धम्मपद १८ सुमनदेवी वठु

सुमनदेवी की कहानी | 

भगवान बुद्ध जब जेतवन मठ मे सावत्थी नगर में रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद अनाथपिण्डिक के सबसे छोटे लड़की के संदर्भ में कहा | 

सावत्थी नगर में अनाथपिण्डिक और विशाखा के घर हर रोज दो हजार भिक्खुवों को खाना दिया जाता था | विशाखा के घर खाने की देखरेख उसकी पोती करती थी | अनाथपिण्डिक के घर खाने की देखरेख उसकी पहले सबसे बड़ी लड़की करती थी , बाद में दूसरी बड़ी बेटी फिर आखिर में सुमनदेवी | दो बड़ी बेटिया धम्म प्रवचन सुनकर सोतापना बनी , भिक्खुवों को खाना परोसने का और अच्छा काम करके सुमनदेवी सकदगामी बनी | 

तीनो बेटियों के विवाह कर दिये गए | बाद मे सुमनदेवी बिमार पडी और पिता को पुकारने लगी | जब उसके पिता आये उसने कहा ' छोटा भाई ' फिर गुजर गयी | उसके ऐसे कहने से अनाथपिण्डिक अचरज में था और वह परेशान रहा , सोच रहा था के बेटी बेहोश थी और ठीक मानसिक स्थिति मे नही थी जब वह मर गयी थी | इसलिए उसने बुद्ध से मुलाकात की और बेटी के मृत्यु का समाचार सुनाया | तब भगवान बुद्ध ने उस कुलीन अमिर आदमी से कहा के उसकी बेटी सही मानसिक स्थिति और पुरी तरह से होश मे थी जब वह गुज़र गयी | बुद्ध ने उसे यह भी कहा के उसने उसको वैसे क्यों कहा , सुमनदेवी को मग्गा फल प्राप्त हुवा था और वह फल उसके पिता से अधिक था | वह सकदगामी थी जबकि उसके पिता केवल सोतापना थे | अनाथपिण्डिक को यह भी बताया के सुमनदेवी का जन्म तुसित जगत में हुवा था | 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" यहाँ वह खुश है , इसके बाद भी खुश होगा , जो भलाई के काम करता है वह दोनों अस्तित्व मे खुश रहेगा  | ख़ुशी से वह कहता है ' मैंने भले काम किये है ' | वह बहुत खुश होता है जब वह ऊपरी जगत में पैदा होता है  | "

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