धम्मपद २१६ अन्नताराब्राह्मण वठु , धम्मपद ७१ अहिपेटा वठु
एक ब्राह्मण की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद उस ब्राह्मण के बारे मे कहा जो खेती करता था |
एक ब्राह्मण सावत्थी नगर मे रहता था जो बौद्ध नही था | लेकिन बुद्ध को पता था के वह ब्राह्मण कुछ समय मे सोतापन्न बन सकेगा | तो बुद्ध उसके यहाँ गये जहा वह खेत की जताई कर रहा था और उससे बात की | ब्राह्मण ने मिलनसार होकर बात की और बुद्ध को शुक्रिया अदा किया क्योंकि बुद्ध ने उसमे और उसके काम मे रूचि ली | एक दिन उसने बुद्ध से कहा , " समन गौतम , जब मै खेत से चावल जमा करूँगा तब कुछ चावल मै तुम्हें उपहार में दुंगा फिर ही मै उसे उपयोग करूँगा | मै चावल नही खावुंगा जब तक के मै कुछ चावल उन्हें तुमको उपहार में न दे सकु | " लेकिन बुद्ध को पहले से ही पता था के वह ब्राह्मण खेत से चावल नही पा सकेगा उस साल , पर बुद्ध चुप रहे |
तब , रात में ब्राह्मण के फसल निकालने से पहले , बारिश का बहुत पानी का बाढ़ आया जिससे सारी फसल बह गयी | ब्राह्मण बहुत तनाव में था , क्योंकि वह उसके मित्र समन गौतम को कोई चावल उपहार मे नही दे सकता था |
बुद्ध उस ब्राह्मण के घर गये और ब्राह्मण ने बुद्ध को बताया के कैसे बाढ़ के पानी ने सारी फसल बहा दी | इसके जवाब मे बुद्ध ने कहा , " ब्राह्मण , तुम दुःख का कारण नही जानते , पर मैं जानता हुं , अगर भय और दुःख उत्पन्न हो , वह आसक्ति के कारण उत्पन्न होता है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" आसक्ति दुःख उत्पन्न करती है , आसक्ति भय उत्पन्न करती है | वह जो आसक्ति से मुक्त हो उसे कोई दुःख नही होता , उसे भय कैसे हो सकता है ? "
धम्मपद ७१ अहिपेटा वठु
अहिपेटा की कहानी |
जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ में रह तब यह धम्मपद उन्होंने पेता भुत के संदर्भ मे कही |
प्रमुख अनुयायी महा मोग्गल्लाना भिक्षा मांगने के लिए थेरा लक्खण के साथ राजगहा नगर मे चल पड़े थे | कुछ देखने पर उसने स्मित हास्य किया लेकिन कुछ नही कहा | जब वे वापस मठ जा रहे थे तब , तेरा महा मोग्गल्लाना ने थेरा लक्खण से कहा उसने पेता भूत देखा था जिसका सिर मानव का था लेकिन धड़ साप का इसलिये वह हस पड़ा था | बुद्ध ने कहा उन्होंने भी वही पेता भूत देखा है जब वह बुद्ध बने थे | बुद्ध ने वर्णन भी किया के , बहुत समय पहले , वहा पच्चेकबुद्ध हुवा करता था , जिसका हर कोई सम्मान करता था | लोगो को उसके मठ जाने के लिये खेत पार करना पड़ता था | खेत के मालिक को लगा के बहुत सारे लोग जब मठ से आना जाना करते रहेंगे तो खेत का बहुत नुकसान होगा इसलिए उसने खेत जला डाला | उसके नतीजे पच्चेकबुद्ध को दूसरी जगह जाना पड़ा | पच्चेकबुद्ध के अनुयायी बहुत नाराज हुवे और उन लोगो ने खेत के मालिक को बहुत पीटा और मार डाला | उसके मृत्यु के बाद वह अविकी निरय मे पैदा हुवा | उसके बुरे कर्म के वजह से वह पेता भूत के अस्तित्व में वह उसकी बची सजा भुगत रहा है |
इसके निष्कर्ष में बुद्ध ने कहा , " बुरे कर्म जल्दी फल नही देता , पर बुरे कर्म करने वाले का पिछा करता रहता है , बुरे कर्म के नतीजे से बचने का कोई मार्ग नही है | "
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद उस ब्राह्मण के बारे मे कहा जो खेती करता था |
एक ब्राह्मण सावत्थी नगर मे रहता था जो बौद्ध नही था | लेकिन बुद्ध को पता था के वह ब्राह्मण कुछ समय मे सोतापन्न बन सकेगा | तो बुद्ध उसके यहाँ गये जहा वह खेत की जताई कर रहा था और उससे बात की | ब्राह्मण ने मिलनसार होकर बात की और बुद्ध को शुक्रिया अदा किया क्योंकि बुद्ध ने उसमे और उसके काम मे रूचि ली | एक दिन उसने बुद्ध से कहा , " समन गौतम , जब मै खेत से चावल जमा करूँगा तब कुछ चावल मै तुम्हें उपहार में दुंगा फिर ही मै उसे उपयोग करूँगा | मै चावल नही खावुंगा जब तक के मै कुछ चावल उन्हें तुमको उपहार में न दे सकु | " लेकिन बुद्ध को पहले से ही पता था के वह ब्राह्मण खेत से चावल नही पा सकेगा उस साल , पर बुद्ध चुप रहे |
तब , रात में ब्राह्मण के फसल निकालने से पहले , बारिश का बहुत पानी का बाढ़ आया जिससे सारी फसल बह गयी | ब्राह्मण बहुत तनाव में था , क्योंकि वह उसके मित्र समन गौतम को कोई चावल उपहार मे नही दे सकता था |
बुद्ध उस ब्राह्मण के घर गये और ब्राह्मण ने बुद्ध को बताया के कैसे बाढ़ के पानी ने सारी फसल बहा दी | इसके जवाब मे बुद्ध ने कहा , " ब्राह्मण , तुम दुःख का कारण नही जानते , पर मैं जानता हुं , अगर भय और दुःख उत्पन्न हो , वह आसक्ति के कारण उत्पन्न होता है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" आसक्ति दुःख उत्पन्न करती है , आसक्ति भय उत्पन्न करती है | वह जो आसक्ति से मुक्त हो उसे कोई दुःख नही होता , उसे भय कैसे हो सकता है ? "
धम्मपद ७१ अहिपेटा वठु
अहिपेटा की कहानी |
जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ में रह तब यह धम्मपद उन्होंने पेता भुत के संदर्भ मे कही |
प्रमुख अनुयायी महा मोग्गल्लाना भिक्षा मांगने के लिए थेरा लक्खण के साथ राजगहा नगर मे चल पड़े थे | कुछ देखने पर उसने स्मित हास्य किया लेकिन कुछ नही कहा | जब वे वापस मठ जा रहे थे तब , तेरा महा मोग्गल्लाना ने थेरा लक्खण से कहा उसने पेता भूत देखा था जिसका सिर मानव का था लेकिन धड़ साप का इसलिये वह हस पड़ा था | बुद्ध ने कहा उन्होंने भी वही पेता भूत देखा है जब वह बुद्ध बने थे | बुद्ध ने वर्णन भी किया के , बहुत समय पहले , वहा पच्चेकबुद्ध हुवा करता था , जिसका हर कोई सम्मान करता था | लोगो को उसके मठ जाने के लिये खेत पार करना पड़ता था | खेत के मालिक को लगा के बहुत सारे लोग जब मठ से आना जाना करते रहेंगे तो खेत का बहुत नुकसान होगा इसलिए उसने खेत जला डाला | उसके नतीजे पच्चेकबुद्ध को दूसरी जगह जाना पड़ा | पच्चेकबुद्ध के अनुयायी बहुत नाराज हुवे और उन लोगो ने खेत के मालिक को बहुत पीटा और मार डाला | उसके मृत्यु के बाद वह अविकी निरय मे पैदा हुवा | उसके बुरे कर्म के वजह से वह पेता भूत के अस्तित्व में वह उसकी बची सजा भुगत रहा है |
इसके निष्कर्ष में बुद्ध ने कहा , " बुरे कर्म जल्दी फल नही देता , पर बुरे कर्म करने वाले का पिछा करता रहता है , बुरे कर्म के नतीजे से बचने का कोई मार्ग नही है | "