धम्मपद ३०७ दुकारितफलपिलिता वठु , धम्मपद ९९ अन्नतरा इत्थी वठु
उनकी कहानी जिन्होंने बुरे कर्म करने से दुःख झेला |
जब भगवान बुद्ध वेळुवन मठ में ठहरे हुवे थे उन्होंने यह धम्मपद कुछ पेतावों के संदर्भ में कहा |
एक समय , भंते महा मोग्गल्लाना थेरा लक्खण के साथ गिज्जहकुटा पहाड़ी से निचे आ रहे थे तब उन्होंने पेता देखा | जब वे वापस मठ जा रहे थे , थेरा महा मोग्गल्लाना ने थेरा लक्खण से कहा , बुद्ध के उपस्थिति में , के उसने पेता देखा है जिसका केवल कंकाल है | तब उसने कहा उसने भी पाँच भिक्खुवों को उनका शरीर अग्नि में जलता देखा है | उन भिक्खुवों का कहना सुनकर , बुद्ध ने कहा , " कस्सप बुद्ध के समय , उन भिक्खुवों ने बहुत बुरे कर्म किये | उन बुरे कर्म के वजह से वह निरय में दुख झेलते रहे और वे अब बची हुवी सजा पेता बनके काट रहे है | "
तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" बहुत लोग जो पिले वस्त्र अपने गले तक पहनते है जिनमे बुराई जमा होती है और विचारों , शब्द और कर्म से अनियंत्रित होते है , बुरे कर्मों के वजह से वे निरय में पैदा होते है | "
धम्मपद ९९ अन्नतरा इत्थी वठु
वन आनंददायी है , पर दुनियादारी में व्यस्त लोगों को वह आनंदमय नहीं लगता , केवल जिनमें जुनून नही है उनको वन आनंददायी लगता है , वे उनके लिए विषयासक्त आनंद नहीं ढुंडते |
महिला की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ में रह रहे थे , उन्होंने यह धम्मपद एक शंकायुक्त चरित्र वाली स्त्री के बारे में कहा |
एक भिक्खु , बुद्ध से विपस्सना की विधि जानने के बाद वन में साधना करने बैठा था | एक स्त्री जो शंका उत्पन्न करने वाली चरित्र की थी उस बगीचे में आयी , और उसका ध्यान आकर्षित कर उसका शील भंग करने का प्रयास करने लगी | तब थेरा डर गया | उसी वक्त उसका शरीर आनंददायी अहसास से कांप ने लगा | बुद्ध ने उसे मठ से देखा , और उनके अनन्यसाधारण शक्ति के द्वारा , प्रकाशमयी किरणे भेजी , और भिक्खु को संदेश पहुँचा , जो कह रहा था , " मेरे पुत्र , दुनियादारी वाले लोग जिस जगह विषय वासना ढुंडते है वह जगह भिक्खुवों के लिये नही है , भिक्खुवों ने उस जगह आनंद मानना चाहिए जहा दुनियावाले लोग प्रसन्नता नहीं अनुभव करते | "
तब बुद्ध ने यह पंक्ति कही |
" वन आनंददायी है , पर दुनियादारी में व्यस्त लोगों को वह आनंदमय नहीं लगता , केवल जिनमें जुनून नही है उनको वन आनंददायी लगता है , वे उनके लिए विषयासक्त आनंद नहीं ढुंडते | "
जब भगवान बुद्ध वेळुवन मठ में ठहरे हुवे थे उन्होंने यह धम्मपद कुछ पेतावों के संदर्भ में कहा |
एक समय , भंते महा मोग्गल्लाना थेरा लक्खण के साथ गिज्जहकुटा पहाड़ी से निचे आ रहे थे तब उन्होंने पेता देखा | जब वे वापस मठ जा रहे थे , थेरा महा मोग्गल्लाना ने थेरा लक्खण से कहा , बुद्ध के उपस्थिति में , के उसने पेता देखा है जिसका केवल कंकाल है | तब उसने कहा उसने भी पाँच भिक्खुवों को उनका शरीर अग्नि में जलता देखा है | उन भिक्खुवों का कहना सुनकर , बुद्ध ने कहा , " कस्सप बुद्ध के समय , उन भिक्खुवों ने बहुत बुरे कर्म किये | उन बुरे कर्म के वजह से वह निरय में दुख झेलते रहे और वे अब बची हुवी सजा पेता बनके काट रहे है | "
तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" बहुत लोग जो पिले वस्त्र अपने गले तक पहनते है जिनमे बुराई जमा होती है और विचारों , शब्द और कर्म से अनियंत्रित होते है , बुरे कर्मों के वजह से वे निरय में पैदा होते है | "
धम्मपद ९९ अन्नतरा इत्थी वठु
वन आनंददायी है , पर दुनियादारी में व्यस्त लोगों को वह आनंदमय नहीं लगता , केवल जिनमें जुनून नही है उनको वन आनंददायी लगता है , वे उनके लिए विषयासक्त आनंद नहीं ढुंडते |
महिला की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ में रह रहे थे , उन्होंने यह धम्मपद एक शंकायुक्त चरित्र वाली स्त्री के बारे में कहा |
एक भिक्खु , बुद्ध से विपस्सना की विधि जानने के बाद वन में साधना करने बैठा था | एक स्त्री जो शंका उत्पन्न करने वाली चरित्र की थी उस बगीचे में आयी , और उसका ध्यान आकर्षित कर उसका शील भंग करने का प्रयास करने लगी | तब थेरा डर गया | उसी वक्त उसका शरीर आनंददायी अहसास से कांप ने लगा | बुद्ध ने उसे मठ से देखा , और उनके अनन्यसाधारण शक्ति के द्वारा , प्रकाशमयी किरणे भेजी , और भिक्खु को संदेश पहुँचा , जो कह रहा था , " मेरे पुत्र , दुनियादारी वाले लोग जिस जगह विषय वासना ढुंडते है वह जगह भिक्खुवों के लिये नही है , भिक्खुवों ने उस जगह आनंद मानना चाहिए जहा दुनियावाले लोग प्रसन्नता नहीं अनुभव करते | "
तब बुद्ध ने यह पंक्ति कही |
" वन आनंददायी है , पर दुनियादारी में व्यस्त लोगों को वह आनंदमय नहीं लगता , केवल जिनमें जुनून नही है उनको वन आनंददायी लगता है , वे उनके लिए विषयासक्त आनंद नहीं ढुंडते | "