धम्मपद ६३ गन्थिभेदकाकरा वठु , धम्मपद ५० पवेय्य आजीवका वठु
दो चोरों की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने दो चोरों के संदर्भ मे कहा |
एक समय , दो चोर उच्चक्के गृहस्थ अनुयायी के समूह मे घुस गए जब वह जेतवन मठ जा रहे थे , जहा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे | उनमे से एक चोर ने प्रवचन लक्षपूर्वक सुना और वह सोतापन्न हो गया , हलाकि दूसरा चोर कोई प्रवचन सुन नही पाया क्योंकि उसका सारा लक्ष लोगों की चीजें चुराने पे लगा था और वह कुछ अनुयायियों से कुछ पैसे छीन ने मे भी सफल हुवा था | प्रवचन ख़तम होने के बाद वे दोने चोर वापस चले गए और दूसरा चोर जो चोरी करने में सफल रहा था उसके घर खाना बनाया | उसके बीवी ने पहले चोर को ताना कसा , " तुम बहुत बुद्धिमान हो , तुम्हारे पास कुछ भी नही है जिससे अपने घर कुछ पका सको " | यह कटाक्ष सुनकर , पहले चोर ने खुद से विचार मे कहा , " यह औरत बहुत मुर्ख है जो खुद को बहुत होशियार समझती है | " बाद में कुछ रिश्तेदारों के साथ वह सुधारा हुवा चोर बुद्ध के पास गया और सारी बात बताई |
उस आदमी से बुद्ध ने कहा |
" मुर्ख जिसे पता है के वह मुर्ख है , उसे इस लिए बुद्धिमान कहा जा सकता है , पर मुर्ख जो खुद को बुद्धिमान समझता है वह मुर्ख है | "
संभाषण ख़तम होने पर उसके सारे रिश्तेदारों को सोतापन्न फल का लाभ हुवा |
धम्मपद ५० पवेय्य आजीवका वठु
पवेय्य योगी की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद योगी पवेय्य और एक अमिर महिला के संदर्भ मे कहा |
सावत्थी के एक अमिर महिला ने पवेय्या को दत्तक लिया था , अपने बच्चे की तरह और उसकी हर ज़रूरतों का ख़याल रखती | जब उसने अपने पड़ोसियों को बुद्ध की तारीफ करते सुना तो उसने बुद्ध को अपने घर भिक्षा देने के लिए बुलाया | बुद्ध को उसने अच्छा खाना परोसा | खाना खाने के बाद जब बुद्ध प्रशंसा मे कह रहे थे , पवेय्य जो दूसरे कक्ष में था ग़ुस्से से आग बबुला हो गया | उसने उस अमिर महिला को बुद्ध का आदरतिथ्य करने के लिए शाप और आरोप लगाये | महिला ने उसे चिल्लाते और शाप देते हुवे सुना इसलिए वह बुद्ध क्या कहा रहे थे उसपर ध्यान नही दे पायी | बुद्ध ने उससे कहा उन शाप और खतरों की चिंता मत करो , पर सिर्फ खुद के अच्छे या बुरे कामों के बारे मे लक्ष दो |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने दो चोरों के संदर्भ मे कहा |
एक समय , दो चोर उच्चक्के गृहस्थ अनुयायी के समूह मे घुस गए जब वह जेतवन मठ जा रहे थे , जहा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे | उनमे से एक चोर ने प्रवचन लक्षपूर्वक सुना और वह सोतापन्न हो गया , हलाकि दूसरा चोर कोई प्रवचन सुन नही पाया क्योंकि उसका सारा लक्ष लोगों की चीजें चुराने पे लगा था और वह कुछ अनुयायियों से कुछ पैसे छीन ने मे भी सफल हुवा था | प्रवचन ख़तम होने के बाद वे दोने चोर वापस चले गए और दूसरा चोर जो चोरी करने में सफल रहा था उसके घर खाना बनाया | उसके बीवी ने पहले चोर को ताना कसा , " तुम बहुत बुद्धिमान हो , तुम्हारे पास कुछ भी नही है जिससे अपने घर कुछ पका सको " | यह कटाक्ष सुनकर , पहले चोर ने खुद से विचार मे कहा , " यह औरत बहुत मुर्ख है जो खुद को बहुत होशियार समझती है | " बाद में कुछ रिश्तेदारों के साथ वह सुधारा हुवा चोर बुद्ध के पास गया और सारी बात बताई |
उस आदमी से बुद्ध ने कहा |
" मुर्ख जिसे पता है के वह मुर्ख है , उसे इस लिए बुद्धिमान कहा जा सकता है , पर मुर्ख जो खुद को बुद्धिमान समझता है वह मुर्ख है | "
संभाषण ख़तम होने पर उसके सारे रिश्तेदारों को सोतापन्न फल का लाभ हुवा |
धम्मपद ५० पवेय्य आजीवका वठु
पवेय्य योगी की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद योगी पवेय्य और एक अमिर महिला के संदर्भ मे कहा |
सावत्थी के एक अमिर महिला ने पवेय्या को दत्तक लिया था , अपने बच्चे की तरह और उसकी हर ज़रूरतों का ख़याल रखती | जब उसने अपने पड़ोसियों को बुद्ध की तारीफ करते सुना तो उसने बुद्ध को अपने घर भिक्षा देने के लिए बुलाया | बुद्ध को उसने अच्छा खाना परोसा | खाना खाने के बाद जब बुद्ध प्रशंसा मे कह रहे थे , पवेय्य जो दूसरे कक्ष में था ग़ुस्से से आग बबुला हो गया | उसने उस अमिर महिला को बुद्ध का आदरतिथ्य करने के लिए शाप और आरोप लगाये | महिला ने उसे चिल्लाते और शाप देते हुवे सुना इसलिए वह बुद्ध क्या कहा रहे थे उसपर ध्यान नही दे पायी | बुद्ध ने उससे कहा उन शाप और खतरों की चिंता मत करो , पर सिर्फ खुद के अच्छे या बुरे कामों के बारे मे लक्ष दो |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" दूसरों के दोष हमें नहीं देखने चाहिए , नहीं उनके काम , अच्छे या बुरे काम | खुद ने सिर्फ यही देखना चाहिए के खुद ने अच्छे या बुरे काम किये है या नही | "