धम्मपद १६६ अत्तदठथेरा वठु

अत्तदठ थेरा की कहानी |

जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा अत्तदठ के संदर्भ मे कहा |

जब बुद्ध ने घोषणा की उनका चार महीने मे परिनिब्बान होगा , बहुत सारे पृथुजना भिक्खु भयभीत हो गए और उनको समझ नही आ रहा था के क्या करे इसलिये वे बुद्ध के पास ही रहते | लेकिन अत्तदठ बुद्ध के पास नही जाता , संकल्प किये हुवे के बुद्ध के रहते ही अरहंत बनना है , वह बहुत परिश्रम से ध्यान करता रहा | दूसरे भिक्खु उसे समझ नही सके , उसे बुद्ध के पास लेकर गए और कहा , " भंते , यह भिक्खु शायद आपको प्रेम और सम्मान नही करता जैसे हम करते है , वह  केवल खुद मे ही रममान है | " तब थेरा ने उनसे कहा के वह अरहंत बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है इसलिये वह बुद्ध के पास नही आ सका , वह बुद्ध के परिनिर्वाण के पूर्व ही अरहंत बनना चाहता है | 

बुद्ध ने तब भिक्खुवों से कहा , " भिक्खुवों , जो मुझसे प्रेम और सम्मान करते है उन्होंने अत्तदठ के समान काम करना चाहिए | आप मुझे केवल फूल , अत्तर , धुप और मुझसे मिलने आके श्रद्धा नही जता रहे | आप मुझे केवल मैने सिखाये हुवे धम्म जो के लोकुत्तर धम्म है उसका आचरण करके श्रद्धा जता सकते है | 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" दूसरों के फायदे के लिए  , चाहे कितना महान कार्य हो , खुद का भला करना नजर अंदाज मत करो  | खुद के भलाई के लिए प्रयास करते वक़्त हर कोशिश करनी चाहिए  | "

उपदेश के अंत मे थेरा अत्तदठ अरहंत बन गया | 

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