहुत पसंद आये , वह पहली बार बेर से परिचित हुवा था | लड़की के पिता ने उसे कुटिया के बाहर सोने की अनुमति दी |
दूसरे दिन जब राजकुमार राहत महसूस कर रहा था तब किसान ने उसे खाने के साथ विदा कर दिया | राजकुमार बहुत अहसानमंद महसूस कर रहा था | उसे उस प्यारी लड़की की याद आती रहती थी | एक दिन राजकुमार अपने असली रूप में कुछ सैनिक लेकर उस किसान के पास पहुँचा और सारी हकीकत बताकर , उसने उसके बेटी से विवाह करने की इच्छा प्रगट की | किसान बहुत खुश हो गया था , उसने कभी नहीं सोचा था के उसे इतना अच्छा दामाद मिल सकता है |
शादी होने के बाद राजकुमार राजा बन गया | वह पत्नी के साथ खुश था | लेकिन रानी हमेशा चाहती थी के राजा उसे गांव की गवार न समझे , इसके लिए वह शालीनता से व्यवहार कराती थी | एक बार राजा ने सोचा के रानी के साथ बाहर घूमने चले जाते है | दोनों बाहर घूमने गए थे तब रानी एक पेड़ पर नजर आये पेड़ के बेर को देखकर राजा से कहती है ! " हे राजन , ये कौनसा पेड़ है जिसपर ये अजीब से फल लगे हुवे है |
राजा को बहुत ग़ुस्सा आया , उसने रानी को वापस अपने पिता के घर पहुंचा दिया | तब रानी को बहुत पछतावा हुवा | उसने राजा से माफ़ी मांगी , तब राजा ने कहा उसने उससे इस लिए विवाह किया था क्योंकि उसे उसके हाथ से लिए हुवे बेर बहुत पसंद आये थे | इसके अलावा उसकी सादगी और प्यारी अदा उसको भा गयी थी | लेकिन अब वह रानी झूठा व्यवहार और केवल दिखावा करने लगी थी जो किसी को भी प्रभावित नहीं कर सकता | यह कहकर राजा ने रानी को माफ़ करके वापस राज महल लाया | फिर वह वापस ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे |
खोटा पासा
एक बार बोधिसत्व अमिर परिवार मे पैदा हुवा लेकिन कुछ गलत कर्मो की वजह से जुवारी बना | शाम होते ही जुवा खेलने के लिए कुछ जुवारियों के अड्डे पर जाता था और अपना कमाया हुवा पैसा दाव पर लगाता था | लेकिन उसके दोस्त और वो एक दिन के बाद से हर दिन हारने लगे और हमेशा एक ही आदमी जितने लगा | इस तरह वह और उसके दोस्त कंगाल होने लगे और परेशान रहने लगे | लेकिन बोधिसत्व समझदार और बुद्धिमानी था | वह जनता था के जुवे में एक ही व्यक्ति के जितने की संभावना नहीं होती | ज़रूर वह आदमी कुछ चालाकी करता होगा जिससे वही हमेशा जितता है | तब उस जुवारी ने अपने दूसरे जुवारी से इसके बारे में बात की | एक दिन वे सारे उसी जुवारी के साथ जुवा खेलने बैठ गए | बोधिसत्व सिर्फ उस आदमी को ही देखता और उसकी चाल समझने की कोशिश करता |
तब उसे पता चला के वह चालाक आदमी कुछ पासे अपने कपडे में चुप के से छुपाके रखता था जिसपे एक की आंकड़े लिखे हुवे रहते | जब भी वो पासा फेकता जल्द से बिजली के गति से मन चाहे पासे निकालता और असली वाले पासे मुँह में छुपा लेता था | अब बोधिसत्व जान गया था | दूसरे दिन बोधिसत्व ने यह बात अपने दोस्तों से कही | उन सबने पासो पर कड़वा सा औषधी का लेप लगवाकर फिर से उस आदमी के साथ जुवा खेलने बैठ गए | जैसे ही उस आदमी पासा फेकते वक्त असली वाले पासे मुँह में डाले वह कड़वे स्वाद से बेहाल हो गया और ज़मीन पे लेटकर रोने पे आ गया | लेकिन बोधिसत्व का मन बुरा नहीं था उसने जल्दी से उस आदमी से उसके जुठ को कबुलवाकर उसे गरम पानी से ठीक करवाया और वह आदमी ठीक हो गया | बाद में उस आदमी को सारे पैसे लौटने पड़े |
किरकिरी
कही सारे व्यापारी बहुत परेशानी झेलते हुवे एक गांव से दूसरे गांव की राह पर बहुत सारा सामान लिए बैलगाड़ियों से जा रहे होते है | लेकिन वह राह आसान नहीं थी | कही सारी बाधावों का सामना करना पड़ता है | कड़ी धुप के बाद रात में बारिश होती है | दूसरे दिन कीचड़ से राह निकालनी पड़ती है | बैल , व्यापारी से लेकर नौकर चाकर कोई खुश नहीं होता , सब शिकायत करते है | लेकिन जब वह दूसरे गांव पहुंचते है तो सबको काफी सारा मुनाफा मिलता है | सब खूब मजे उड़ाते है और गांव वापस जा रहे होते है लेकिन सिर्फ बैलगाड़ियों के चक्को से कीर कीर कीर कीर की आवाज आती रहती है | तब बैलगाड़ी खींच रहा एक बैल दूसरे समझदार बैल से पूछता है , क्या बात है अब सब खुश है तो ये चक्के किस बात की शिकायत कर रहे है | तब समझदार बैल कहता है , " तुम उनकी तरफ ध्यान मत दो हमें हमेशा ऐसे लोग मिलते ही है जहा सब खुश हो और अच्छा चल रहा हो तो भी ऐसे लोग बिना वजह कीर कीर करेंगे ही | कोई न कोई होता ही है जो किसी भी स्थिति में नाखुश होता है | "
जन्म भूमि से अति प्रेम
एक नदी के पात्र में अनेक तरह के जिव जंतु रहते थे | वे सारे अपने इच्छा अनुरूप नदी में घूम कर वापस आ जाते थे | इन जिव जंतु को पहले ही पता चल जाता है के कब सूखा पड़ने वाला है | तब सारे जिव जंतु वहा से
एक दिन कुछ कुम्भार वहा की सुखी चिकनी मिट्टी जमा करने आये | जब वह खुदाई कर रहे थे तब एक प्रहार जोर से मिट्टी में धसे हुवे कछुवे पर पड़ी जो वहा से नहीं भागा था | तब उसे बड़ी पीड़ा से समझ आया के " वही रहना उचित है जहा चैन मिले चाहे वह जिस प्रकार की जगह रहे , चाहे वह जंगल हो , गाव अथवा जन्मभूमि हो लेकिन जहा आनंद मिलता है , उसी जगह को घर मानकर रहना चाहिए | "
राजा की पत्नी
एक राजा था जिसने एक नागराज को कुछ दबंगी बच्चों से बचाया था जो नागराज को मार डालने वाले थे | तब नागराज ने प्रसन्न होकर राजा को वरदान दिया के वह हर जानवर तथा जिव जंतु की भाषा समझ सकेगा | लेकिन एक शर्त थी अगर वह किसी को यह बताये के उसे जानवरों तथा जिव जंतुवो की भाषा अवगत है तो उसकी जान चली जाएगी | एक दिन राज्य का कार्यभार ख़तम करने के बाद अपने रानी के साथ बाग़ में कुछ खा रहा था तो एक टुकड़ा निचे गिर गया तभी वहा से गुज़र रही चिटी ने कहा 'अरे ! वाह कितना बड़ा स्वादिष्ट टुकड़ा है , इसे ले जाने के लिए तो एक बैल गाड़ी लगेगी | ' बाद में चीटी टुकड़े को उठाने की कोशिश करने लगी | यह सब सुनकर राजा को हसी आयी | तब पास में बैठी रानी को लगा के राजा उसपर ही हस रहे है | तब रानी ने इसका कारण राजा से पूछा के उसके श्रृंगार में कुछ गड़बड़ी तो नहीं है ?
लेकिन राजा ने बात को टाल दिया | जब राजा और रानी शयन कक्ष पहुंचे तो रानी तरह तरह के नखरे कर राजा से जानने की कोशिश करने लगी के राजा को किस बात पर हसी आयी थी | तब राजा ने बताया के वह नहीं बता सकता क्योंकि कारण बताने से उसकी जान भी जा सकती है | लेकिन रानी नहीं मानी | तब राजा ने रानी से कहा के वह कल बाग़ में बतायेगा |
जब राजा बाग़ में कुछ सहकारियों के साथ बाग़ से गुजर रहा था तब उसने एक बकरी और गधे की बात सुनी | बकरी ने गधे से कहा के "राजा तो गधे से भी जादा मुर्ख है | वह जब रानी को बतायेगा के उसको चिटी की भाषा समझ आयी थी तभी वह मर जायेगा यह बात जानकर भी राजा सिर्फ रानी को खुश करने के लिए जान से हात धो बैठे गा | जब राजा मर जायेगा तो रानी उसकी सारी सम्पत्ति पाकर दूसरे पुरुष के साथ मजे करेगी | " यह बात सुनकर राजा को अहसास हुवा के वह बहुत मूर्खता कर रहा है |
Jataka Katha Painting of this story at Ajanta Caves. |
कुशल व्यापारी
थेनगर नाम के एक गांव में एक सेथु नाम का युवक नौकरी की खोज कर रहा था | जब एक दिन वह घूम रहा था , राज्य का कोशागार उसके मित्र के साथ उसी रस्ते से गुज़र रहे थे | मित्र ने राज कोशागार से कहा के "राजा उससे बहुत खुश है क्योंकि राज्य का भंडार संपत्ति से बहुत भरा पड़ा है | आखिर तुम्हारे यश पाने का रहस्य क्या है ?" तब कोशागार ने कहा " व्यापार का अच्छा तरीका !" मित्र ने कहा मुझे कुछ समझ नहीं आया | तब राज कोशागर ने कहा में कैसे समझा सकता हूँ ? तब राह में चलते चलते एक मरा हुवा घुस जो बड़े चुवे के समान होता है | उसे दिखाते हुवे कोशागार ने कहा क्या तुम उस राह में पड़े चुवे को देख सकते हो ? अगर में अपना मन लगावु तो उस मरे हुवे चुवे से भी बिना पैसा लगाए व्यापार शुरू कर सकता हु | मित्र फिर सोच में पडकर हँसने लगा |
सेथू वह सारी बाते सुन रहा था क्योंकि वह उनके पीछे बाते सुनते हुवे चल रहा था | वह अचंभित होते हुवे उस मरे हुवे चुवे की तरफ देखने लगा | उसने सोचा राज कोषागार ने जरूर कुछ तथ्य के आधार पर ही कहा होगा | तब उसने बात पर अमल करने की ठानी | उसने मरे हुवे चुवे को उठाया और चल पड़ा | एक व्यापारी दूसरी तरफ से अपने बिल्ली के साथ आ रहा था | बिल्ली उसके हाथो से निचे उतर गयी और दौड़ ने लगी | तब सेथु को देखकर समझ गया के बिल्ली क्यों उसके तरफ भाग रही है | व्यापारी ने कहा अगर तुम ये मरा हुवा चुवा मुझे दोगे तो में तुम्हें एक पैसा दुँगा | इस तरह सेथु ने एक पैसा कमाया और राह में चलते हुवे सोचने लगा के वह उस एक पैसे का क्या कर सकता है | तब उसने कुछ सोचते हुवे एक दुकान पे गया और गूढ़ ख़रीदा | और गांव के बाहर जहा लोग फूल ख़रीद कर गुजरते है वहा पानी और गूढ़ के साथ राह देखने लगा |
तब उसे बहुत सारे लोग दिखे जो काम ख़तम करके पास से गुज़र रहे थे | एक बूढ़ा इंसान फूलों के साथ पास आया तब सेतु ने कहा "आप बहुत थक गए होंगे कुछ गूढ़ और पानी लेकर थकान में राहत पावो " तब उस बूढ़े इंसान ने आशीर्वाद देते हुवे कहा बेटा में बहुत आभारी हु | क्या तुम कल भी पानी लेकर आवोगे ?" तब कुछ फूल देकर वो बूढ़ा इंसान राह पे चल पड़ा | अगले दिन उसने बहुत सारे लोगो को जो फूल ला रहे थे उनको पानी पिलाया और उसके बदले उसे बहुत सारे फूल मिले |
वह सारे फूल लेकर शाम को मंदिर के बाहर फूल बेचने बैठ गया | वह बहुत खुश हुवा यह सोचकर के उसने पहली बार आठ पैसे कमा ये | बाद में वो और जादा गूढ़ और पानी बेचने के लिए उसी जगह जाने लगा | तब राह में उसे लोग मिले जो चावल के खेत में काम करके बहुत थके हुवे थे | सेथु ने उन्हें पानी पिलाया | तब उन मेहनती किसानो ने कहा अगर कुछ मदत की जरुरत पड़े तो ज़रुर कहना | ऐसे करते करते एक माह बित गया | जब वह एक दिन शाम को घर लौट रहा था तब बहुत जोरो से हवा बहने लगी | जोरो की हवा से सारी ओर झाड़ पौधों की डालिया ईधर उधर टूट कर बिखर गयी | उसने सोचा जब मरे हुवे चुवे से पैसे बनाये जा सकते है तो इन टूटे हुवे डालियो से क्यों नहीं | दूसरे दिन वह राजा के बगीचे के माली के पास गया | माली ने कहा के वह बहुत डरा हुवा है क्योंकि जब राजा लौटे गा तो बिखरी हुवी डलिया और पौधे देखकर बहुत डाटेगा | उसे नहीं लगता के वह अकेला सब साफ़ कर सकेगा | तब सेथु ने कहा डरो मत में तुम्हें सफाई में मदत करूँगा लेकिन उसके बदले तुम्हें सारी टूटी हुवी डलिया और पेड़ मुझे देने पड़ेंगे | सेथु सारी लकड़ी लेकर गया और कुम्भार को बेच दी | कुम्भार ने उसे सौ ताम्बे की राशिया दी | राह से जब सेथु गुजर रहा था तब उसने सुना के एक व्यापारी पाच सौ घोड़े लेकर आने वाला है | तब सेतु ने सोचा के वो उनको घास बेच सकेगा | तब वह किसानो के पास गया जिनको उसने पानी दिया था | सेथु को उन्होंने घास ले जाने केलिए अनुमति दी | सेथु पांच सौ घास की गड्डिया ले कर चल पड़ा | व्यापारी घोड़ो केलिए चारा खोज रहा था तब उसे सेतु दिखयी पड़ा | उसे देखकर वह बहुत खुश हुवा | व्यापारी ने एक हज़ार तांबे के मुद्राये देकर सारी घास ख़रीद ली | सेतु बहुत खुश हुवा था तब उसने सोचा के अब इन सारे पैसो से बड़ा व्यापार शुरु करने में वह सक्षम है | सेतु ने सुना के दूसरे दिन एक व्यापारी जहाज़ लेकर बहुत सामान बेचने आया है |
तब सेतु ने सोचा के नए कपडे ख़रीदे जाए | सेतु ने अच्छे कपड़े ख़रीदे और उन्हें पहनकर किनारे पहुंचा जहा जहाज़ लेकर आया था | तब सेतु ने उसका स्वागत किया जिससे व्यापारी बहुत खुश हुवा | सेतु ने कहा की वह उसका सारा सामान ख़रीदेगा लेकिन उसको पैसा लौटाने में कुछ समय लगेगा | उसने सौ तांबे के मुद्रा उसे अग्रिम / पेशगी के तोर पर दी | व्यापारी राजी हुवा | कुछ देर में दूसरे कही सारे व्यापारी आये तो उन्हें पता चला के सारा माल तो सेतु ख़रीद चुका है |
वह सारे व्यापारी सेतु के पास गए और एक लाख स्वर्ण मुद्रावो में उससे सारा माल ख़रीदा | सेतु ने महसूस किया के वह बहुत अमिर बन चूका है | उसको ख़याल आया के उसको राज कोषागार को धन्यवाद करना चाहिए | वह राज कोषागार के यहा जाकर उसने उन्हें सोने का चुवा उपहार में देना चाहा | तब कोषागार ने कहा उसने उसे पहली बार देखा है तब उसने उसकी मदत कब की | सारी बात बताने के बाद राज कोशागार बहुत प्रभावित हुवा | सेथु की लगन और होशियारी से खुश होकर राज कोषागार ने उसकी लड़की से सेथु का ब्याह करके सारी संपत्ति उसको सोप दी | उसको यकीन था के वह उसका अच्छे से ख़याल रखेगा |
बुराई की जड़
यह एक उत्तर भारत की कहानी है , जहा का राजा बहुत परेशान था उसके बेटे के व्यवहार के कारण ! उसका लड़का युवक होने वाला था लेकिन उसके व्यवहार में बिलकुल शालीनता नहीं थी | वह नौकरो से गाली गलोच करता था | किसी से भी अच्छे से व्यवहार नहीं करता | किसी के अहसान की कीमत नहीं समझता था | यहाँ तक के मंत्री लोगों का अपमान करता था | राजा ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो नहीं माना | बाद में राजा परेशान रहने लगा | राजा को डर था के उसके लडके का आचरण न केवल उसके व्यक्तित्व को ख़राब करेगा लेकिन राजा बनने के बाद लोग उसे गद्दी से उतार फेकेंगे |
प्रवचन करते करते भगवान बुद्ध एक बार एक शहर रुके हुवे थे | तब एक मंत्री ने राजा से कहा के भगवान बुद्ध पास शहर में रुके हुवे है | अगर भगवान बुद्ध राजी हुवे तो शायद युवराज का आचरण सुधर सकता है | तब राजा ने अनुमति देकर मंत्री ने भगवान बुद्ध को राजमहल बुलाया |
भगवान बुद्ध का प्रभावी व्यक्तित्व और सुन्दर आचरण से युवराज शांत हुवा | भगवान बुद्ध के मधुर वाणी से युवराज को बुद्ध अच्छे लगने लगे | भगवान बुद्ध युवराज से बाते करते करते सीढ़ियों से उतर रहे थे तब भगवान बुद्ध को एक विषैला पौधा नजर आया , जब भगवान बुद्ध उसे छूने वाले थे तब युवराज कह पड़ा | " भगवान रुक जाए वह विषैला पौधा है उसे नहीं छुवे , और फिर वह पौधा उखेड़ के फेक दिया " | तब भगवान बुद्ध ने उसे पूछा के उसने वह पौधा तोड़कर क्यों फेका |
तब युवराज ने कहा के वह विषैला पौधा बड़ा होकर बहुत विषैला होगा | तब उससे निजाद पाना बहुत मुश्किल होगा | तब भगवान बुद्ध ने कहा हमें भी अपने गलत आचरण और व्यवहार को समय रहते ही ठीक करना चाहिए | और बुरे संस्कारो को उखाड़ देना चाहिए ताकि समय रहते फायदा हो सके | तब युवराज समझ गया और भगवान् बुद्ध को वचन दिया के वह अब उसका गलत आचरण सुधरेगा और अच्छा संस्कारी जीवन जियेगा |
नखरेल युवराज
यह कहानी उत्तर भारत की है जहा एक सुंदर और अच्छे व्यक्तिमत्व वाला युवराज था जो हमेशा बहुत सज धज के रहता था | उससे बहुत सारी लडकिया आकर्षित होती थी | जब उसे शादी करने को कहा तब उसने एक राजकुमारी बहुत पसंद आयी जिससे उसने शादी की | उन दिनों एक मर्द अनेक विवाह कर सकते थे | लेकिन उस युवराज को अपने पत्नी से अधिक प्रेम था इसिलिये उसने और शादी नही की | कुछ साल गुजरने के बाद एक दिन वह राजा बन गया | एक दिन वह अपने महल के सामने वाले रस्ते से गुजर रहा था तब उसने पेड़ के निचे बैठे भिखारी से मुलाकात हुवी |
तब राजा ने अपने मंत्री से कहा यह भिखारी कितना गंदा है , पता नहीं कितने दिन से नहाया नहीं होगा | तब भिखारी ने कहा "क्या बात करते हो मालिक , मुझसे एक रानी बहुत प्यार करती है और हर दोपहर मेरे लिए खाना लेकर आती है | " तब राजा को यकीन नही हुवा | दूसरे दिन राजा छुप कर देख रहा था के कही भिखारी सच तो नही कह रहा है |
तब उसने देखा की उसकी रानी खाना लेकर आयी और भिखारी से प्यार से बात करने लगी | तब राजा को बहुत गुस्सा आया | उसने रानी और भिखारी को फांसी की सजा सुनायी | तब मंत्रियो ने समझा बुझाकर राजा को ऐसा करने से रोका | तब राजा ने रानी और भिखारी को उसका राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया | तब रानी ख़ुशी से उस भिखारी के साथ दूसरे राज्य चली गयी |
मूर्खो को उपदेश नही देना चाहिए !
एक वन में बहुत वृक्ष थे | जहा अनेक पक्षी और बंदर रहते थे | जैसे जैसे बारिश के दिन पास आने लगे चिड़िया अपने आने वाले बच्चों के लिए घोंसला बनाने में व्यस्त हो गयी | उसी पेड़ पर एक बंदर था जिसे देखकर चिड़िया ने बंदर को कहा अभी कुछ महीनों में बारिश आयेगी तो काफी तकलीफ होगी इस लिए तुम्हें हमारे जैसा घोसला बनाने केलिए परिश्रम करना चाहिये | तब बंदर को लगा चिड़िया अपने आप को बहुत होशियार समझती है और उसको नीचा दिखाना चाहती है |
लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया | कुछ दिन बाद चिड़िया को अंडे हुवे जो घोसले में सुरक्षित थे | लेकिन चिड़िया ने हमेशा की तरह बंदर को कहा की कुछ करते क्यों नही तुम भी अपने लिये एक घोसला बनावो | इस बार बंदर को बहुत घुस्सा आया और क्रोधित होकर उसने वहा बनाये सारे घोसले और अंडो को फेक कर तहस नहस कर दिया |
हर कार्य का प्रमाण होता ही है |
एक समय पर एक गुरु के अनेक शिष्य उनसे शिक्षा अर्जित कर रहे थे | एक दिन गुरु ने अपने शिष्यों से कहा | " मै बहुत साल से तुम्हें सीखा रहा हु , लेकिन मैंने अभी तक गुरु दक्षिणा नही ली , मेरी बेटी अब विवाह के योग्य हो गयी लेकिन मेरे पास उसका विवाह करने केलिए ज्यादा साधन नही है , तुम सब ऐसा करो के अपने अपने घर से बिना किसी को बताये और पता न लगते हुवे कोई चीजे लावो जिससे मेरे बेटी के शादी केलिए आसानी हो सके | "
गुरु के पास कही सारे शिष्य थे , कुछ बहुत अमिर थे और कुछ सामान्य घर से थे | घर से लौटने के बाद सभी अपने घर से कुछ न कुछ उठाकर ले आये लेकिन एक शिष्य जो बोधिसत्त्व था कुछ नही ला सका | तब गुरु ने पूछा , " तुम खाली हात वापस क्यों आये ? " तब उसने कहा , " मैने बहुत प्रयास किया की कोई चीज बिना किसी को पता चले उठाकर ले आवु , लेकिन हर समय मेरा मन उस क्षण का गवाह था | " इसलिए वह वैसे ही वापस आ गया | उसके जवाब से गुरु बहुत प्रसन्न हुवे और सारे शिष्यों से कहा के वह सारी चीजें घर वापस कर दे | वे केवल उनकी परीक्षा लेना चाहते थे जिसमे शिष्य जो बोधिसत्त्व था वह सफल हो गया था | गुरु ने कहा ऐसा कोई क्षण नही है जिस पल हमारा मन गवाह नही होता इसीलिए हमें सदैव सजगता से बुराई से बचना है , जिससे विपरीत परिणामों से रक्षा होती है | बाद मे गुरु ने अपने बेटी की शादी शिष्य जो बोधिसत्त्व था उससे कर दी |
जातक कथा बोधिसत्व के अनेक जन्मों की कहानी है | जब बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुवी थी तब उनको उनके अनेक जन्मों की स्मृति याद आयी | बोधिसत्त्व अनेक जन्मों के अनुभवों से सिखता है जिससे वह प्रगल्भ बनता है | जातक कथावों से हमे बहुत कुछ सिखने को मिलता है | इन्हीं कहानियों को जातक कथा नाम से जाना जाता है | कहीं सारी जातक कथाये है | उनमे से कुछ को इस ब्लॉग मे शामिल किया गया है | बहुत सारी जातक कथाएँ प्राचीन अजंता गुफावों में चित्रित की गयी है |