धम्मपद २६६ , २६७ अन्नाताराब्राह्मण वठु

एक ब्राह्मण की कहानी | 

बुद्ध जब जेतवन मठ में रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने एक ब्राह्मण के संदर्भ मे कहा | 

एक समय , एक ब्राह्मण था जिसे भिक्षा के लिए जाने की आदत थी | एक दिन , उसने सोचा , " समन गौतम ने यह घोषित किया है के जो भिक्षा माँगकर जीवन व्यतीत करता है वह भिक्खु है | अगर ऐसा है , तो मुझे भी भिक्खु कहना चाहिए | " ऐसा सोचकर वह बुद्ध के पास जाकर कहा के उसे / ब्राह्मण को भी भिक्खु कहना चाहिए | क्योंकि वह भी भिक्षा मांगने जाता है | उसे बुद्ध ने जवाब दिया , " ब्राह्मण , मैने ऐसा नही कहा के तुम ब्राह्मण हो सिर्फ इसलिये के तुम भिक्षा मांगने जाते हो | जो झुठे श्रद्धा की डिंग हाकता है और वैसा ही आचरण करता है उसे भिक्खु नही कहा जा सकता | सिर्फ वह जो अनित्य , असंतुष्टता और मुलतत्वों की अस्थिरता पर ध्यान करता है उसे भिक्खु कहते है | " 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" सिर्फ दरवाज़े पर भिक्षा के लिए ठहरने से कोई भिक्खु नही बनता , वह इसलिये भिक्खु नही बन सकता क्योंकि वह उसका पालन करता है जो धम्म के अनुसरण नही है  | "

इस जगत में , जो अच्छे या बुरे को बाज़ू रखता है , जो शुद्ध जीवन जिता है , और स्कंध मुलतत्वों पर ध्यान करता है उसे भिक्खु कहते है  | 

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