धम्मपद ९७ सारिपुत्तथेरा वठु , धम्मपद १४५ सुखसामणेर वठु

थेरा सारिपुत्त की कहानी | 

जब बुद्ध भगवान जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा सारिपुत्त के संदर्भ मे कहा | 

तिस भिक्खु गाव से भगवान बुद्ध को आदर व्यक्त करने जेतवन मठ आये थे | बुद्ध को पता था के उन भिक्खुवों का अरहंत बनने का समय आ गया है | तब उन्होंने ने सारिपुत्त को बुलाया , और उन भिक्खुवों के सामने उन्होंने पूछा , " मेरा पुत्र सारिपुत्त , क्या तुम स्वीकार करते हो के कोई चेतनावों पर ध्यान लगाने से कोई निब्बान / निर्वाण अनुभव कर सकता है ? " सारिपुत्त ने जवाब दिया , " भंते , निब्बान का अनुभव चेतनावों के ऊपर ध्यान करने के बारे , मैं इसलिए स्वीकार नही करता क्योंकि मेरी आप पर श्रद्धा है , जिन व्यक्तिओं ने निजी तोर पर अनुभव नही किया है , वे ही दूसरों के कहने पर विश्वास कर लेते है | " सारिपुत्त का उत्तर भिक्खुवों को ठीक से समझ नही आया | उन्होंने ने सोचा के सारिपुत्त ने अभी तक गलत धारणायें नही त्याग दी है , अभी तक उसकी बुद्ध पर श्रद्धा नही है | 

तब बुद्ध ने उनको सारिपुत्त के कहने का मतलब समझाने का प्रयास किया | " भिक्खुवों , सारिपुत्त का कहने का  मतलब केवल यह है कि , वह स्वीकार करता है के चेतनावों पर ध्यान लगाने से निर्वाण अनुभव किया जा सकता है , लेकिन उसका यह विश्वास उसके खुद के अनुभव करने के बाद हुवा है , इसलिये नही के मैने या किसी और ने बताया है | सारिपुत्त की मुझ मे श्रद्धा है , उसको अच्छे और बुरे कर्मो के नतीजों मे भी विश्वास है | " 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" वह जो आसानी से विश्वास न रखता हो , जिसने सुख साधन रहित ( निर्वाण ) का अनुभव किया है , जिसने पुनर्जन्मों की कड़िया तोड़ी है , जिसने अच्छे और बुरे कर्मो के परिणामों को नष्ट किया है , जिसने सारी आसक्ति बाहर कर दी है , असल मे कुलीन (अरहंत )व्यक्ति है  | "

प्रवचन के अंत मे भिक्खु अरहंत बन गए | 





धम्मपद १४५ सुखसामणेर वठु 

किसान पानी सिंचता है , बाण बेचने वाला बाणों को मजबूत बनाता है , सुतार लकड़ी पर काम करता है , होशियार खुद को सुधारते है | 

श्रामणेर सुख की कहानी | 

जब बुद्ध श्रामणेर मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद सुख नाम के श्रामणेर के संधर्भ मे कहा | 

थेरा सारिपुत्त द्वारा सुख को सात वर्ष के आयु मे ही श्रामणेर बनाया गया था | आठवे दिन श्रामणेर बनने के बाद वह थेरा सारिपुत्त के साथ भिक्षा मांगने निकला | मार्गक्रमण करते हुवे उनको रास्ते मे किसान मिले जो खेत मे पानी सींच रहे थे , कुछ बाण बेचने वाले बाणों को सीधा कर रहे थे और कुछ सुतार कुछ बैल गाड़ी के चक्को जैसा बना रहे थे , इत्यादि | यह देखकर उसने थेरा सारिपुत्त से पुछा क्या हम इन अचेतन / निर्जीव चीजों का जो मन मे आया वो बना सकते है , तब थेरा सारिपुत्त ने हा कहा | तब नन्हे श्रामणेर ने विचार किया के तब कोई कारन नही है के इंसान अपने मन को काबु न कर सके और शांति और अंतदृष्टि ध्यान न कर सके | 

तब , उसने थेरा सारिपुत्त से वापस मठ जाने की अनुमति मांगी | वहा , उसने खुद को कमरे मे बंद किया और एकांत मे ध्यान करने बैठ गया | सक्का / देवों का राजा और देवों ने भी मठ को बहुत शांत रखकर उसकी मदत की | उसी दिन , श्रामणेर बनने के आठवे दिन बाद , सुख अरहंत बन गया | इसके बारे मे , बुद्ध ने भिक्खुवों के समूह को कहा , " जब व्यक्ति चाव से धम्म का अभ्यास करता है , सक्का और देव भी उसकी मदत और सुरक्षा करते है | मैने खुद सारिपुत्त को प्रवेश द्वार पर रखा ताकी सुख को अभ्यास में विघ्न न पहुंच सके | श्रामणेर ने किसानो को पानी सिंचते हुवे , बान बनाने वालों को बाणों को सीधा करते देखा और सुतारों को चक्का और दूसरी चींजे बनाते देखा , इससे प्रेरणा लेकर वह अपने मन को तयार करके धम्म का अभ्यास कर रहा है | तो , वह अब अरहंत बन गया है | "

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 

" किसान पानी सिंचता है , बाण बेचने वाला बाणों को मजबूत बनाता है , सुतार लकड़ी पर काम करता है , होशियार खुदको सुधारते है  | "

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