धम्मपद २३९ अन्नताराब्राह्मण वठु , धम्मपद २४२ , २४३ अन्नताराकुलपुत्त वठु
एक ब्राह्मण की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक ब्राह्मण के संदर्भ में कहा |
एक समय , ब्राह्मण ने भिक्खुवों के समूह को देखा जो अपने पोशाक को उलटफेर कर रहे थे जैसे ही वे नगर मे भिक्षा मांगने जाने वाले थे | उसने देखा के कुछ भिक्खुवों के पोशाक ज़मीन को लगे और घास के नमी से गिले हो गए | तो उसने उस जगह को साफ किया | अगले दिन उसने देखा के जैसे उन भिक्खुवों के पोशाक खाली ज़मीन को लगे वे मेले हो गए | इसलिये उसने उस जगह को रेत से ढक दिया | फिर उसने देखा के भिक्खु धुप से पसीने से गीले होते और बारिश आने पर भीग जाते | आखिरकार उसने भिक्खुवों के लिए विश्राम गृह बनाया जहा वे नगर मे भिक्षा मांगने के पहले जमते |
जब वास्तु तैयार हुवी , उसने भिक्खु और बुद्ध को खाना खाने बुलाया | ब्राह्मण ने बुद्ध को बताया के उसने किस प्रकार थोड़ा थोड़ा करके इस विश्राम गृह को बनाया | उसे बुद्ध ने कहा , " ओ ब्राह्मण ! , होशियार व्यक्ति पुण्य के काम थोड़ा थोड़ा करके पूरा करते है , और क्रम और नियमित रूप से वे अपने नैतिक मैल को निकाल देते है | "
बुद्ध ने तब यह धम्मपद कहा |
" प्रमाण मे , थोड़े थोड़े से , क्षण क्षण से होशियार आदमी अपनी बुराईयाँ ( नैतिक मलिनता ) खुद निकालता है , जैसे सुनार सोने या चांदी से मल साफ करता है | "
धम्मपद २४२ , २४३ अन्नताराकुलपुत्त वठु
यौन दुराचार स्त्री का कलंक है , कंजूशी देने वाले का कलंक है , बुराई के मार्ग वास्तव मे इस जगत मे और दूसरे जगत के कलंक है |
कलंक सत्य के अज्ञान से जादा बुरा है , जो कलंको मे जादा है | ओ भिक्खुवों , इन कलंको को छोड़ दो और निष्कलंक बनो |
एक आदमी की कहानी जिसके बीवी ने व्यभिचार किया |
जब बुद्ध वेलुवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने उस आदमी के संधर्भ में कहा जिसके बीवी ने व्यभिचार किया था |
एक समय , एक आदमी के बीवी ने व्यभिचार किया | वह उसके बीवी के दुर्व्यवहार से इतना लज्जित हुवा के वह किसी को मिलने की हिम्मत नही कर सकता था | वह बुद्ध से भी दूर रहा | कुछ समय बिताने के बाद , वह बुद्ध के पास गया और बुद्ध ने उसे पूछा के वह इतने दिन अनुपस्थित क्यों था तब उसने सारी बात बताई | उसके गैर मौजूदगी का कारण सुनकर बुद्ध ने कहा , " मेरे शिष्य , स्त्री एक नदी की तरह होती है , या रस्ते , या शराब की दुकान या विश्राम गृह या रस्ते के बाज़ू मे रखा पानी का घड़ा | वे हर प्रकार के लोगों का संग करती है | वास्तव में , यौन दुराचार स्त्री के बर्बादी का कारण बनता है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" यौन दुराचार स्त्री का कलंक है , कंजूशी देने वाले का कलंक है , बुराई के मार्ग वास्तव मे इस जगत मे और दूसरे जगत के कलंक है | "
" कलंक सत्य के अज्ञान से जादा बुरा है , जो कलंको मे जादा है | ओ भिक्खुवों , इन कलंको को छोड़ दो और निष्कलंक बनो | "
प्रवचन के अंत में बहुत लोगो को सोतपन्न फल का लाभ मिला |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक ब्राह्मण के संदर्भ में कहा |
एक समय , ब्राह्मण ने भिक्खुवों के समूह को देखा जो अपने पोशाक को उलटफेर कर रहे थे जैसे ही वे नगर मे भिक्षा मांगने जाने वाले थे | उसने देखा के कुछ भिक्खुवों के पोशाक ज़मीन को लगे और घास के नमी से गिले हो गए | तो उसने उस जगह को साफ किया | अगले दिन उसने देखा के जैसे उन भिक्खुवों के पोशाक खाली ज़मीन को लगे वे मेले हो गए | इसलिये उसने उस जगह को रेत से ढक दिया | फिर उसने देखा के भिक्खु धुप से पसीने से गीले होते और बारिश आने पर भीग जाते | आखिरकार उसने भिक्खुवों के लिए विश्राम गृह बनाया जहा वे नगर मे भिक्षा मांगने के पहले जमते |
जब वास्तु तैयार हुवी , उसने भिक्खु और बुद्ध को खाना खाने बुलाया | ब्राह्मण ने बुद्ध को बताया के उसने किस प्रकार थोड़ा थोड़ा करके इस विश्राम गृह को बनाया | उसे बुद्ध ने कहा , " ओ ब्राह्मण ! , होशियार व्यक्ति पुण्य के काम थोड़ा थोड़ा करके पूरा करते है , और क्रम और नियमित रूप से वे अपने नैतिक मैल को निकाल देते है | "
बुद्ध ने तब यह धम्मपद कहा |
" प्रमाण मे , थोड़े थोड़े से , क्षण क्षण से होशियार आदमी अपनी बुराईयाँ ( नैतिक मलिनता ) खुद निकालता है , जैसे सुनार सोने या चांदी से मल साफ करता है | "
धम्मपद २४२ , २४३ अन्नताराकुलपुत्त वठु
यौन दुराचार स्त्री का कलंक है , कंजूशी देने वाले का कलंक है , बुराई के मार्ग वास्तव मे इस जगत मे और दूसरे जगत के कलंक है |
कलंक सत्य के अज्ञान से जादा बुरा है , जो कलंको मे जादा है | ओ भिक्खुवों , इन कलंको को छोड़ दो और निष्कलंक बनो |
एक आदमी की कहानी जिसके बीवी ने व्यभिचार किया |
जब बुद्ध वेलुवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने उस आदमी के संधर्भ में कहा जिसके बीवी ने व्यभिचार किया था |
एक समय , एक आदमी के बीवी ने व्यभिचार किया | वह उसके बीवी के दुर्व्यवहार से इतना लज्जित हुवा के वह किसी को मिलने की हिम्मत नही कर सकता था | वह बुद्ध से भी दूर रहा | कुछ समय बिताने के बाद , वह बुद्ध के पास गया और बुद्ध ने उसे पूछा के वह इतने दिन अनुपस्थित क्यों था तब उसने सारी बात बताई | उसके गैर मौजूदगी का कारण सुनकर बुद्ध ने कहा , " मेरे शिष्य , स्त्री एक नदी की तरह होती है , या रस्ते , या शराब की दुकान या विश्राम गृह या रस्ते के बाज़ू मे रखा पानी का घड़ा | वे हर प्रकार के लोगों का संग करती है | वास्तव में , यौन दुराचार स्त्री के बर्बादी का कारण बनता है | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" यौन दुराचार स्त्री का कलंक है , कंजूशी देने वाले का कलंक है , बुराई के मार्ग वास्तव मे इस जगत मे और दूसरे जगत के कलंक है | "
" कलंक सत्य के अज्ञान से जादा बुरा है , जो कलंको मे जादा है | ओ भिक्खुवों , इन कलंको को छोड़ दो और निष्कलंक बनो | "
प्रवचन के अंत में बहुत लोगो को सोतपन्न फल का लाभ मिला |