धम्मपद २६० , २६१ लकुण्डकभड़ीया थेरा वठु

थेरा भद्दिय की कहानी | 

जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा भद्दिय के संदर्भ मे कहा | उसे लकुण्डका भद्दिय भी कहा जाता था क्योंकि वह कद से छोटा था | 

एक दिन , तिस भिक्खु बुद्ध को आदर व्यक्त करने आये | बुद्ध को पता था के उन भिक्खुवों का अरहंत बनने का समय पक चुका है | तब बुद्ध ने उनसे पूछा के उन्होंने कक्ष मे आने से पहले थेरा को देखा था ! तब उन्होंने जवाब दिया के उन्होंने किसी थेरा को नहीं देखा आते समय पर केवल एक युवा श्रामणेर को देखा जब वे अंदर आ रहे थे | उनके कहने के बाद बुध्द ने उनसे कहा , " भिक्खुवों ! , वह व्यक्ति श्रामणेर नही है , वह जेष्ठ भिक्खु है पर वह शरीर से छोटा और बहुत नम्र है | मै कहता हु कोई सिर्फ इसलिए थेरा नही है के वह उम्र से बड़ा और वैसा दिखता है , केवल जो चार आर्य सत्यों को अच्छे से समझता है और दूसरों को क्षति नही पहुँचता उसे थेरा कहते है | " 

वह थेरा केवल इसलिये नही है क्योंकि उसका सर सफ़ेद है , जो केवल आयु से बड़ा हुवा है उसे कहते है " व्यर्थ मे बुढ़ा होना " | 

सिर्फ वह बुद्धिमान इंसान जो चार आर्य सत्य और धम्म समझता हो , जो अहिसंक और सदाचारी है , जो अपने इंद्रियों पर काबू रखता है और नैतिक मलिनता से परे है उसे थेरा कहते है | 

उपदेश के अंत मे वे तिस भिक्खु अरहंत बने | 

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