धम्मपद ५६ महाकस्सप थेरा वठु

थेरा महाकस्सप की कहानी | 

जब भगवान बुद्ध वेळुवन मठ में रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा महाकस्सप के संधर्भ में कहा | 

निरोधसमापति से निकालके थेरा महाकस्सप राजगृह नगर के गरीब रहने वाले इलाके मे भिक्षा के लिए गया | उसका उद्देश्य केवल इतना था के वह गरीब लोगों को पुण्य पाने का मौका दे रहा था , जो के निरोधसमापति साधना से जगे इंसान को भिक्षा मे दान देने से मिल सकता है | सक्का जो देवों का राजा है , उसने चाहा के वह थेरा महाकस्सप को भिक्षा में दान करके पुण्य कमाये , वह अपने पत्नी सुजाता के साथ राजगृह नगर गरीब जैसे वेशभूषा करके आया | थेरा महाकस्सप उनके द्वार रुका , गरीब जैसे कपडे पहने सक्का ने महाकस्सप का पात्र लेकर उसमे चावल और सब्जी परोसी , और स्वादिष्ट आहार की महक सारे नगर में फैली | तब थेरा महाकस्सप को अहसास हुवा के यह मामूली आदमी नही हो सकता , तब उसे यकीन हुवा के वह दरअसल देवों का राजा सक्का है | सक्का ने स्वीकार किया और कहा के वह भी बहुत गरीब था उसके पास कोई अवसर नही था जिससे वह किसी को भी कुछ दान कर सके बुद्ध के समय में | ऐसा कह के सक्का और उसकी पत्नी सुजाता ने आदर जताकर निकल गए | 

बुद्ध ने मठ से ही सक्का और सुजाता को देख लिया और बाकी भिक्खुवों को बताया के किस तरह उन्होंने थेरा महाकस्सप को भिक्षा दी | भिक्खुवों को अचरज हुवा के सक्का को कैसे पता चला के थेरा महाकस्सप निरोधसमापति समाधि से जगा था , और कैसे वह समय सही और शुभ था उसको भिक्षा देने केलिए | यह सवाल भगवान बुद्ध से पूछा गया , तब बुद्ध ने जवाब दिया , " भिक्खुवों , गुणवान लोगों की ख्याति जैसे मेरे पुत्र महाकस्सप की है , दूर और जादा फैलती है , वह देव लोक भी पहुँचती है | उसकी अच्छी ख्याति जानते हुवे , सक्का खुद भिक्षा देने के लिए आया था | "

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 

" फल और चंदन की लकड़ी का सुवास बहुत फीका होता है , पर गुणवान की सुगंध बहुत गहरी होती है , वह देव लोक के निवास स्थान तक जा पहुँच ती है  | "

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