धम्मपद १६ धम्मिका उपासक वठु
धम्मिक उपासक की कहानी |
जब बुद्ध सावत्थी नगर के जेतवन मठ में रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद गृहस्त उपासक धम्मिक के संदर्भ मे कहा |
एक समय सावत्थी नगर में धम्मिक नाम का गृहस्थ उपासक रहता था ,वह सदगति और दान धर्म मे उत्सुक रहता | उसने उदारता से नियमित भिक्खुवों को खाना और अन्य जरूरी चीजें दान की और खास मोके आने पर भी | वह दरअसल सावत्थी नगर के पाँचसो गृहस्थ अनुयायियों में बुद्ध के लिए अग्रणी था | धम्मिक को सात बेटे और सात बेटिया थी , वे सब अपने पिता की तरह गुण वान और दान धर्म के लिए तत्पर रहते | जब धम्मिक बहुत बीमार था तब उसने बौद्ध संघ से विनंती की के वे उसके यहा आकर बुद्ध धम्म के पवित्र वचन उसके यहा कहे जब वह मरने की कगार पर था | जब भिक्खु महा सरिपट्ठाना सूत्र का जप कर रहे थे , छह आकाशीय जगत के छह सजे हुवे रथ आये उसे अपने अपने जगत का न्योता देने | धम्मिक ने उन्हें ठहरने के लिए कहा ताकी सूत्र जप में बाधा न आ सके | भिक्खुवों को लगा उसने उन्हें ही रुकने कहा है इसलिये उन्होंने पठन रोक कर उस जगह से चले गए |
थोडे समय बाद धम्मिक ने उसके लड़कों से कहा के उसके लिए छह रथ सजे हुवे इंतजार कर रहे है | तब उसने तुसित रथ चुना और अपने लडके को उसपर फूलों की माला डालने को कहा , लडके ने माला फेंकी | तब वह गुज़र गया और तुसित जगत मे पैदा हुवा | इसतरह गुणवान व्यक्ति इस जगत में और दूसरी जगत में खुश रहता है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" वह यहा खुश रहता है , जिसने अच्छे कर्म किये है वह हर अस्तित्व मे सुखी रहता है | वह खुश होता है और बहुत खुश रहता है जब वह खुद के अच्छे कर्मो को देखता है | "
जब बुद्ध सावत्थी नगर के जेतवन मठ में रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद गृहस्त उपासक धम्मिक के संदर्भ मे कहा |
एक समय सावत्थी नगर में धम्मिक नाम का गृहस्थ उपासक रहता था ,वह सदगति और दान धर्म मे उत्सुक रहता | उसने उदारता से नियमित भिक्खुवों को खाना और अन्य जरूरी चीजें दान की और खास मोके आने पर भी | वह दरअसल सावत्थी नगर के पाँचसो गृहस्थ अनुयायियों में बुद्ध के लिए अग्रणी था | धम्मिक को सात बेटे और सात बेटिया थी , वे सब अपने पिता की तरह गुण वान और दान धर्म के लिए तत्पर रहते | जब धम्मिक बहुत बीमार था तब उसने बौद्ध संघ से विनंती की के वे उसके यहा आकर बुद्ध धम्म के पवित्र वचन उसके यहा कहे जब वह मरने की कगार पर था | जब भिक्खु महा सरिपट्ठाना सूत्र का जप कर रहे थे , छह आकाशीय जगत के छह सजे हुवे रथ आये उसे अपने अपने जगत का न्योता देने | धम्मिक ने उन्हें ठहरने के लिए कहा ताकी सूत्र जप में बाधा न आ सके | भिक्खुवों को लगा उसने उन्हें ही रुकने कहा है इसलिये उन्होंने पठन रोक कर उस जगह से चले गए |
थोडे समय बाद धम्मिक ने उसके लड़कों से कहा के उसके लिए छह रथ सजे हुवे इंतजार कर रहे है | तब उसने तुसित रथ चुना और अपने लडके को उसपर फूलों की माला डालने को कहा , लडके ने माला फेंकी | तब वह गुज़र गया और तुसित जगत मे पैदा हुवा | इसतरह गुणवान व्यक्ति इस जगत में और दूसरी जगत में खुश रहता है |
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" वह यहा खुश रहता है , जिसने अच्छे कर्म किये है वह हर अस्तित्व मे सुखी रहता है | वह खुश होता है और बहुत खुश रहता है जब वह खुद के अच्छे कर्मो को देखता है | "