धम्मपद २२७ , २२८ , २२९ , २३० अतुल उपासका वठु
अतुल और गृहस्त अनुयायी की कहानी |
एक समय अतुल और उसके पाँच सो साथी , बुद्ध वाणी सुनने के लिए , थेरा रेवता के यहाँ गए | थेरा शेर की तरह बहुत अलग था , उसने उनसे कुछ नहीं कहा | वे सारे उससे बहुत अप्रसन्न थे इसलिये वे थेरा सारिपुत्त के पास गये | जब सारिपुत्त को पता चला के वे सारे क्यों आये है , उसने अभिधम्म की विस्तृत व्याख्या की | वह भी उन सबको नहीं भाया , तब उन्होंने शिकायत की के सारिपुत्त बहुत लम्बा और गंभीर वर्णन करता है | तब अतुल और उसके साथी थेरा आनंद के यहा गये | थेरा आनंद ने उनके लिए धम्म की केवल आवश्यक व्याख्या बताई | इस बार उन्होंने शिकायत की के थेरा आनंद बहुत संक्षिप्त और अधूरी जानकारी देता है | आखिर कर वे सारे भगवान बुद्ध के पास आये और कहा " भंते , हम सारे आपकी शिक्षा सुनने आये है , हम पहले दूसरे शिक्षकों से मिल चुके है अब आपके पास आये है , पर उन किसी से भी संतुष्ट नहीं है | थेरा रेवता हमें सिखाने की परेशानी नहीं लेता , सारिपुत्त बहुत थकावट कर देता है और वह जो सिखाता है वह हमारे समझ के बाहर है | जहा तक थेरा आनंद की बात है वह बहुत संक्षिप्त और अधूरी जानकारी लगी | हम सबको उन किसी का भी प्रवचन पसंद नहीं आया |
उन सबको भगवान बुद्ध ने कहा " मेरे अनुयायियों , दूसरों को दोष देना कोई नयी बात नहीं है | इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसकी कभी निंदा नहीं हुवी ; लोक राजा को दोष देते है , यहाँ तक के बुद्ध को भी दोष देते है | मुर्ख से प्रशंसा या तारीफ होनी महत्वपूर्ण नहीं है | दोष मिलना तभी मायने रखता है जब होशियार से दोष मिलता है , और वास्तव में तभी प्रशंसा है जब होशियार द्वारा प्रशंसा होती है | "
तब बुद्ध ने ये धम्मपद कहे |
" ये नया नहीं है , ओ अतुल ! , यह प्राचीन समय से होता आ रहा है | वे उसे दोष देते है जो खामोश रहता है , वे उसे कोसते है जो बहुत बोलता है , वे उसे दोष देते है जो कम बोलता है | दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसे दोष नहीं मिला | "
" ऐसा कोई नहीं हुवा , न कोई होगा , अभी भी नहीं है , जिसे हर समय प्रशंसा मिली हो या हर समय दोष मिला हो | "
" जब होशियार दिनों दिन उसकी प्रशंसा करता है , पता रहने पर के वह दोष रहित है , ज्ञान और सद्गति से प्रज्ञामय और संपन्न है , कोण है जो शुद्ध सोने जैसा हो ? देव लोक उसकी प्रशंसा करते है , उसकी महान ब्राह्मणों द्वारा भी प्रशंसा मिलती है | "
एक समय अतुल और उसके पाँच सो साथी , बुद्ध वाणी सुनने के लिए , थेरा रेवता के यहाँ गए | थेरा शेर की तरह बहुत अलग था , उसने उनसे कुछ नहीं कहा | वे सारे उससे बहुत अप्रसन्न थे इसलिये वे थेरा सारिपुत्त के पास गये | जब सारिपुत्त को पता चला के वे सारे क्यों आये है , उसने अभिधम्म की विस्तृत व्याख्या की | वह भी उन सबको नहीं भाया , तब उन्होंने शिकायत की के सारिपुत्त बहुत लम्बा और गंभीर वर्णन करता है | तब अतुल और उसके साथी थेरा आनंद के यहा गये | थेरा आनंद ने उनके लिए धम्म की केवल आवश्यक व्याख्या बताई | इस बार उन्होंने शिकायत की के थेरा आनंद बहुत संक्षिप्त और अधूरी जानकारी देता है | आखिर कर वे सारे भगवान बुद्ध के पास आये और कहा " भंते , हम सारे आपकी शिक्षा सुनने आये है , हम पहले दूसरे शिक्षकों से मिल चुके है अब आपके पास आये है , पर उन किसी से भी संतुष्ट नहीं है | थेरा रेवता हमें सिखाने की परेशानी नहीं लेता , सारिपुत्त बहुत थकावट कर देता है और वह जो सिखाता है वह हमारे समझ के बाहर है | जहा तक थेरा आनंद की बात है वह बहुत संक्षिप्त और अधूरी जानकारी लगी | हम सबको उन किसी का भी प्रवचन पसंद नहीं आया |
उन सबको भगवान बुद्ध ने कहा " मेरे अनुयायियों , दूसरों को दोष देना कोई नयी बात नहीं है | इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसकी कभी निंदा नहीं हुवी ; लोक राजा को दोष देते है , यहाँ तक के बुद्ध को भी दोष देते है | मुर्ख से प्रशंसा या तारीफ होनी महत्वपूर्ण नहीं है | दोष मिलना तभी मायने रखता है जब होशियार से दोष मिलता है , और वास्तव में तभी प्रशंसा है जब होशियार द्वारा प्रशंसा होती है | "
तब बुद्ध ने ये धम्मपद कहे |
" ये नया नहीं है , ओ अतुल ! , यह प्राचीन समय से होता आ रहा है | वे उसे दोष देते है जो खामोश रहता है , वे उसे कोसते है जो बहुत बोलता है , वे उसे दोष देते है जो कम बोलता है | दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसे दोष नहीं मिला | "
" ऐसा कोई नहीं हुवा , न कोई होगा , अभी भी नहीं है , जिसे हर समय प्रशंसा मिली हो या हर समय दोष मिला हो | "
" जब होशियार दिनों दिन उसकी प्रशंसा करता है , पता रहने पर के वह दोष रहित है , ज्ञान और सद्गति से प्रज्ञामय और संपन्न है , कोण है जो शुद्ध सोने जैसा हो ? देव लोक उसकी प्रशंसा करते है , उसकी महान ब्राह्मणों द्वारा भी प्रशंसा मिलती है | "