धम्मपद १४९ सम्बहुला अधिमानिका भिक्खु वठु
अधिमानिका भिक्खु की कहानी |
जब जेतवन मठ में रह रहे थे , तब बुद्ध ने यह कहा , उन भिक्खुवों के बारे मे जो खुद के उपलप्द्धि जादा आक रहे थे |
बुद्ध से ध्यान धारणा की विधि सिखाने के बाद पाँच सो भिक्खु वन में अभ्यास करने गये | उन भिक्खुवों ने जोश और लगन से ध्यान धारणा की और मानसिक रूप से एकाग्रता में (jhana) गहराई तक पहुँचे | तब उन्हें लगा के वे काम वासना , विषयासक्त नही रहे और अरहंत बन गये है | असलियत में वे स्वयं को जादा आक रहे थे | तब वे बुद्ध के पास आकर पहुँचे | यह बताने के लिए के शायद वह अरहंत बन गये है |
जब वे सारे मठ के बाहरी द्वार के पास आये तब बुद्ध ने भंते आनंद से कहा | " भिक्खु यहा आने पर मुझसे मिलकर अभी जादा लाभ नहीं पा सकते | पहले उनको कब्रिस्तान जाने के लिये कहो फिर बाद में मुझसे मिले | "
भंते आनंद ने बुद्ध की आज्ञा भिक्खुवों को बताई तब भिक्खु समझ गये के शायद बुद्ध जानते है के वे उन्हें क्या बताना चाहते है | "प्रबुद्ध सब जानते है , उनका जरूर कोई उद्देश्य होगा ताकि वे उन सबको कब्रिस्तान जाने के लिये कह रहे है | " तब सारे भिक्खु कब्रिस्तान पहुँचे |
जब उन्होंने सड़े हुवे शव देखे तब उन्हें वे केवल ढांचे और हड्डिया नजर आयी | लेकिन जब उन्होंने ताज़ी लाशे देखी तब उन्हें भय से अहसास हुवा के उनमे काम वासना अभी भी जागृत है | बुद्ध ने उन सबको अपने सुवासित कक्ष से देखा और अपनी चमक आभा मंडल में भेजी , उनके सामने प्रकट होकर कहा | " भिक्खुवों , क्या इन प्रक्षालित हड्डियों को देखकर अपने अंदर काम वासना जगाना उचित है ? "
तब भगवान बुद्ध यह धम्मपद कहा |
" जैसे पतझड़ के मौसम में लोकि फेक दी हो वैसी ही यह कबूतर की तरह भूरी हड्डिया है , उन्हें देखने में कैसा आनंद है ? "
प्रवचन जब समाप्त हुवा तो सारे पाँच सो भिक्खु अरहंत बन गये |
जब जेतवन मठ में रह रहे थे , तब बुद्ध ने यह कहा , उन भिक्खुवों के बारे मे जो खुद के उपलप्द्धि जादा आक रहे थे |
बुद्ध से ध्यान धारणा की विधि सिखाने के बाद पाँच सो भिक्खु वन में अभ्यास करने गये | उन भिक्खुवों ने जोश और लगन से ध्यान धारणा की और मानसिक रूप से एकाग्रता में (jhana) गहराई तक पहुँचे | तब उन्हें लगा के वे काम वासना , विषयासक्त नही रहे और अरहंत बन गये है | असलियत में वे स्वयं को जादा आक रहे थे | तब वे बुद्ध के पास आकर पहुँचे | यह बताने के लिए के शायद वह अरहंत बन गये है |
जब वे सारे मठ के बाहरी द्वार के पास आये तब बुद्ध ने भंते आनंद से कहा | " भिक्खु यहा आने पर मुझसे मिलकर अभी जादा लाभ नहीं पा सकते | पहले उनको कब्रिस्तान जाने के लिये कहो फिर बाद में मुझसे मिले | "
भंते आनंद ने बुद्ध की आज्ञा भिक्खुवों को बताई तब भिक्खु समझ गये के शायद बुद्ध जानते है के वे उन्हें क्या बताना चाहते है | "प्रबुद्ध सब जानते है , उनका जरूर कोई उद्देश्य होगा ताकि वे उन सबको कब्रिस्तान जाने के लिये कह रहे है | " तब सारे भिक्खु कब्रिस्तान पहुँचे |
जब उन्होंने सड़े हुवे शव देखे तब उन्हें वे केवल ढांचे और हड्डिया नजर आयी | लेकिन जब उन्होंने ताज़ी लाशे देखी तब उन्हें भय से अहसास हुवा के उनमे काम वासना अभी भी जागृत है | बुद्ध ने उन सबको अपने सुवासित कक्ष से देखा और अपनी चमक आभा मंडल में भेजी , उनके सामने प्रकट होकर कहा | " भिक्खुवों , क्या इन प्रक्षालित हड्डियों को देखकर अपने अंदर काम वासना जगाना उचित है ? "
तब भगवान बुद्ध यह धम्मपद कहा |
" जैसे पतझड़ के मौसम में लोकि फेक दी हो वैसी ही यह कबूतर की तरह भूरी हड्डिया है , उन्हें देखने में कैसा आनंद है ? "
प्रवचन जब समाप्त हुवा तो सारे पाँच सो भिक्खु अरहंत बन गये |