बौद्ध धर्म और स्वर्ग ?

सबसे पहले यह जानना ज़रुरी है की भगवान बुद्ध ने परमेश्वर वाद को नकारा है | उनके अनुसार इस दुनिया में कोई ऐसी शक्ति नहीं है जिसने सृष्टि या विश्व का निर्माण किया है | हमारा जीवन और सारी भौतिक चीजें लगातार परिवर्तन करती रहती है जो पहले ही किसी प्रकार के अस्तित्व में होती है | यह चीजें जो हमेशा से ही अस्तित्व में रही है इसलिये उसे सनातन कहते है | धर्म के नियम भी एक जैसे ही रहेंगे | अज्ञानता की वजह से प्राणी इस संसार से मुक्त नही हो पाता | बुद्ध ने आत्मा के अस्तित्व को भी नकारा है | उनके अनुसार मनुष्य के जीवन का केंद्र मन है , और मन को सरल बनाकर ही मुक्ति का अहसास मिल सकता है | मन को पवित्र बनाने केलिए उनके बताये अष्टांग मार्ग का पालन करना चाहिए | 
 
अगर परमेश्वर नहीं है तो यह सृष्टि कैसे चलती है यह प्रश्न पड़ता है | भगवन बुद्ध ने कहा है जिस प्रकार कोई वाहन निर्जीव होकर भी सजीव जैसे प्रतीत होता है , उसी प्रकार किसी भी घटना को क्रमश देखकर यह लगता है के उसमे कोई अर्थ है | लेकिन वाहन के कही पुर्जे होते है और वह जब चलता है तो सजीव प्रतीत हो सकता है , उसी तरह जो हम देखते है उसे वास्तविक मानते है और उसका मतलब निकलते है | कोई भी घटना होती है तो वह पहले के क्रम पे आधारित होती है | परमेश्वर पर अगर विश्वास है तो फिर यह प्रश्न फिर भी बचता है की परमेश्वर को किसने बनाया | हमे अपने मुक्ति का मार्ग खुद ही जानना है |

स्वाद , आकृति , स्पर्श , ध्वनि और मानसिक आस्वाद इन पांच चीजों में फसकर व्यक्ति इन संसार से फसा रह जाता है |


आसक्ति ही वह चीज है जिसके कारण मनुष्य मरण और मृत्यु के चक्र में फसा रहता है | यह आसक्ति अच्छी या बुरी कर्मो में हो सकती है | चीजे जैसी है वैसी ही देखना जिसे सती भी कहते है | इससे हमें अज्ञानता से बाहर आने मे मदत मिलती है | 

मनुष्य अगर अच्छे मन से रहता है तो उसे स्वर्ग मिलता तो है लेकिन वह अच्छे कर्मो का प्रभाव ख़तम होते ही वापस तत्सम लोक या अन्य प्रकार के जिव में जन्म लेता है | इसका मतलब के उसे जन्म मृत्यु से छुटकारा नहीं मिला | ३१ प्रकार के स्थर है जिनमे जीवन पाया जाता है जो इस संसार का भाग है | वह तीन भागो में रूप, अरूप और कामलोक इस प्रकार है | मनुष्य लोक कामलोक इस प्रकार मे आते है | मनुष्य जीवन मे हम निर्वाण हासिल कर सकते है इसीलिए देवलोक भी मनुष्य जीवन पाना चाहते है जिससे वे भी निर्वाण हासिल कर सके | इन संसार मे जन्म लेने से बचना ही बुद्ध धर्म का सर्वोच्च लक्ष्य है | सत्य की अनुभूति से निर्वाण मिलता है और मृत्यु हो जाने पर ऐसे व्यक्ति का महापरिनिर्वाण होता है जो इस सांसारिक जगत मे फिर से जन्म नही लेता | यही निर्वाण पाना बौद्ध धर्म का सर्वोच्च लक्ष है | 

तुसित लोक एक स्वर्ग है जहा मैत्रेय विपस्सना में लिप्त है | कहा जाता है के जब बौद्ध धर्म पृथ्वी पर नहीं रहेगा तो वह जन्म लेकर फिर से धम्म का प्रचार प्रसार करेगा | यह मैत्रेय सिद्धार्थ बुद्ध के समय भिक्खु था जिसने ठानी थी के वह भी बुद्ध बनके मानव जगत को दुःख से मुक्ति दिलाने केलिए पृथ्वी पर आएगा | इसी प्रकार भगवान सिद्धार्थ बुद्ध एक समय पर राजकुल में स्त्री के रूप में जन्मे थे तब उन्होंने उस वक्त के बुद्ध को देखकर इच्छा की थी के वह भी इसी प्रकार बुद्ध बनके मानव जगत की सहायता करेंगे | जो भी बुद्ध इस संसार में जन्म लेता है उन सबकी सिख एक समान ही होती है | धर्म के नियम हर समय एक समान ही रहते है इसलिए भी उसे सनातन धर्म कहते है | 

समय के साथ मानव असली धर्म को अच्छे से न समझने के कारण अंधश्रद्धा को ही धर्म समझते है | इस अज्ञान को दूर करने ही बुद्ध केवल स्वयं प्रयास पर धर्म के नियम खोज कर धर्म के नियम मानव को समझाता है | कहा जाता है देव लोक निर्वाण नही पा सकते केवल मनुष्य लोक निर्वाण हासिल कर सकते है इसीलिए देव लोक भी मनुष्य जीवन पाना चाहते है | भगवान बुद्ध के अनुसार मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है और निर्वाण पाने से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ काम नही हो सकता | 

बुद्ध धर्म मे सबसे बड़ा लक्ष्य है निर्वाण जिसे पाली भाषा मे निब्बान कहते है | जिससे जन्म मृत्यु के पीड़ादायी और दुखदायी अनुभवों से छुटकारा मिलता है | जन्म मरण दुखदायी है कारण है के प्राणी इसमे कही सारे प्रकार की तकलीफ़ झेलता है | जैसे के वासना की कभी पूर्ति न होना , विरह को झेलना , बीमार होना , इच्छा आकांशावो की पूर्ति न होना , बुढ़ापा , मान अपमान  इत्यादि | इनमें से हर दुःख अविद्या याने धम्म ज्ञान न होने से या आत्मसात न होने से होता है | 

बुद्ध धर्म मे ज्ञान प्राप्ति के चार स्तर बताये गए है | थेरवाद बुद्ध धम्म में बताया गया है के अरहंत के तोर पर मनुष्य चार स्तरों से प्रगती करके गुजरता है | जिसको ज्ञान प्राप्ति भी कहते है |

सोतापना , सकदगामि , अनागामी और अरहंत यह चार स्तर है | बुद्ध के अनुसार कोई भी व्यक्ति को इन किसी भी चार स्तर में से किसी एक स्तर पर है वह कुलीन / आर्य पग्गला है | और इन लोगों के समूह को आर्य संघ बताया है |

थेरवाद बुद्धिज़्म और शुरुवाती बौद्ध धर्म मे इन चार स्तरों की जानकारी मूलतः दी जाती है | सुत्त पिटिका मे अनेक प्रकार के बुद्ध धर्म के अनुयायी का विवेचन किया है | मुख्यता चार प्रकार है , परंतु विस्तृत जानकारी के साथ और ज्यादा प्रकारों का भी उल्लेख है |

धारा में प्रवेश करने वाला , एक बार लौटने वाला , न लौटने वाला और अरहंत यह चार प्रकार है | विशुद्धिमग्गा में यह चार प्रकार सात शुद्धियों में से चरम बिंदु माने गए है | मन का शुद्धिकरण चार प्रकार में क्रमानुसार ही होता जाता है |

विसुद्धिमग्गा प्रज्ञा , अनत्ता का अहसास और बौद्ध धर्म की सिख के महत्त्व पर ज्यादा जोर देता है जो मुक्ति का मुख्य साधन है | विप्पसना से मुक्ति मिलने में मुख्यतः मदत होती है |

धारा प्रवाह मे प्रवेश करने वाला / सोतापना इनसे मुक्त होता है
  1. पहचान 
  2. कर्मकांड में आसक्ति होना 
  3. बुद्ध धम्म में संदेह रहना
एक बार लौटने वाला / सकदागामी इनसे बहुत परहेज / तनुकूत होता है |
  1. काम वासना 
  2. बुरी भावना 
न लौटने वाला / अनागामी इन चीजों से मुक्त होता है |
  1. काम वासना 
  2. बुरी भावना 
अनागामी व्यक्ति इस मनुष्य लोक या उसी प्रकार के निम्न जीवन में वापस नहीं आता इसलिये उसे वापस न आने वाला कहा है | लेकिन वह रुपधातु जैसे शुद्ध जगत में पैदा होकर निर्वाण प्राप्त करता है | उनमे से कुछ दूसरी बार उच्च जगत में जन्म ले सकते है |

अरहंत इन उपर बताई सारी पाच हीन बेड़ियों और आगे बताये पाच उच्च बेड़ियों से मुक्त होता है |
  1. चार ध्यान में लिप्तता में आसक्ति जिसका रूप है / रूप jhaana 
  2. चार निराकार में लिप्तता में आसक्ति / अरूपा jhana 
  3. दंभ / मिथ्याभिमान 
  4. बैचेनी / अशांति 
  5. अज्ञानता 
अरहंत कभी किसी प्रकार के जगत में स्तर में जन्म नहीं लेगा | यह पूरी तरह से जगा हुवा व्यक्ति होता है | अरहंत वह व्यक्ति होता है जो बुद्ध के बताये मार्ग का पालन करने से बनता है | 

थेरवाद बौद्ध धर्म मे बुद्ध का मतलब वह व्यक्ति जिसने स्वयं या खुद के प्रयास से ज्ञान पाकर मुक्ति हासिल की है , बुद्ध किसी व्यक्ति विशेष का नाम नही है , वह एक उपाधि है | एक से ज्यादा बुद्ध हुवे है वे अलग अलग व्यक्ति थे | बुद्ध के महापरिनिर्वाण होने पर वे फिर से मानव या दूसरे संसार में जन्म नही लेते | 

सामान्य मनुष्य 
सामान्य मनुष्य या पुथुज्जना संसार के अनंत चक्र में फस जाता है | झाना / jhana  का मतलब ज्ञान और पृथा का मतलब है बगैर | वह जन्मता है , जीता है और मरता है अनगिनत जन्मो में , देवलोक, मानव , जानवर , पुरुष , स्त्री , वाम लिंगी , भुत प्रेत , शैतान / असुर , नरक वासी अनेक प्रकार के जीवन में रहता है |

सामान्य मनुष्य ने कभी भी शाश्वत सत्य या धम्म को देखा नही होता है , नही अनुभव किया होता है | इसलिए उसके पास कठिन परिस्थिति से निकलने का मार्ग नही होता है | जब यातनाये सहन करने के पार हो जाती है तभी वह इन समाप्त न होने से लगने वाले पीड़ा से छुटकारा पाने का प्रयास करता है | अगर वह सौभाग्यशाली होता है तो उसे धम्म ज्ञान मिलता है | मनुष्य या कोई भी प्राणी जब दुःख पीड़ा से अति परेशान होता है तो उसे चार आर्य सत्य या उनमे से किसी एक का अहसास होता है | ऐसा होने से उसे ग्यानी कहा जा सकता है | मनुष्य मान के चलता है की सुख सुविधा निरंतर रहेगी इससे वह भौतिक जीवन में आसक्त होता है | 

लेकिन धम्म का ज्ञान होने के लिए मनुष्य जीवन में आना सबसे उपयुक्त है | क्योंकि मनुष्य में समझने की शक्ति दूसरे प्राणियों से जादा होती है | अनित्य बोध होने से दुःखो से छुटकारा पाना आसान हो जाता है | 

मुक्ति पाने केलिए बुद्ध धर्म में बताये गए अष्टांग मार्ग का पालन करना जरुरी है | जिससे चित्त निर्मल होने लगता है | ऐसे में अगर विपस्सना साधना की जाये तो निर्वाण पाना संभव हो जाता है | 

पाँच प्रकार के बाधाएं आती है जिसका निवारण करना आवश्यक होता है |  निब्बाण जिसे निर्वाण भी कहते है वह मन को अनेक विकारो से मुक्त करके मिलता है | किसी भी चीज और घटना को जैसी है वैसे ही किसी भी पूर्वग्रह के बिना जानने और समझने की  कोशिश करनी चाहिए | 

केवल डर होने से कोई चीज सच मानकर आप मुक्त नही हो सकते | परंतु बौद्ध धर्म मे हर चीज अनुभव से जानकर मुक्त हो सकते है | बुद्ध कहते है धर्म केवल श्रद्धा के बल पर मत मानो | बुद्ध ने बताया है के  जिस प्रकार सुनार सोने को तपाकर , काटकर और घिसकर उसकी परीक्षा और अवलोकन करके ही किसी नतीजे पे आता है उसी तरह किसी भी धर्म और श्रद्धा का अच्छे से परीक्षा करने के बाद ही उसपर अमल करना बेहतर है | 
Nibbana basically arises when non self attributes separates from self i.e mind.

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