धम्मपद ७ , ८ महाकालाथेरा वठु
थेरा महाकाल की कहानी |
जब बुद्ध सेतब्य गाव के नजदिग रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा महाकाल और उसके भाई कुलकाल के संदर्भ मे कही |
महाकाल और कुलकाल दो भाई सेतब्य गाव के व्यापारी थे , एक समय जब अपने व्यापार के लिए जब वह यात्रा कर रहे थे , उनको बुद्ध ने दिये प्रवचन सुनने का मौका मिला था | प्रवचन सुनने के बाद महाकाल ने भगवान बुद्ध से भिक्खु संघ में शामिल होने की अनुमति चाही | कुलकाल भी भिक्खु संघ मे शामिल हुवा लेकिन उसका उद्देश्य था के वह उसके भाई को साथ लेकर बाहर आ सके |
महाकाल गंभीरता से समाधि तपस्या मे अभ्यास करता था और ख़ुशी से क्षय और अस्थिरता पे ध्यान करता रहा | आखिरकार उसको अंतर्दृष्टि हुवी और अरहंत बन गया |
बाद में बुद्ध और उनके शिष्य , दोनों भाई मिलकर , सिमसप वन में ठहरे थे , सेतब्य गाव के पास | जब वह ठहरे हुवे थे कुलकला के पूर्व पत्नियों ने बुद्ध और उनके शिष्यों को घर पे बुलाया | कुलकाला खुद आगे गया बुद्ध और उनके शिष्यों के लिए आसन व्यवस्था करने को | वहा पहुँचते ही पुर्व पत्नियों ने कुलकाला को गृहस्थ के कपडे पहना दिए |
अगले दिन महाकाल के पुर्व पत्नियों ने भी बुद्ध और उनके शिष्यों को अपने घर बुलाया ताकि वे भी महाकाल को गृहस्थ जीवन में वापस ला सके | खाना खाने के बाद कुलकाला के पत्नियों ने बुद्ध से महाकाल को वही रहने के लिए अनुमोदन मांगा |
गाव के बाहरी दरवाजे के पास आने पर भिक्खुवों ने अपनी नाराजी और शंका जताई | वे असंतोषी थे क्योंकि उनको लग रहा था के कुलकाला की तरह उसका भाई महाकाल भी संघ छोड़ने के लिए अपने पुर्व पत्नियों से मजबुर किया जायेगा | इसपर भगवान बुद्ध ने कहा था के वे दोनों भाई एक जैसे नही है | कुलकाला काम वासनावों में लिप्त था और आलसी एवं क्षीण था , वह केवल एक क्षीण पेड़ की तरह था | महाकाल दुसरी तरफ मेहनती , गतिशील और बुद्ध , धम्म और संघ में गहरी आस्था रखता था , वह पर्वत के शील जैसा था |
तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो अपने मन को सुहावनी चीजों पे टिकाता है , जिसके इंद्रिय वश में नहीं , खाने मे असंयमित है , और अलसी है और ऊर्जा नही है , वह आखिरकार मारा से व्याकुल होगा , बिलकुल उसी तरह जैसे आंधी भरी हवा कमजोर वृक्ष को उखाड़ देती है | "
" जो अपना मन अपने अशुद्धीयों पर लगाता है , जिसका अपने इन्द्रियों पर पुरा काबु है और आस्था एवं ऊर्जा से परिपूर्ण है , मारा से व्याकुल नही हो पायेगा , जिस तरह आंधी भरी हवा पर्वत और चट्टान को हिला नही सकते | "
उसी दौरान महाकाल के पुर्व पत्नियों ने उसे घेरा और उसके पिले वस्त्र हरन करने की कोशिश की | थेरा ने उनके रवैये को भापकर खड़े होकर आकाश मे उड़कर अपने असामान्य शक्ति से घर के छत से बाहर निकला | वह बुद्ध के चरण में आ पहुँचा जब ऊपरी बताये धम्मपद बुद्ध पुरा कर ही रहे थे | उसी वक्त वहा जमे हुवे भिक्खुवों को सोतापना फल का अनुभव हुवा |
जब बुद्ध सेतब्य गाव के नजदिग रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा महाकाल और उसके भाई कुलकाल के संदर्भ मे कही |
महाकाल और कुलकाल दो भाई सेतब्य गाव के व्यापारी थे , एक समय जब अपने व्यापार के लिए जब वह यात्रा कर रहे थे , उनको बुद्ध ने दिये प्रवचन सुनने का मौका मिला था | प्रवचन सुनने के बाद महाकाल ने भगवान बुद्ध से भिक्खु संघ में शामिल होने की अनुमति चाही | कुलकाल भी भिक्खु संघ मे शामिल हुवा लेकिन उसका उद्देश्य था के वह उसके भाई को साथ लेकर बाहर आ सके |
महाकाल गंभीरता से समाधि तपस्या मे अभ्यास करता था और ख़ुशी से क्षय और अस्थिरता पे ध्यान करता रहा | आखिरकार उसको अंतर्दृष्टि हुवी और अरहंत बन गया |
बाद में बुद्ध और उनके शिष्य , दोनों भाई मिलकर , सिमसप वन में ठहरे थे , सेतब्य गाव के पास | जब वह ठहरे हुवे थे कुलकला के पूर्व पत्नियों ने बुद्ध और उनके शिष्यों को घर पे बुलाया | कुलकाला खुद आगे गया बुद्ध और उनके शिष्यों के लिए आसन व्यवस्था करने को | वहा पहुँचते ही पुर्व पत्नियों ने कुलकाला को गृहस्थ के कपडे पहना दिए |
अगले दिन महाकाल के पुर्व पत्नियों ने भी बुद्ध और उनके शिष्यों को अपने घर बुलाया ताकि वे भी महाकाल को गृहस्थ जीवन में वापस ला सके | खाना खाने के बाद कुलकाला के पत्नियों ने बुद्ध से महाकाल को वही रहने के लिए अनुमोदन मांगा |
गाव के बाहरी दरवाजे के पास आने पर भिक्खुवों ने अपनी नाराजी और शंका जताई | वे असंतोषी थे क्योंकि उनको लग रहा था के कुलकाला की तरह उसका भाई महाकाल भी संघ छोड़ने के लिए अपने पुर्व पत्नियों से मजबुर किया जायेगा | इसपर भगवान बुद्ध ने कहा था के वे दोनों भाई एक जैसे नही है | कुलकाला काम वासनावों में लिप्त था और आलसी एवं क्षीण था , वह केवल एक क्षीण पेड़ की तरह था | महाकाल दुसरी तरफ मेहनती , गतिशील और बुद्ध , धम्म और संघ में गहरी आस्था रखता था , वह पर्वत के शील जैसा था |
तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो अपने मन को सुहावनी चीजों पे टिकाता है , जिसके इंद्रिय वश में नहीं , खाने मे असंयमित है , और अलसी है और ऊर्जा नही है , वह आखिरकार मारा से व्याकुल होगा , बिलकुल उसी तरह जैसे आंधी भरी हवा कमजोर वृक्ष को उखाड़ देती है | "
" जो अपना मन अपने अशुद्धीयों पर लगाता है , जिसका अपने इन्द्रियों पर पुरा काबु है और आस्था एवं ऊर्जा से परिपूर्ण है , मारा से व्याकुल नही हो पायेगा , जिस तरह आंधी भरी हवा पर्वत और चट्टान को हिला नही सकते | "
उसी दौरान महाकाल के पुर्व पत्नियों ने उसे घेरा और उसके पिले वस्त्र हरन करने की कोशिश की | थेरा ने उनके रवैये को भापकर खड़े होकर आकाश मे उड़कर अपने असामान्य शक्ति से घर के छत से बाहर निकला | वह बुद्ध के चरण में आ पहुँचा जब ऊपरी बताये धम्मपद बुद्ध पुरा कर ही रहे थे | उसी वक्त वहा जमे हुवे भिक्खुवों को सोतापना फल का अनुभव हुवा |