धम्मपद २६ , २७ बालनक्खत्तयसङ्घुट्ठा वठु

बालनक्खत्ता त्योवहार की कहानी | 

बुद्ध जब जेतवन मठ रह रहे थे तब उन्होंने बालनक्खत्ता त्योवहार के संदर्भ में यह कहा | 

एक समय , बालनक्खत्ता त्योवहार सावत्थी नगर में मनाया जाता था | त्योवहार के दौरान , बहुत सारे नौजवान गाय का गोबर और राख शरीर पर पोतकर शहर में घूमते हुवे चिल्लाते और लोगों में चिढ लाते | वे दूसरे लोगो के दरवाजे भी रुकते और तभी चलते बनते जब तक पैसे नही मिलते | 

उस समय सावत्थी में भगवान बुद्ध के कही सारे महान अनुयायी रहते थे , इन उपद्रवी मुर्ख नौजवानों को देखकर बुद्ध को समाचार भेजा , बुद्ध से विनंती की के वह सात दिन तक मठ में ही रुके और तब तक सावत्थी मे प्रवेश न करे | उन अनुयायी लोगो ने मठ में खाना भेजा और वे खुद भी अपने घर रुके रहे | आठवे दिन जब त्योवहार ख़तम हुवा , बुद्ध और उनके शिष्यों को नगर में भिक्षा में खाना खाने के लिए और दूसरे दान प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया गया | जब उन युवकों के अशिष्ट और लज्जास्पद व्यवहार के बारे मे जब बताया गया , तब बुद्ध ने टिपणी की के मुर्ख और अज्ञानी मे लज्जास्पद व्यवहार करने का स्वभाव होता है | 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" मुर्ख और अज्ञानी खुद को लापरवाही में झोखते है , वही बुद्धिमान सजगता को खज़ाने का मूल्यवान गहना मानते है  | "

" इसलिए लापरवाह नही होना चाहिए , नही काम वासना की लत , जो सजगता में माहिर है , शांति और अंतर्दृष्टि के अभ्यास से संगोपन करता है , परमोच्च सुख (निर्वाण / निब्बान ) का अनुभव करता है  | "

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