धम्मपद ३६३ कोकलिक वठु , धम्मपद ३०२ वज्जिपुत्तकाभिक्खु वठु

कोकलिक भिक्खु की कहानी | 

बुद्ध जब कोकलिक मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद कोकलिक भिक्खु के संदर्भ मे कहा | 

भिक्खु कोकलिक ने दो प्रमुख शिष्य भंते सारिपुत्त और भंते मोग्गल्लाना को गाली गलोच की थी | इस बुरे बर्ताव के कारण कोकलिक को ज़मीन ने निगल लिया था और पदुमा निरय मे जाना पड़ा था |  उसके भाग्य के बारे मे पता चलने पर , भिक्खुवों ने आपस मे कहा के कोकलिक को सजा भुगतनी पड़ी क्योंकि उसने खुदके जबान पर काबू नही रखा | उन भिक्खुवों से भगवान बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों , भिक्खु ने अपने जबान पर काबू रखना चाहिए , उसका आचरण अच्छा होना चाहिए , उसका मन शांत होना चाहिए , नियंत्रित और जैसे लगे वैसे नही होना चाहिए | " 

तब बुद्ध ने कहा |  

" वह भिक्खु जो अपना मुँह / वचन काबु मे रखता है , जो मन को संयमित रखके बुद्धिमानी से बोलता है , जो धम्म का अर्थ और पाठ समझाता है , उस भिक्खु के शब्द मधुर होते है  | "




धम्मपद ३०२ वज्जिपुत्तकाभिक्खु वठु 

वज्जिस राज्य के भिक्खु की कहानी | 

जब बुद्ध वेलुवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद वैशाली नगर जो की वज्जिस राज्य का हिस्सा था वहा रहने वाले भिक्खु के संदर्भ मे कहा | 

कृतिका के पुर्णिमा पर , वैशाली के लोग नक्षत्रो का त्योहार बड़ी मात्रा मे मानते थे | सारा नगर रोशनी से जगमगाता , और वहा बहुत प्रसन्नता से नाच गाना इत्यादि होता था | जैसे उसने नगर के ओर देखा , मठ मे अकेले , भिक्खु को भाग्य से अकेलेपन और असंतुष्टि अनुभव हुवा | नरमी से , उसने खुदसे बडबडाया , " ऐसा कोई नही हो सकता जिसका भाग्य मुझसे ख़राब हो | " उसी क्षण उसके सामने वन की रक्षा करने वाला देव प्रकट हुवा , और कहा , जो लोग नरक / निरय मे रहते है वे स्वर्ग मे रहने वालों से ईर्षा करते है , उसी प्रकार अनेक लोक उनकी इर्षा करते है जो वन मे अकेले रहते है | " वह बात सुनकर , भिक्खु को उन सच्चे बातों का अहसास हुवा और खेद भी हुवा के उसने अनेक भिक्खु के बारे मे सोचा ही नही | 

सवेरे सवेरे अगले दिन , भिक्खु बुद्ध के पास गया और सारी बात बता दी | जवाब मे , बुद्ध ने उससे सारे लोगो के कठिनाइयों के बारे मे बताया | 

बुद्ध ने तब यह धम्मपद कहा | 

" भिक्खु बनना मुश्किल है , भिक्खु बनके अभ्यास करते रहना मुश्किल है , ग्रहस्त का मुश्किल जीवन पीड़ादायी है , अलग स्वभाव वाले के साथ रहना पीड़ादायी है  | संसार मे भ्रमण करने वाला कायम दुःख के अधीन होता है ; इसलिए , संसार के यात्री न बनो , दुःख का सामना होने से बचने के लिए पुनः पुनः संसार के चक्र से बचो  | "

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