धम्मपद २१२ अन्नताराकुटुम्बिका वठु , धम्मपद ९० जीवकपन्हा वठु
एक अमिर गृहस्थ की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक अमिर ग्रहस्थ के संधर्भ मे कहा जिसने पुत्र खोया था |
एक समय , एक गृहस्थ पुत्र के मृत्यु के कारन बहुत तनाव मे था | वह लगातार कब्रिस्थान जाकर बहुत रोया | एक बार बहुत सवेरे , बुद्ध ने एक अमिर आदमी को अंतदृष्टि से देखा | इसिलिये भिक्खु को साथ लेकर वे उस आदमी के घर जा पहुँचे | वहा भगवान बुद्ध ने उससे पूछा के वह इतना दुःखी क्यों है | तब आदमी ने बुद्ध को उसके पुत्र के बारे मे बताया जो मर गया था और उससे हो रहे दुःख और कष्ट के बारे मे बताया | उससे बुद्ध ने कहा , " मेरे अनुयायी , मृत्यु केवल एक जगह पर नही होती | सभी सजीव जो जन्मे है उनको एक वक्त मरना ही है | वास्तव मे जीवन मृत्यु से समाप्त होता है | तुमने हमेशा स्मरण रखना चाहिए के जीवन मृत्यु से ख़तम हो जाता है | केवल यह कल्पना न करो के सिर्फ तुम्हारा प्रिय पुत्र मृत्यु के अधीन है | इतने तणावग्रस्थ मत हो , न ही हिलो | दुःख और भय स्नेह से उत्पन्न होते है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" स्नेह खिन्नता उत्पन्न करता है , स्नेह भय उत्पन्न करता है | जिसे किसी प्रकार का स्नेह नही है उसे कोई दुःख नही , तो उसे भय कैसे हो सकता है | "
वह ( अरहंत ) जिसकी की यात्रा समाप्त हो गयी है , जो दुःखों से मुक्त है और सारी ( स्कंद मूलतत्त्वों ) से , जिसने हर बंधन का नाश किया है , वहा कोई तनाव नही होता |
जिविका के प्रश्न की कहानी |
जब बुद्ध जिविका के आम्र कुंज के मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने जिविका के प्रश्न के उत्तर मे कहा |
देवदत्त ने , एक समय , बुद्ध को मारने की कोशिश की जब बुद्ध गिज्जाकुटा पर्वत के निचे से गुजर रहे थे , उसने एक बड़ा पत्थर निचे धकेल दिया | वह पत्थर पर्वत एक किनारे पे लगकर दिशा बदल गया लेकिन उस पत्थर का छोटा सा टुकड़ा बुद्ध के पैर के अँगूठे पर लगा | तब बुद्ध को जिविका के अम्र कुंज के मठ ले जाया गया | वहा , जिविका जो बहुत माना जाना वैद्य था , बुद्ध को देखने आया , उसने कुछ औषध बुद्ध के अँगूठे पर लगाकर पट्टी बांध दी | बाद मे जिविका नगर के दूसरे मरीज को देखने चला गया , लेकिन वादा किया के वह शाम को लौटेगा और पट्टी निकलेगा | जब जिविका रात को लौटा तब नगर के द्वार बंद हो चुके थे इसिलिये वह बुद्ध के पास नही आ सका | वह बहुत खिन्न था क्योंकी अगर पट्टी नही निकाली जाती तो बुद्ध का शरीर तप जाने वाला था और सारा शरीर बिमार हो सकता था |
उसी समय , बुद्ध ने थेरा आनंद को पट्टी निकालने को कहा और पाया के जखम ठीक हो चुकी थी | जिविका अगले सुबह बुद्ध के पास आया और उसने पुछा के बुद्ध को बहुत वेदना और तनाव का सामना करना पड़ा क्या !
बुद्ध ने जवाब दिया , " जीवका ! जबसे मै बुद्ध बना हु तबसे मेरे लिए कुछ भी वेदना या तनाव नही है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" वह जिसकी ( अरहंत ) की यात्रा समाप्त हो गयी है , जो दुःख और सब ( पांच स्कंद ) से मुक्त है , जिसने सारे बेड़ियों को नष्ट कर दिया है , वहा कोई तनाव नही होता | "
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक अमिर ग्रहस्थ के संधर्भ मे कहा जिसने पुत्र खोया था |
एक समय , एक गृहस्थ पुत्र के मृत्यु के कारन बहुत तनाव मे था | वह लगातार कब्रिस्थान जाकर बहुत रोया | एक बार बहुत सवेरे , बुद्ध ने एक अमिर आदमी को अंतदृष्टि से देखा | इसिलिये भिक्खु को साथ लेकर वे उस आदमी के घर जा पहुँचे | वहा भगवान बुद्ध ने उससे पूछा के वह इतना दुःखी क्यों है | तब आदमी ने बुद्ध को उसके पुत्र के बारे मे बताया जो मर गया था और उससे हो रहे दुःख और कष्ट के बारे मे बताया | उससे बुद्ध ने कहा , " मेरे अनुयायी , मृत्यु केवल एक जगह पर नही होती | सभी सजीव जो जन्मे है उनको एक वक्त मरना ही है | वास्तव मे जीवन मृत्यु से समाप्त होता है | तुमने हमेशा स्मरण रखना चाहिए के जीवन मृत्यु से ख़तम हो जाता है | केवल यह कल्पना न करो के सिर्फ तुम्हारा प्रिय पुत्र मृत्यु के अधीन है | इतने तणावग्रस्थ मत हो , न ही हिलो | दुःख और भय स्नेह से उत्पन्न होते है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" स्नेह खिन्नता उत्पन्न करता है , स्नेह भय उत्पन्न करता है | जिसे किसी प्रकार का स्नेह नही है उसे कोई दुःख नही , तो उसे भय कैसे हो सकता है | "
धम्मपद ९० जीवकपन्हा वठु
वह ( अरहंत ) जिसकी की यात्रा समाप्त हो गयी है , जो दुःखों से मुक्त है और सारी ( स्कंद मूलतत्त्वों ) से , जिसने हर बंधन का नाश किया है , वहा कोई तनाव नही होता |
जिविका के प्रश्न की कहानी |
जब बुद्ध जिविका के आम्र कुंज के मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने जिविका के प्रश्न के उत्तर मे कहा |
देवदत्त ने , एक समय , बुद्ध को मारने की कोशिश की जब बुद्ध गिज्जाकुटा पर्वत के निचे से गुजर रहे थे , उसने एक बड़ा पत्थर निचे धकेल दिया | वह पत्थर पर्वत एक किनारे पे लगकर दिशा बदल गया लेकिन उस पत्थर का छोटा सा टुकड़ा बुद्ध के पैर के अँगूठे पर लगा | तब बुद्ध को जिविका के अम्र कुंज के मठ ले जाया गया | वहा , जिविका जो बहुत माना जाना वैद्य था , बुद्ध को देखने आया , उसने कुछ औषध बुद्ध के अँगूठे पर लगाकर पट्टी बांध दी | बाद मे जिविका नगर के दूसरे मरीज को देखने चला गया , लेकिन वादा किया के वह शाम को लौटेगा और पट्टी निकलेगा | जब जिविका रात को लौटा तब नगर के द्वार बंद हो चुके थे इसिलिये वह बुद्ध के पास नही आ सका | वह बहुत खिन्न था क्योंकी अगर पट्टी नही निकाली जाती तो बुद्ध का शरीर तप जाने वाला था और सारा शरीर बिमार हो सकता था |
उसी समय , बुद्ध ने थेरा आनंद को पट्टी निकालने को कहा और पाया के जखम ठीक हो चुकी थी | जिविका अगले सुबह बुद्ध के पास आया और उसने पुछा के बुद्ध को बहुत वेदना और तनाव का सामना करना पड़ा क्या !
बुद्ध ने जवाब दिया , " जीवका ! जबसे मै बुद्ध बना हु तबसे मेरे लिए कुछ भी वेदना या तनाव नही है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" वह जिसकी ( अरहंत ) की यात्रा समाप्त हो गयी है , जो दुःख और सब ( पांच स्कंद ) से मुक्त है , जिसने सारे बेड़ियों को नष्ट कर दिया है , वहा कोई तनाव नही होता | "