धम्मपद १८८ , १८९ , १९० , १९१ , १९२ अग्गिदत्तब्राह्मण वठु

अग्गिदत्त की कहानी | 

जेतवन मठ मे जब बुद्ध रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद अग्गिदत्त ब्राह्मण के संदर्भ मे कहा |

राजा पसेनदी के पिता राजा महाकोसल के समय मे अग्गिदत्त प्रमुख पुरोहित था | राजा महाकोसल के मृत्यु के बाद अग्गिदत्त ने अपनी सारी संपत्ति दान धर्म मे दे दी , और बाद मे गृह त्याग कर तपस्वी बन गया | वह उसके दस हज़ार अनुयायियों के साथ अंग , मगध और कुरु इन तीन राज्यों के सिमावों के नजदिग रहा , वहा से पास मे रेत का पहाड़ था जहा शक्तिशाली नाग रहता था | वह उसके अनुयायी और इन तीन राज्यों को उपदेश देता " जंगलों , बगीचों , उद्यान , पर्वत और पेड़ों को श्रद्धांजली दो , ऐसा करने से तुम जीवन के बुराइयों से मुक्त हो सकोगे | "

एक दिन , बुद्ध ने अग्गिदत्त और उसके शिष्यों को अपने दृष्टि से देखा और अहसास हुवा के उन सबका अरहंत बनने का समय आ गया है | तब बुद्ध ने थेरा महा मोग्गल्लाना को अग्गिदत्त और उसके शिष्यों के यहाँ जाकर बताने को कहा के बुद्ध उनके यहाँ आयेंगे | थेरा महा मोग्गल्लाना उनके यहा गया और एक रात्रि के लिए निवास के लिए जगह मांगी | उन्होंने पहले इनकार किया , लेकिन आखिरकार वे सब उसको रेत की पहाड़ी पे रहने के लिए राजी हो गए , जो नाग का घर था | नाग थेरा मोग्गल्लाना के लिए बहुत प्रतिकूल था , उन दोनों के बिच प्रतिद्वंद हुवा , दोनों तरफ से आग और धुंवा फेंक कर कर शक्ति प्रदर्शन हुवा | आखिर मे नाग वशीभूत हुवा , उसने रेत के पहाड़ी को कुंडली मारी , और सर उठा के छतरी की तरह थेरा महा मोग्गल्लाना के ऊपर छत्र बनाकर सम्मान किया | सुबह सुबह अग्गिदत्त और उसके शिष्य वहा यह देखने के लिए आये के महा मोग्गल्लाना जिंदा है या नही , वो उम्मीद कर रहे थे के महा मोग्गल्लाना मर चुका होगा | जब उन्होंने देखा के नाग पालतु बन गया है और महा मोग्गल्लाना के सर पर छत्र बनके आदर से स्थित है तो वे सारे अचंभित रह गए |

तभी , बुद्ध वहा पहुँचे और महा मोग्गल्लाना अपने आसन से उठकर बुद्ध को अभिवादन किया | तभी महा मोग्गल्लाना ने उन शिष्यों से कहा के , " यह मेरे गुरु है , श्रेष्ट बुद्ध , और मै इन महान शिक्षक का नम्र छात्र | " यह सुनकर , शिष्य जो बहुत प्रभावित हुवे थे महा मोग्गल्लाना का सामर्थ्य देखकर और भी प्रभावित हुवे यह देखकर के शिक्षक कितना योग्य होगा | तब बुद्ध ने अग्गिदत्त से पुछा के उसने अपने शिष्य और नझदिग रहने वाले लोगों को कौनसी शिक्षा दी है | अग्गिदत्त ने जवाब दिया के उसने अपने अनुयायियों को और वहा रहने वाले रहिवासियों को पर्वतों , जंगलो , बगीचों और उद्यानों को श्रद्धांजलि अर्पित करने की सिख दी है जिससे जिवन में बुराईयों से बचाव हो सके | तब बुद्ध ने अग्गिदत्त से कहा था , " अग्गिदत्त , लोग पर्वतों पर , जंगलों , बगीचों और उद्यानों में शरण पाने जाते है जब वे खतरा महसूस करते है , पर ये जगह उनको कोई संरक्षण नही दे सकते | सिर्फ वे जो बुद्ध , धम्म और संघ की शरण आते है वे पुनर्जन्म के चक्कर ( संसार ) से मुक्ति हासिल करते है | "

तब बुद्ध ने ये धम्मपद कही |

" जब खतरे से भय लगे , आदमी कही सारों की शरण जाता है , पर्वतों पर और जंगलो में , उद्यान और बगीचों में , और पवित्र वृक्षों के यहाँ  | "


" लेकिन ऐसी शरण सुरक्षित शरण नही है , श्रेष्ठ शरण नही है  | हम अस्तित्व में रहने से होने वाले अनिष्ट परिणामों से मुक्त नही होते अगर ऐसी शरण लेते है  | "


" जो , बुद्ध , धम्म और संघ मे शरण लेता है  , मग्गा शुष्म दृष्टी से चार आर्य सत्य देखता है , यानी के दुःख और दुःख का कारन , दुःख का नाश होना , और कुलीन  / आर्य अष्टांग मार्ग जो की दुःखो को नाश करता है  | "


" यह , वास्तव में , सुरक्षित मार्ग है , यह सर्वोत्तम शरण है  | इस शरण में आकर , सर्व दुःखों से मुक्त हो जाते है  | "


उपदेश के अंत में अंगिदत्त और उसके शिष्य अरहंत बन गए | वे सब बुद्ध संघ के भिक्खु बने | एक दिन जब अंगिदत्त के अनुयायी अंग , मगध और कुरु से मिलने आये तब उन्होंने उसे और बुद्ध को एक जैसे वेश मे देखकर सोच मे पड़ गए के आखिरकार कोण श्रेष्ठ है ? बुद्ध या उनके गुरु ? बुद्ध उनके यहा आये है इसलिये शायद उनके गुरु ही श्रेष्ठ है | बुद्ध और अंगिदत्त दोनों उनके मन को समझ रहे थे | अंगिदत्त ने सोचा के उन अनुयायियों के शंका का निरसरण करना चाहिए | इसिलिये उसने अपनी श्रद्धा बुद्ध के प्रति समर्पित की , और कहा , " भंते ! आप मेरे गुरु है ! मै केवल आपका शिष्य हूँ | " तब वहा आये हुवे अनुयायियों को बुद्ध की महानता की समझ आयी | 

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