राजकुमार सिद्धार्थ की कहानी
भिक्षु बनने के पहले भगवान बुद्ध शाक्य कुल के राजकुमार थे । उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था । उनकी माँ महामाया नेपाल देश के एक राज्य में कोलिय कुल की राजकुमारी थी । उनका विवाह राजा शुद्धोदन से हुवा था । ये दोनों कुल के लोग सिर्फ एक दूसरे के कुल में ही विवाह करते थे क्योंकि वे राज घराने के सदस्य थे । शुद्धोधन के राज्य की राजधानी कपिलवस्तु नाम से जानी जाती थी ।
राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म से पूर्व रानी महामाया ने एक सपना देखा था । उस सपने में उन्होंने एक सफ़ेद हाथी देखा और उस सपने में मधुर संगीत भी था और सुन्दर नृत्य घटित हो रहा था ।
उस सपने का अर्थ दारर्शनिक विद्वानों ने सकारात्मक बताया था । दरअसल उनके सपने में देव दूत सुमेध आये थे जो उनके द्वारा जन्म लेने के लिए अनुमति पाने के लिए विनंती कर रहे थे ऐसी मान्यता है । सपने का अर्थ जानने के बाद रानी महामाया बहुत खुश हुई थी ।
जब जन्म देने का समय बहुत नजदिग आ गया था तब रानी महामाया ने रीती अनुसार राजा शुद्धोधन से अपने पिता के घर जाने की अनुमति चाही । राजा उन्हें रोकने की कोशिश की क्योंकि समय काफी बित चुका था । पर राजा उन्हें रोक नहीं सके । रानी जब अपने पिता के घर अपने दसियों और राज सुरक्षा में वन में से गुज़र रही थी तबी उन्हें प्रसव वेदना शुरू हुई । वह वैशाख पूर्णिमा का दिन था । उन्होने रुकने के लिए आदेश दिया ।
रानी एक पेड़ के नीच रुकी और एक डाली अपने प्रसव वेदना के कारण एक हाथ से पकड़ ली । कुछ समय में एक सुन्दर बालक का जन्म हुवा । कहा जाता है पैदा होते ही वह बालक पांच कदम , अपना एक हाथ उठकर चल पड़ा , मानो कह रहा हो वह इस धरती वासियों को महान उपदेश पढ़ाने आया है । उस के बाद महामाया का देहांत हो गया । ऐसा भी कहते की रानी महामाया बालक को जन्म देकर सात दिन के बाद इस दुनिया से विदा हो गयी ।
राजा शुद्धोदन के लिए बड़ा ही विचित्र समय था । उन्हें समज़ नहीं आ रहा था के वे पुत्र प्राप्ति की ख़ुशी मनाये या , अपनी पत्नी से बिछड़ने का शोक! तभी सभी दार्शनिक विद्वान बुलाये गए ।
सभी ने बालक की भविष्य वाणी सकारात्मक कियी । तभी एक बहुत अधिक विद्वान जिनका नाम कौण्डिन्य था पास से गुजर रहे थे , उस विद्वान ने राजपुत्र के जन्म के बारे में सुना था । सिद्धार्थ सो रहा था तभी उन्होंने अनुमति से राजपुत्र को देखने की इच्छा जाहिर की । राजा ने विनम्रता से उन्हें रुकने को कहा तभी सिद्धार्थ जाग गया ।
यह जानकार दार्शनिक कौण्डिन्य कह पड़े "वह कैसे सो सकता है , आखिर बुद्ध हमेशा सतर्क होते है । "
उन्होंने भविष्य वाणी की के ये बालक या तो चक्रवर्ति सम्राट बनेगा या जब भी इस संसार के दुखो से परिचित होगा सारे सांसारिक सुखो का त्याग करके सनातन सत्य की खोज करके सारे मनुष्य जाती को मुक्ति का मार्ग उपहार देगा ।
बाद में विवश होकर शोक करने लगे क्योंकि वे भी भविष्य में भगवान बुद्ध से मार्ग दर्शन लेना चाहते थे पर उन्हें नहीं पता था तब तक वह जीवित रह सकेंगे । बाद में जब बालक बुद्ध बना तो कौण्डिन्य भी उनके शिष्य बने ।
राजा सुनकर अचंभित रह गए , वह नहीं चाहते थे की एक राज पुत्र भिक्षु की जिंदगी जिए । उन्होंने उसका नाम सिद्धार्थ रखा । सिद्धार्थ का मतलब 'सारे काम परीपूर्ण होना ' है । बाद में उन्होंने सिद्धार्थ के सगी मौसी (महामाया की बहन) से शादी की । सिद्धार्थ के मौसी का नाम गौतमी था । वह सिद्धार्थ का बड़ा लाड प्यार और ख़याल रखती थी । वह उनके आँखों का तारा था । रानी गौतमी को राजा शुद्धोधन से अपना एक पुत्र प्राप्त हुआ, उसका नाम नंद रखा गया । सौतेला भाई होने के कारण और सिद्धार्थ को मिलते विशेष प्यार के कारण वह सिद्धार्थ से ईर्ष्या करने लगा । राजा ने बहुत लाड प्यार से सिद्धार्थ का संगोपन किया और सारे राज पाठ सहित शस्त्र और युद्ध विद्या भी दिलाई । सिद्धार्थ बहुत निपुण होने के साथ वह तीव्र बुद्धि के कारण जल्दी सिख जाता था ।
कुछ समय अकेले में मनन चिंतन करने में एकांत में रहते थे ।एक बार हमेशा की तरह वह वन में पेड़ के नीचे मनन कर रहे थे तभी आसमान में एक धनुष्य के बाण से घायल उडाता हुआ पक्षी देखा । उन्होंने उसका पीछा किया और घायल पक्षी को राजगृह ले आया । उस पक्षी का शिकार उसके सौतेले भाई ने किया था । पक्षी को लेकर दोनों झगड़ पडे । मामला आखिर न्याय सचिव के पास जा पहुँचा |
दोनों ने अपने दलीलें पेश की । आखिर सिद्धार्थ कह पड़ा मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है इसलिए पक्षी उसी को मिलना चाहिए ।
न्याय दाता नन्हे बालक के सोच समज से अचम्भीत रह गए । सिद्धार्थ का समर्थन करके पक्षी सिद्धार्थ को सोपा गया । राजा कुछ खास प्रभावित नहीं थे शायद ! , ' क्या राजकुमार जिसको युद्ध करना होता है । उसको इतना सौम्य होना चाहिए ? '
सिद्धार्थ ने पक्षी की खूब सेवा और इलाज़ कराया । कुछ ही दिनों में पक्षी स्वस्थ होकर उड़ गया ।
पद्मपाणि - राजकुमार सिद्धार्थ , अजंता गुफा में बनाई गया भिंती चित्र |
जब सिद्धार्थ १६ वर्ष के हुवे तब उन्हें उनके पिता ने शादी करने को कहा ।
एक दिन नेपाल के एक राज्य के कोलीय वंश की राजकुमारी यशोधरा का स्वयवंर घोषित हुवा । राजा ने तुरंत शिद्धार्थ को स्वयवंर में भाग लेने को कहा । स्वयंवर में कही सारे अलग अलग राज्य के राजकुमार शामिल हुवे । सब ने अलग अलग प्रतियोगिता जैसे कुश्ती, धनुर्विद्या की चुनोतियो में भाग लिया ।
सिद्धार्थ इसमे विजयी हुवा और स्वयंवर में राजकुमारी यशोधरा को अपनी पत्नी बनाने के लिए यशस्वी हुवा ।
सिद्धार्थ यशोधरा को पहले से जानते थे , उन्होंने उसे कुछ त्यवहार के मुलकात के दौरान देखा था । वह उसे तबसे ही पसंद करते थे । दोनों शादी के बाद ख़ुशी से प्रेमपूर्वक रह रहे थे । कुछ समय बाद यशोधरा गर्भवती बनी ।
राजकुमार को सामन्य जीवन से हमेशा से ही दूर रखा जाता था । एक दिन उन्होंने राज गृह का बाहरी बगीचे का दरवाजा खुला पाया । एकाएक कुतूहलता जाग उठी । उन्होंने अपने प्रिय सेवक चन्ना को उसे अपने रथ में बाहर जाने की आज्ञा दी । पर उनको बाहर जाने के लिए पहले ही मना किया गया था , इसलिए चन्ना ने बात को टाल देने का भरपूर प्रयास किया लेकिन विवश होकर रथ में सिद्धार्थ को बाहर लाना हो पड़ा । पहिली बार सिद्धार्थ बाहरी दुनिया में नजर घुमा रहा था। कुछ देर बाद जब रथ नगर के बाहर आने लगा उसको अनेक गरीब पीड़ित लोग और रोगो से ग्रस्त भिकारी दिख पड़े । कुछ वृद्ध रोगी मरने के आखरी कगार पर थे । उसको एकाएक सदमा लग गया क्योंकि उसने राज विलास के सिवा जीवन में कुछ और अनुभव नहीं किया था । वह एक के बाद एक प्रश्न अपने साथी से पूछने लगा , की ये कोन लोग है और ऐसे कैसे हो गए । तब सेवक ने कहा , ये लोग गरीब और रोग ग्रस्त है , यह आम बात है । हम सब को एक न एक दिन वृद्ध होना ही पड़ेगा और मरना भी पड़ेगा । सिद्धार्थ यकीन नहीं कर पाया और चिंता में खो गया के ' क्या वह भी एक दिन वृद्ध होकर रोगी और शरीर से वृक्ष हो जायेगा ? '
राह में गुजरते वक्त उनको समाचार मिला के उनको पुत्र प्राप्ति हुवी है । वह और चिंतित हो पड़ा और सोचने लगा की जीवन में एक बेड़ी और !
उसने पुत्र का नाम राहुल रखने का आदेश दिया ।
बाद में उसने भगवे कपडे पहने एक सन्यासी को जाते देखा जिसके चैहरे पर अनोखी चमक थी । सिद्धार्थ ने पूछने पर सेवक ने जबाब दिया के वह एक संन्यासी है जो अपने सांसारिक जीवन को त्याग कर तप करते है ।
सिद्धार्थ बहुत व्यथित हो गया था , वापस राज गृह आने पर भी उसका मन नहीं लग रहा था । एक के बाद एक प्रश्न बैचेनी और भी बड़ा रहे थे । उसने यह बात अपनी पत्नी यशोधरा से भी कही पर उसने कहा की वह ये जानती है , यह एक आम बात है । हर मनुष्य रोग से ग्रस्त होता है । वृद्ध भी होता है । मरण अटल है ।
इधर राजा शुद्धोधन उसे राजपाठ सोपकर राज्य का नेतृत्व सोपने की तैयारी कर रहे थे । एक दिन सिद्धार्थ फैसला कर लेते है की वह भी सत्य की खोज करने गृह त्याग करेंगे | सिद्धार्थ के इस फैसले से राज्य में कोई भी खुश नहीं होता क्योंकि सभी लोगों को सिद्धार्थ बहुत अधिक प्रिय था | सभी लोग सिद्धार्थ को मानाने की बहुत कोशिश करते है लेकिन सिद्धार्थ अपना फैसला नहीं बदलते है |
चन्ना और राजकुमार सिद्धार्थ बचपन से ही अच्छे मित्र थे । समय बितता जा रहा था । नदी पास आ गयी जहा राज्य की सीमा भी होती थी | तब राजकुमार सिद्धार्थ ने रुकने को कहा ।
उतरकर उन्होंने दोनों को वापस जाने को कहा, चन्ना समझ ही नहीं पाया । पर बाद में मान गया । उनका प्रिय अश्व कंठका भी व्याकुल होकर सिद्धार्थ को रुकने के लिए मनाने की कोशिश करने लगा पर वह नहीं माना । आख़िर कार चन्ना अश्व को वापस राज गृह ले गया ।
इस फैसले से उनके पत्नी के सभी भाई बहुत नाराज और क्रोधित होते है जब उनको पता चलता है के सिद्धार्थ ने सन्यासी जीवन अपना लिया है और पत्नी को राजमहल में ही उनके बिना जीवन बिताना पड़ेगा | वे भाई इसका जोरदार तरीके से विरोध भी दर्शाते है |