धम्मपद २ मट्ठाकुण्डली वठु

मट्ठाकुण्डली की कहानी | 

जब बुद्ध सावत्थी नगर के जेतवन मठ में रुके हुवे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद मट्ठाकुण्डली जो बहुत नवयुवक ब्राह्मण था , उसके संदर्भ मे कही | उस लड़के के पिता का नाम अदिन्नापुब्बका था जो बहुत अधिक कंजुष था और उसने कभी भी दान पुण्य में पैसा नहीं दिया था | यही नही , उसने अपने केवल एकलौते पुत्र के लिए सोने के आभुषण खुद ही बनाये थे ताकी वह जेवर बनाने के मजुरी का ख़र्चा बचा सके | जब लड़का बहुत बीमार पड़ा , किसी भी वैद्य का इंतज़ाम नही किया गया जबतक बहुत देर हो चुकी थी |  वह वैद्य का पैसा बचाने के लिए लोगो से पूछता अगर तुम ऐसे  बीमार पड़े थे तो कौनसी औषदी वैद्य ने दी थी | और खुद ही काम चलावु नुसखे प्रयोग करता | 

जब उसको लगा के अब बच्चा मरने वाला है तो उसने बच्चे को बाहर वरांडा में लाकर लेटाया ताकि जो लोग मिलने आयेंगे वो लोग उसके घर का वैभव तथा संपत्ति न देख सके | एक दिन सुबह भगवान बुद्ध अपने ध्यान से मंगल मैत्री के लिये ध्यान फैला रहे थे तब उन्हें उस मासुम लड़के का अहसास हुवा जो वरांडा में बाहर बीमार लेटा हुवा था |  जब बुद्ध भगवान अपने शिष्य भिक्षुवों के साथ सावत्थी नगर में भिक्षा के लिए आये तो वह उस ब्राह्मण अदिन्नापुब्बका के घर के द्वार के पास रुके |  भगवान ने उस लडके का ध्यान अपने तरफ खिचने के लिये लड़के के तरफ अपनी आभा मंडल का प्रकाश फैलाया तब लड़के का मुँह घर के तरफ था | 

लड़के ने भगवान बुद्ध को देखा लेकिन वह बहुत कमजोर था इसलिए उसने केवल मानसिक रूप से ही अपनी आस्था प्रकट की | लेकिन वह काफी था | जब वह लड़का गुजर गया तब उसका जन्म तवतीस्मा आकाशीय जगत में हुवा | लड़के के शव के पास जब उसके पिता रो रहे थे तब वह लड़का प्रकट हुवा और अपने पिता से कहने लगा के वह उसका बेटा है लेकिन पिता को भरोसा नही हो रहा था | बच्चे ने पिता से एक सायकल मांगी जिसका एक पैय्या सूरज का और दुसरा चांद का होना चाहिए | तब बाप बोला ऐसा हो ही नही सकता यह उसके करने के क्षमता में नहीं है | तब लड़का बोला तो आप क्यों शव के पास बैठकर रो रहे है , जब मरे हुवे को जिंदा करना असंभव है | तब पिता का शोक कम हुवा |  

लड़के ने बाप से कहा के उसका जन्म तवतीस्मा आकाशीय जगत में हुवा है | लड़के ने कहा के वे भगवान बुद्ध को अपने घर खाने के लिए बुलाये | घर पर जब भगवान बुद्ध आये हुवे थे तब अदिन्नापुब्बका ने भगवान बुद्ध से पूछा के कोई केवल मानसिक रूप से भगवान बुद्ध में आस्था पाकर आकाशीय जगत में पैदा हो सकता है | तब भगवान बुद्ध ने मट्ठाकुण्डली को प्रकट होने की कामना मन में लायी तब मट्ठाकुण्डली अपने आकाशीय जगत के आभूषणों को पैहनकार प्रकट हुवा | तब मट्ठाकुण्डली ने यह भी बताया के उसका जन्म तवतीस्मा नाम के आकाशीय जगत में हुवा है | 
तब वहा रुके हुवे सारे लोगो को यह भरोसा हो गया के केवल मानसिक रूप से भगवान बुद्ध में विश्वास होने पर मट्ठाकुण्डली को बहुत पुण्य मिला है | 

तब भगवान बुद्ध ने कहा 

" सारी मानसिक प्रवृत्तियों का नेतृत्व मन करता है , मन उनका प्रमुख है , वह मन निर्मित है  | अगर हम शुद्ध मन से विचार या कर्म करते है , तो सुख हमारा साये की तरह पिछा करता है , जो कभी साथ नहीं छोड़ता है  | "

प्रवचन के आखिर में मट्ठाकुण्डली को सोतापना मग्गा और अदिन्नापुब्बका को सोतापन्न फल का लाभ हुवा | अदिन्नापुब्बका ने बाद में उसकी लगभग सारी संपत्ति बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए दान में दी | 

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