धम्मपद ६२ आनंदसेठी वठु
आनंद की कहानी , जो बहुत अमिर था |
जेतवन मठ में जब भगवान बुद्ध रह रहे थे , तब एक दुःखी व्यक्ति के बारे में बुद्ध ने विवेचन किया |
सावत्थी नगर में उन दिनों आनंद नाम का एक बहुत आमिर आदमी रहता था | उस के पास अस्सी करोड़ मुद्राये थी फिर भी वह कभी दान धर्म नहीं करता था | उसके मुलसीरी नाम के लड़के से वह कहता, " ऐसा मत सोचो की अभी जो भी संपत्ति हमारे पास है वह बहुत है | तुम्हारे पास जो भी है उसे कभी किसी को मत दो | तुम्हारे लिये वह बढ़ते रहना चाहिए | नहीं तो तुम्हारी संपत्ति कम हो जायेगी | अमिर आदमी के पास पाच मडके थे जिसमे सोना था जो उसके घर के अंदर गड़े थे और वह उनका पता अपने लड़कों को बिना बताये चल बसा |
आनंद , अमिर आदमी भिखारियों के गाव में पैदा हुवा जो सावत्थी नगर से जादा दुर नहीं था | जब से उसकी माँ गर्भवती थी उस गाव की आमदनी कम हो गयी | गाव के लोगो ने सोचा उन में से जरूर कोई दृष्ट और बदकिस्मत है | उन लोगो ने आपस में गट बनाये और फिर नतीजा लगाया की वह गर्भवती औरत बदकिस्मत है | इसलिये उन गाव के लोगो ने उसे गाव से बाहर निकाला | जब उसे लड़का पैदा हुवा , वह बहुत दिखने में भद्दा और अरुचिकर था | अगर वह खुद भीख माँगने जाती तो उसे पहले जैसा काफी कुछ मिलता , लेकिन जब वह उस लड़के को लेकर बाहर जाती तो उसे कुछ नहीं मिलता | जब वह बाहर जाने के योग्य बना तो उसके माँ ने उसे हाथ में थाली थमाई और उसे छोड दिया | जैसे वह सावत्थी नगर में घूमने लगा उसे उसका पुराना घर याद आया और पिछले जन्म का अहसास हुवा | इसिलिये वह घर में चला गया , जब पिछले जन्म के बेटे मुलसीरी के बच्चों ने उसे देखा , वे उसके बदसूरत चेहरे को देखकर घबरा गये और जोर से रोने लगे | नौकरों ने तब उसे पीटकर घर से बाहर निकाला |
भगवान बुद्ध जब भिक्षा माँगने चक्कर लगा रहे थे तब उन्होंने भंते आनंद से मुलसीरी को बुलावा भेजा | जब मुलसीरी आया तब भगवान बुद्ध ने उसे बताया के वह भिखारी पिछले जन्म में मुलसीरी के पिता थे | लेकिन मुलसीरी को विश्वास नहीं हो रहा था | तब बुद्ध भगवान ने उस भिखारी लडके को उन पाच मडके के यहा ले जाने को कहा जिनको उसने पिछले जन्म में सोना भरकर घर में गाड दिया था | तब मुलसीरी को विश्वास हुवा और फिर वह भगवान बुद्ध का अनुयायी बन गया |
तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" मेरे पास संतान है , मेरे पास संपत्ति है | " इस आसक्ति भरे अहसास से मुर्ख ग्रसित होता है | वास्तव में वह खुद उसका नहीं होता , तो संपत्ति और संतान उसके कैसे हो सकते है | "
जेतवन मठ में जब भगवान बुद्ध रह रहे थे , तब एक दुःखी व्यक्ति के बारे में बुद्ध ने विवेचन किया |
सावत्थी नगर में उन दिनों आनंद नाम का एक बहुत आमिर आदमी रहता था | उस के पास अस्सी करोड़ मुद्राये थी फिर भी वह कभी दान धर्म नहीं करता था | उसके मुलसीरी नाम के लड़के से वह कहता, " ऐसा मत सोचो की अभी जो भी संपत्ति हमारे पास है वह बहुत है | तुम्हारे पास जो भी है उसे कभी किसी को मत दो | तुम्हारे लिये वह बढ़ते रहना चाहिए | नहीं तो तुम्हारी संपत्ति कम हो जायेगी | अमिर आदमी के पास पाच मडके थे जिसमे सोना था जो उसके घर के अंदर गड़े थे और वह उनका पता अपने लड़कों को बिना बताये चल बसा |
आनंद , अमिर आदमी भिखारियों के गाव में पैदा हुवा जो सावत्थी नगर से जादा दुर नहीं था | जब से उसकी माँ गर्भवती थी उस गाव की आमदनी कम हो गयी | गाव के लोगो ने सोचा उन में से जरूर कोई दृष्ट और बदकिस्मत है | उन लोगो ने आपस में गट बनाये और फिर नतीजा लगाया की वह गर्भवती औरत बदकिस्मत है | इसलिये उन गाव के लोगो ने उसे गाव से बाहर निकाला | जब उसे लड़का पैदा हुवा , वह बहुत दिखने में भद्दा और अरुचिकर था | अगर वह खुद भीख माँगने जाती तो उसे पहले जैसा काफी कुछ मिलता , लेकिन जब वह उस लड़के को लेकर बाहर जाती तो उसे कुछ नहीं मिलता | जब वह बाहर जाने के योग्य बना तो उसके माँ ने उसे हाथ में थाली थमाई और उसे छोड दिया | जैसे वह सावत्थी नगर में घूमने लगा उसे उसका पुराना घर याद आया और पिछले जन्म का अहसास हुवा | इसिलिये वह घर में चला गया , जब पिछले जन्म के बेटे मुलसीरी के बच्चों ने उसे देखा , वे उसके बदसूरत चेहरे को देखकर घबरा गये और जोर से रोने लगे | नौकरों ने तब उसे पीटकर घर से बाहर निकाला |
भगवान बुद्ध जब भिक्षा माँगने चक्कर लगा रहे थे तब उन्होंने भंते आनंद से मुलसीरी को बुलावा भेजा | जब मुलसीरी आया तब भगवान बुद्ध ने उसे बताया के वह भिखारी पिछले जन्म में मुलसीरी के पिता थे | लेकिन मुलसीरी को विश्वास नहीं हो रहा था | तब बुद्ध भगवान ने उस भिखारी लडके को उन पाच मडके के यहा ले जाने को कहा जिनको उसने पिछले जन्म में सोना भरकर घर में गाड दिया था | तब मुलसीरी को विश्वास हुवा और फिर वह भगवान बुद्ध का अनुयायी बन गया |
तब भगवान बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |
" मेरे पास संतान है , मेरे पास संपत्ति है | " इस आसक्ति भरे अहसास से मुर्ख ग्रसित होता है | वास्तव में वह खुद उसका नहीं होता , तो संपत्ति और संतान उसके कैसे हो सकते है | "