धम्मपद ११४ किसागौतमी वठु

थेरी किसागौतमी की कहानी | 

जेतवन मठ मे बुद्ध जब रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने किसागौतमी के संदर्भ मे कहा | 

किसागौतमी सावत्थी नगर के एक अमिर आदमी की बेटी थी | वह किसागौतमी नाम से जानी जाती थी क्योंकि वह पतली थी | किसागौतमी का विवाह एक अमिर व्यक्ति से हुवा और एक लड़का हुवा | बच्चा जब बहुत काम उम्र का था तभी वह मर गया , इससे वह बहुत शोक से सहम गयी , वह एक व्यक्ति के पास गयी जिसे वह जानती थी ताकि वह कोई दवा हासिल कर सके जिससे उसका बच्चा जीवित हो सके | लोगों को लगने लगा था के वह पागल हो गयी है | एक होशियार आदमी को उसकी तकलीफ समझ आयी तब उसने उसको मदत करने की सोची | तो उसने उससे कहा , " बुद्ध ऐसे व्यक्ति है जिससे आप मदत मांग सकती है , उनके पास कोई दवा होगी जो काम करेगी , उनके पास जाओ " | वह बुद्ध के पास गयी और कोई दवा मांगी जो उसके मरे हुवे लड़के को जिंदा कर सके | 

बुद्ध से बहुत याचना करने पर आखिरकार बुद्ध ने उसको सरसों के बीज लाने को कहा उस घर से जहा कोई कभी मरा न हो | किसागौतमी अपने बच्चे को छाती से लगाकर हर घर गयी और सरसों के बीज मांगे | हर कोई मदत करना चाहता था पर ऐसा कोई नही था जिसके यहा किसी की मौत नही हुवी थी | तब उसे अहसास हुवा के वह केवल अकेली नही है जिसके यहा किसी की मृत्यु हुवी थी और ऐसे जादा लोग है जो मर चुके है | तब उसका नज़रिया बदला | उसकी अपने मरे हुवे बच्चे के शरीर से कोई आसक्ति नही रही | 

उसने शव को जंगल मे ही रख दिया और बुद्ध से वापस आकर कहा के उसको ऐसा कोई घर नही मिला जहा कोई मृत्यु नही हुवी हो | तब बुद्ध ने कहा , " गौतमी , तुमने सोचा के केवल तुम ही अकेली हो जिसका बच्चा मरा हो | अब जिस तरह तुम्हें अहसास हुवा है , मृत्यु हर इंसान को आती है , उनकी इच्छायें पुरी होने के पहले ही मृत्यु आ जाती है | " यह सुनकर किसागौतमी को नश्वरता , असंतुष्टी और मूलतत्वों के अस्थिरता का अनुभव हुवा और सोतापन्न बनी | 

उसके तुरंत बाद किसागौतमी भिक्खुनी बनी | एक दिन जब वह दिया जला रही थी उसने देखा के आग जलकर बुझ जाती थी , तभी उसे सजीवों के निर्माण और मरन का अहसास हुवा |  बुद्ध को अलौकिक शक्ति से इसका पता चला , तब बुद्ध ने अपनी आभा से उसके सामने प्रकट होकर कहा के सजीवों के अनित्य / नश्वरता पर ध्यान करना और निर्वाण पाने के लिए कड़ी लगन से मेहनत करना | 

तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा | 
" निर्वाण  / अमरता का अहसास न होकर सौ साल जीने से बेहतर है वह एक दिन जब निर्वाण  / अमरता  का अनुभव होता है  | "

उपदेश के समाप्ति पर थेरी किसागौतमी अरहंत बनी | 

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