धम्मपद १९ , २० द्वेसहायकभिक्खु वठु , धम्मपद ३९६ एक ब्राह्मण वठु
दो मित्रो की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद दो भिक्खुवों के बारे मे कहा जो मित्र थे |
एक समय सावत्थी नगर मे दो मित्र जो भिक्खु थे वे कुलीन घर से आये थे | उनमे से एक ने त्रिपिटिका पढ़ी , वह पवित्र शाश्त्र का पाठ और प्रवचन करने मे बहुत माहिर था | उसने पाँच सो भिक्खुवों को पढ़ाया और अठारा भिक्खुवों के समुह का निर्देशक बना | दूसरा भिक्खु कड़ी लगन और मेहनत से अंतदृष्टि विप्पसना ध्यान धारना करते करते अरहंत बना और अंतदृष्टि अवलोकन भी हासिल की |
एक बार जब वे दो भिक्खु बुद्ध को आदर प्रकट करने आये , जेतवना मठ मे , वे दोनो मिले | त्रिपिटक ग्रंथ का विद्वान नही जानता था के दूसरा पहले ही अरहंत बन चुका है | उसने उसे कम आका , यह सोचकर के यह बुढा भिक्खु पवित्र ग्रंथ के बारे मे बहुत कम जानता है , पांच निकय से एक भी नही या तीन पिटिका मे से एक | तब उसने दूसरे से प्रश्न पूछने की सोचकर उसे शर्मिंदा करना चाहा | बुध्द को उसके गलत इरादों के बारे मे पता था और यह भी के उसके अच्छे अनुयायी के साथ बुरा व्यवहार करके वह निम्न जगत मे जन्म लेगा |
इसलिए , दया भावना से , बुद्ध उन दो भिक्खुवों से मिले , उस विद्वान भिक्खु को दूसरे से प्रश्न करने से रोकने के लिए | बुद्ध ने खुद प्रश्न पूछे | उन्होंने मग्गा और jhana के बारे मे विद्वान से प्रश्न पूछे | वह उत्तर नही दे सका क्योंकि उसने उसका अभ्यास नही किया था जो उसने पढ़ा था | दूसरा भिक्खु , जो धम्म का पालन करता था और अरहंत बन चुका था , सारे प्रश्नो के उत्तर दे पाया | बुद्ध ने उसकी तारीफ की जो धम्म का पालन करता था लेकिन विद्वान के लिए एक भी शब्द नही कहा |
वहा रहने वाले अनुयायी समझ नही सके के बुद्ध ने बुढ़े भिक्खु की तारीफ की लेकिन विद्वान भिक्खु की नही | तब बुद्ध ने सारी बाते समझायी | विद्वान जो सारी बाते जानता है लेकिन धम्म के अनुसार आचरण नही करता वह उस गोपाल की तरह है , जो वेतन पाने के लिए गाये संभालता है , लेकिन जो धम्म के अनुसार आचरण करता है वह उन गायों के मालिक की तरह है जो गायों से मिलने वाले पाँच उत्पादनों का आनंद उपभोगता है | इसतरह , विद्वान केवल उसके शिष्यों को सिखाने के काम का आनंद लेता है लेकिन मग्गा फल नही हासिल कर पाता | दूसरा भिक्खु , हालाँकि वह कम जानता है और बहुत कम पवित्र ग्रंथ का पठन करता है , धम्म के सार को अच्छे से समझ पाया है और मेहनत और लगन से पालन किया है , जिसने जुनून , बुरी भावना और अज्ञानता को ख़त्म किया है | उसका मन नैतिक मलिनता से पूरी तरह से मुक्त हुवा है और इस जगत के सारी आसक्तियों से और अगले जगत के , वह असल मे मग्गा फल का लाभ पाता है |
बुद्ध ने धम्मपद इस प्रकार कहा |
" यद्यपि वह प्रवित्र ग्रंथ का बहुत पाठ करता है , पर लापरवाह है और धम्म के अनुसार आचरण नही करता , गोपाल के तरह जो दूसरों की गांय गिनता है , उसे भिक्खु बनके भी मग्गा फल नही मिलता | "
" वह अगर थोड़ा ही पवित्र ग्रंथ का पाठ करता है , लेकिन धम्म के अनुसार आचरण करता है , जुनून ,बुरी भावना और अज्ञानता को मिटाके धम्म के अनुसार , उसके साथ मन नैतिक बुराईंयों से मुक्त है और इस या दूसरे जगत से आसक्ति न रखता हो , उसको भिक्खु को मिलने वाले मग्गा फल का लाभ होता है | "
धम्मपद ३९६ एक ब्राह्मण वठु
मैं उसे केवल इसलिये ब्राह्मण नही कहता क्योंकि उसका जन्म ब्राह्मण माँ के गर्भ से हुवा है | वह केवल भोवादी ब्राह्मण है अगर वह नैतिक बुराईयों से मुक्त नही हुवा है | मै उसे ब्राह्मण कहता हुं , जो नैतिक मलिनता और आसक्तियों से मुक्त हुवा है |
ब्राह्मण की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद ब्राह्मण के संदर्भ मे कहा |
एक समय , सावत्थी नगर के एक ब्राह्मण ने सोचा के जिस प्रकार बुद्ध उनके शिष्यों को ' ब्राह्मण ' कहते है , उसे भी ब्राह्मण कहना चाहिए क्योंकि उसका जन्म ब्राह्मण माता पिता से हुवा है | जब बुद्ध को उसने यह बताया , बुद्ध ने उसको जवाब दिया , " ओ ब्राह्मण ! , मैं उसे केवल इसलिये ब्राह्मण नही कहता क्योंकि उसका जन्म ब्राह्मण माँ के गर्भ से हुवा है | वह केवल भोवादी ब्राह्मण है अगर वह नैतिक बुराईयों से मुक्त नही हुवा है | मैं उसे ब्राह्मण कहता हुं , जो नैतिक मलिनता और आसक्तियों से मुक्त हुवा है | "
उपदेश के अंत मे ब्राह्मण सोतापन्न बना |
धम्मपद ३९६ एक ब्राह्मण वठु
मैं उसे केवल इसलिये ब्राह्मण नही कहता क्योंकि उसका जन्म ब्राह्मण माँ के गर्भ से हुवा है | वह केवल भोवादी ब्राह्मण है अगर वह नैतिक बुराईयों से मुक्त नही हुवा है | मै उसे ब्राह्मण कहता हुं , जो नैतिक मलिनता और आसक्तियों से मुक्त हुवा है |
ब्राह्मण की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद ब्राह्मण के संदर्भ मे कहा |
एक समय , सावत्थी नगर के एक ब्राह्मण ने सोचा के जिस प्रकार बुद्ध उनके शिष्यों को ' ब्राह्मण ' कहते है , उसे भी ब्राह्मण कहना चाहिए क्योंकि उसका जन्म ब्राह्मण माता पिता से हुवा है | जब बुद्ध को उसने यह बताया , बुद्ध ने उसको जवाब दिया , " ओ ब्राह्मण ! , मैं उसे केवल इसलिये ब्राह्मण नही कहता क्योंकि उसका जन्म ब्राह्मण माँ के गर्भ से हुवा है | वह केवल भोवादी ब्राह्मण है अगर वह नैतिक बुराईयों से मुक्त नही हुवा है | मैं उसे ब्राह्मण कहता हुं , जो नैतिक मलिनता और आसक्तियों से मुक्त हुवा है | "
उपदेश के अंत मे ब्राह्मण सोतापन्न बना |