धम्मपद २०१ कोसलरन्नो पराजय वठु , धम्मपद ८४ धम्मिकथेरा वठु

कोसल के राजा के पराजय की कहानी | 

जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धमपद उन्होंने अजातसत्तु से पराजित हुवे कोसल के राजा के संदर्भ मे कहा , अजातसत्तु उसका भतीजा था | 

अजातसत्तु के खिलाफ लढते लढते कोसल के राजा की तीन बार हार हुवी | अजातसत्तु राजा बिम्बिसार और रानी वहेदी जो कोसल के राजा की बहन थी उनका का बेटा था | कोसल का राजा बहुत शर्म महसूस कर रहा था और हार से बहुत उदास था | तब उसने विलाप मे कहा , " क्या कलंक है ! मैं इस लड़के को हरा नही सकता जिसकी अभी भी माँ के दूध की गंध आती है | यही अच्छा रहेगा के मैं मर जावु | उदास और शर्मिंदगी के कारण उसने खाना खाना बंद किया , और अपने पलंग पर ही रहा | राजा के तनाव की खबर जंगल मे आग फैलती है उस तरह फैली और जब बुद्ध को इस के बारे मे पता चला , उन्होंने कहा , " भिक्खुवों ! जब जित होती है , शत्रुता और घृणा बढ़ती है , जिसकी पराजय होती है वह क्लेश और पीड़ा सहता है | "

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" विजय पाना शत्रुता निर्माण करता है , पराजित कष्ट मे जीता है , शांती से रहने वाला सुख से जीता है  , हार और पराजय त्याग कर  | "



धम्मपद ८४ धम्मिकथेरा वठु 

थेरा धम्मिक की कहानी | 

बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा धम्मिक के संदर्भ मे कहा | 

धम्मिक सावत्थी नगर मे अपने पत्नी के साथ रहता था | एक दिन उसने अपने गर्भवती पत्नी से कहा के वह भिक्खु बनना चाहता है | उसके पत्नी ने याचना की के वह बच्चे के पैदा होने तक रुके | जब बच्चा पैदा हुवा तो उसने फिर से अपने पत्नी से अनुमति मांगी | तब पत्नी ने फिर से कहा के वह बच्चे को चलने इतना बड़ा होने तक रुके | तब धम्मिक ने विचार किया के , " अपने पत्नी की की अनुमति माँगना काम नही आ रहा | मुझे खुद की मुक्ति के लिए खुद ही प्रयास करना चाहिए | " दृढ़ निच्छय करके , उसने खुद का घर छोड़ा और भिक्खु बन गया | उसने बुद्ध से ध्यान धारणा / विप्पसना साधना सिखी और मेहनत और लगन से अभ्यास किया और जल्दी ही अरहंत बन गया | 

उसके बाद जब बेटा थोड़ा बड़ा हुवा तो वह भी पिता जैसा बनना चाहता था | तब उसकी माँ और उसका बेटा दोनो ने संघ मे दीक्षा ली और भिक्खु बनने के बाद वे भी अरहंत बन गए | 

भिक्खुवों के समूह ने , बुद्ध को बताया के किस प्रकार धम्मिक भिक्खु बना और अरहंत बन गया और उसकी पत्नी और पुत्र भी अरहंत बन गए | उनको बुध्द ने कहा , " भिक्खुवों , बुद्धिमान व्यक्ति संपत्ति या समृद्धि की इच्छा बुरे कर्म करके नही रखता , चाहे वह खुद के लिए हो या दूसरों के लिए | वह केवल उसके खुद के पुनर्जन्मों ( संसार ) से मुक्ति के लिए धम्म को समझकर और उसके आचरण से काम करता है | "

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 

" उसके खुद या दूसरों के लिए , वह बुरा नही करता , न ही वह पुत्र , पुत्री या संपत्ति या राज पाठ की चाह रखता है बुरा काम करके , नही वह यश पाने की आशा करता है गलत आचरण से , ऐसा व्यक्ति वास्तव मे कुलीन , बुद्धिमान और सहज है  | "

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