धम्मपद ९८ खदिरावनियारेवताथेरा वठु
थेरा रेवता की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे , यह धम्मपद कहा , एकेसिय वन के थेरा रेवता के बारे मे कहा |
रेवता प्रमुख शिष्य सारिपुत्त का छोटा भाई था | वह केवल अकेला भाई था , सारिपुत्त के भाई और बहनों मे जिसने अपना घर और गृहस्थ जीवन त्याग नही किया था | उसके माता पिता उसकी शादी के लिए चिंतित थे | रेवता केवल सात वर्ष का था जब उसके माता पिता ने उसके शादी के लिए लड़की चुनी | शादी के रसम निभाते समय उसके रिश्तेदारों ने उससे पुछा के तुम चाहोगे न की तुम्हारी पत्नी तुम्हारी नानी की उमर तक तुम्हारा साथ निभाये | जब उसने उसके नानी को देखा जो १२० साल आयु की थी तो उसने सोचा के क्या उसकी पत्नी इतनी बुढ़ी हो जाएगी , उसको अहसास हुवा के सारे जीवित प्राणी क्षय और वृद्ध होते है | वह घर से भाग गया और सीधे मठ मे चला गया , जहा तिस भिक्खु रहते थे | उन भिक्खुवों से भंते सारिपुत्त ने विनंती की थी के उसका छोटा भाई मठ मे आये तो उसे श्रामणेर बना दिया जाये | उसके अनुसार उसको श्रामणेर बनाकर सारिपुत्त को बताया गया |
श्रामणेर रेवता ने उन भिक्खुवों से विपस्सना साधना सिखी और एकेसिय वन मे चला गया , जो ३० योजना दुर था मठ से | वर्षा के अंत तक वह अरहंत बन गया | थेरा सारिपुत्त ने तब बुद्ध से रेवता को मिलने जाने के लिए अनुमति मांगी , बुद्ध ने कहा के वे भी उसके साथ चलेंगे | थेरा सिवली और दूसरे पाँच सौ भिक्खु भी साथ निकल पड़े |
यात्रा लंबी थी , रास्ते ऊबड़ खाबड़ थे और जगह निर्मनुष्य थी , लेकिन देवतावों ने बुद्ध और भिक्खुवों के सारी ज़रूरतों का खयाल रखा | हर योजना पर विहार और अन्न दिया , और उन्होंने एक योजना प्रति दिन पार किया | जब बुद्ध को पता चला के बुद्ध उससे मिलने आने वाले है तो उसने बुद्ध के स्वागत की तैयारी की | उसने अपने असामान्य शक्ति से बुद्ध के लिए खास मठ बनाया , और बाकी पाँच सो भिक्खुवों के लिए मठ बनाया और उनको आराम से रहने दिया जबतक वे वहा रुके |
वापस जाते वक्त उन्होंने उसी गति से मार्गक्रमण किया जिस गति से वे वहा आये थे , और माह के अंत तक पुब्बरमा मठ पहुँचे जो सावत्थी नगर के पुर्व मे था | वहा से वह विसाखा के घर गए , जिसने उन सबको भिक्षा मे अन्न दिया | खाना समाप्त होने पर विशाखा ने बुद्ध से पुछा क्या जहा रेवता एकेसिय वन मे रह रहा है वह सुखमय था !
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" गाव मे या वन मे , घाटी मे या पहाड़ी के उपर , जहा भी अरहत रहते है , वह जगह सुखमय होती है | "
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे , यह धम्मपद कहा , एकेसिय वन के थेरा रेवता के बारे मे कहा |
रेवता प्रमुख शिष्य सारिपुत्त का छोटा भाई था | वह केवल अकेला भाई था , सारिपुत्त के भाई और बहनों मे जिसने अपना घर और गृहस्थ जीवन त्याग नही किया था | उसके माता पिता उसकी शादी के लिए चिंतित थे | रेवता केवल सात वर्ष का था जब उसके माता पिता ने उसके शादी के लिए लड़की चुनी | शादी के रसम निभाते समय उसके रिश्तेदारों ने उससे पुछा के तुम चाहोगे न की तुम्हारी पत्नी तुम्हारी नानी की उमर तक तुम्हारा साथ निभाये | जब उसने उसके नानी को देखा जो १२० साल आयु की थी तो उसने सोचा के क्या उसकी पत्नी इतनी बुढ़ी हो जाएगी , उसको अहसास हुवा के सारे जीवित प्राणी क्षय और वृद्ध होते है | वह घर से भाग गया और सीधे मठ मे चला गया , जहा तिस भिक्खु रहते थे | उन भिक्खुवों से भंते सारिपुत्त ने विनंती की थी के उसका छोटा भाई मठ मे आये तो उसे श्रामणेर बना दिया जाये | उसके अनुसार उसको श्रामणेर बनाकर सारिपुत्त को बताया गया |
श्रामणेर रेवता ने उन भिक्खुवों से विपस्सना साधना सिखी और एकेसिय वन मे चला गया , जो ३० योजना दुर था मठ से | वर्षा के अंत तक वह अरहंत बन गया | थेरा सारिपुत्त ने तब बुद्ध से रेवता को मिलने जाने के लिए अनुमति मांगी , बुद्ध ने कहा के वे भी उसके साथ चलेंगे | थेरा सिवली और दूसरे पाँच सौ भिक्खु भी साथ निकल पड़े |
यात्रा लंबी थी , रास्ते ऊबड़ खाबड़ थे और जगह निर्मनुष्य थी , लेकिन देवतावों ने बुद्ध और भिक्खुवों के सारी ज़रूरतों का खयाल रखा | हर योजना पर विहार और अन्न दिया , और उन्होंने एक योजना प्रति दिन पार किया | जब बुद्ध को पता चला के बुद्ध उससे मिलने आने वाले है तो उसने बुद्ध के स्वागत की तैयारी की | उसने अपने असामान्य शक्ति से बुद्ध के लिए खास मठ बनाया , और बाकी पाँच सो भिक्खुवों के लिए मठ बनाया और उनको आराम से रहने दिया जबतक वे वहा रुके |
वापस जाते वक्त उन्होंने उसी गति से मार्गक्रमण किया जिस गति से वे वहा आये थे , और माह के अंत तक पुब्बरमा मठ पहुँचे जो सावत्थी नगर के पुर्व मे था | वहा से वह विसाखा के घर गए , जिसने उन सबको भिक्षा मे अन्न दिया | खाना समाप्त होने पर विशाखा ने बुद्ध से पुछा क्या जहा रेवता एकेसिय वन मे रह रहा है वह सुखमय था !
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" गाव मे या वन मे , घाटी मे या पहाड़ी के उपर , जहा भी अरहत रहते है , वह जगह सुखमय होती है | "