धम्मपद १३१ , १३२ संबहुला कुमारका वठु , धम्मपद १६४ कालाथेरा वठु
अनेक युवाओं की कहानी |
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद अनेक युवाओं के संदर्भ मे कहा |
एक समय , बुद्ध भिक्षा के लिए सावत्थी नगर मे निकल पड़े थे तब वह उनको अनेक लड़के नजर आये जो साप को लकड़ी से पिट रहे थे | पूछने पर , लड़कों ने कहा वे साप को इसलिए मार रहे है ताकी उनको डर है के वह उनको काट लेगा | उनको बुद्ध ने कहा , " अगर तुम चाहते हो के खुद को हानि न हो , तुमने भी दूसरों को हानि नही पहुँचानी चाहिए , अगर तुम दूसरों को हानि पहुँचाते हो , तुम लोगों को अगले अस्तित्व मे सुख नही मिल सकेगा | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो खुद के ख़ुशी के लिए दूसरों को दबाता है , उसको जो खुद भी ख़ुशी की आकांशा रखता है , अगले अस्तित्व मे खुश नही रह सकेगा | "
धम्मपद १६४ कालाथेरा वठु
जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद अनेक युवाओं के संदर्भ मे कहा |
एक समय , बुद्ध भिक्षा के लिए सावत्थी नगर मे निकल पड़े थे तब वह उनको अनेक लड़के नजर आये जो साप को लकड़ी से पिट रहे थे | पूछने पर , लड़कों ने कहा वे साप को इसलिए मार रहे है ताकी उनको डर है के वह उनको काट लेगा | उनको बुद्ध ने कहा , " अगर तुम चाहते हो के खुद को हानि न हो , तुमने भी दूसरों को हानि नही पहुँचानी चाहिए , अगर तुम दूसरों को हानि पहुँचाते हो , तुम लोगों को अगले अस्तित्व मे सुख नही मिल सकेगा | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" जो खुद के ख़ुशी के लिए दूसरों को दबाता है , उसको जो खुद भी ख़ुशी की आकांशा रखता है , अगले अस्तित्व मे खुश नही रह सकेगा | "
धम्मपद १६४ कालाथेरा वठु
मुर्ख मनुष्य , जो उसके गलत दृषिकोण से , आदर करने योग्य कुलीन लोगों की जो धम्म के अनुसार जीते है उनकी घृणा करते है वे बाम्बू के तरह होते है जिसका फल खुद के विनाश का कारण बनता है |
थेरा काला की कहानी |
बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा काला के संदर्भ मे कहा |
एक समय , एक बड़ी उम्र की महिला थेरा काला को अपने पुत्र समान मानती थी | एक बार उसने उसके पड़ोसियों से बुद्ध के गुणों के बारे मे सुना | उसे जेतवन जाने की बहुत इच्छा हुवी और बुद्ध द्वारा दिए जाने वाले प्रवचन सुनने की | लेकिन थेरा ने इसके विपरीत राय दी | उसने तीन बार थेरा से पूछा लेकिन थेरा ने हमेशा इनकार कर दिया | लेकिन एक दिन , उसके रोकने पर भी , महिला ने जाने की ठानी | अपने पुत्री को थेरा को देखने कहकर खुद घर से निकली | जब थेरा काला हमेशा की तरह भिक्षा मांगने आया , उसे पता चला के महिला जेतवन मठ जाने निकल चुकी है | तब उसने विचार किया के , " यह जाहिर लगता है के इस घर की महिला का विश्वास मुझसे उठ रहा है | " तब उसने जल्दबाजी मे उसका मठ तक पिछा किया | वहा , उसने देखा के वह बुद्ध के प्रवचन सुन रही है | उसने आदरपूर्वक बुद्ध के पास जाकर कहा , " भंते ! यह औरत बहुत मंद है ; वह इस भव्य धम्म की समझ नही सकेगी ; कृपया उसे केवल दान धर्म और शील के बारे मे बताये | "
बुद्ध को अच्छे से पता था के थेरा घृणा और छुपे इरादे से कह रहा है | तब उसने थेरा काला से कहा , " भिक्खु ! , क्योंकी तुम मुर्ख हो और तुम्हारी सोच गलत है , तुम मेरे सिख का तिरस्कार करते हो | तुम खुद ही खुद का नाश कर रहे हो ; वास्तव मे खुद का ही बुरा कर रहे हो | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" मुर्ख मनुष्य जो , जो उसके गलत दृषिकोण से , आदर करने योग्य कुलीन लोगों की जो धम्म के अनुसार जीते है उनकी घृणा करते है वे बाम्बू के तरह होते है जिसका फल खुद के विनाश का कारण बनता है | "
प्रवचन के समाप्त होने पर महिला सोतापन्न बनी |
थेरा काला की कहानी |
बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा काला के संदर्भ मे कहा |
एक समय , एक बड़ी उम्र की महिला थेरा काला को अपने पुत्र समान मानती थी | एक बार उसने उसके पड़ोसियों से बुद्ध के गुणों के बारे मे सुना | उसे जेतवन जाने की बहुत इच्छा हुवी और बुद्ध द्वारा दिए जाने वाले प्रवचन सुनने की | लेकिन थेरा ने इसके विपरीत राय दी | उसने तीन बार थेरा से पूछा लेकिन थेरा ने हमेशा इनकार कर दिया | लेकिन एक दिन , उसके रोकने पर भी , महिला ने जाने की ठानी | अपने पुत्री को थेरा को देखने कहकर खुद घर से निकली | जब थेरा काला हमेशा की तरह भिक्षा मांगने आया , उसे पता चला के महिला जेतवन मठ जाने निकल चुकी है | तब उसने विचार किया के , " यह जाहिर लगता है के इस घर की महिला का विश्वास मुझसे उठ रहा है | " तब उसने जल्दबाजी मे उसका मठ तक पिछा किया | वहा , उसने देखा के वह बुद्ध के प्रवचन सुन रही है | उसने आदरपूर्वक बुद्ध के पास जाकर कहा , " भंते ! यह औरत बहुत मंद है ; वह इस भव्य धम्म की समझ नही सकेगी ; कृपया उसे केवल दान धर्म और शील के बारे मे बताये | "
बुद्ध को अच्छे से पता था के थेरा घृणा और छुपे इरादे से कह रहा है | तब उसने थेरा काला से कहा , " भिक्खु ! , क्योंकी तुम मुर्ख हो और तुम्हारी सोच गलत है , तुम मेरे सिख का तिरस्कार करते हो | तुम खुद ही खुद का नाश कर रहे हो ; वास्तव मे खुद का ही बुरा कर रहे हो | "
तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" मुर्ख मनुष्य जो , जो उसके गलत दृषिकोण से , आदर करने योग्य कुलीन लोगों की जो धम्म के अनुसार जीते है उनकी घृणा करते है वे बाम्बू के तरह होते है जिसका फल खुद के विनाश का कारण बनता है | "
प्रवचन के समाप्त होने पर महिला सोतापन्न बनी |