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धम्मपद हिंदी में

दुनिया का कोई भी शत्रु इतनी हानि हमें नहीं कर सकता , जितना के मन में बैठे तृष्णा , नफ़रत और ईर्ष्या । हमारे अस्तित्व का सारा सार निर्भय होने में ही है । निडर रहो , हमारा क्या होगा इसकी चिंता छोड़ दो , किसी पे निर्भर न रहो । तभी तुम असली अर्थो में मुक्त कहलाओगे । सेहत सबसे बड़ा उपहार है , संतुष्टि सबसे बड़ी दौलत , विश्वास ही सबसे बड़ा रिश्ता है। किसी पर बस इतने के लिए भरोसा मत करो क्योंकि तुमने सुना है , सहज मत मान लो क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है , विश्वास न करो क्योंकि बहुत लोग कह रहे है और अटल है , इसलिए नहीं मानो क्योंकि पवित्र ग्रंथो में लिखा है , बस इसलिए ही नहीं मानो क्योंकि शिक्षक , उच्च पदस्थ बड़े या होशियार लोग कहते है , विश्वास तभी करो जब तुम खूबी से निरीक्षण और चिंतन मनन करो और वह तुम्हारे तर्क पर उतरकर मान्य होकर सभी के लिए लाभकारी हो । जो हर एक जीवन में , खुद में ,और दूसरे सजीवों में और इसके विपरीत भी , एक जीवता का अनुभव करता है , वह हर चीज विपक्ष भाव से देखता है । एक बार एक इंसान ने भगवान बुद्ध से जीवन का मूल्य पूछा तो भगवान ने कहा " जीवन का कोई विशेष मूल्य नहीं है...

बुद्ध का मध्यम मार्ग

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बहुत सालों तक बुद्ध होने से पहले सिद्धार्थ किसी साधू की तरह रहे । भूखे रहकर समय बिताया । वे किसी रहने की जगह बिना , और बिना माथे पे छत के रह रहे थे । जब तक उनका सुंदर धष्ट पुष्ट शरीर एक काले , बारीक़ और करीब करीब मरने के नजदिग आ गया । एक दिन बुद्ध बोधी वृक्ष के नीचे नदी किनारे ध्यान कर रहे थे ,  नदी के उस पार एक मछुवारा अपने बेटे को संतूर वाद्य की लय बजाना सिखा रहा था । मछुवारेने अपने बेटे से कहा  " अगर तुमने संतूर की तार बहुत ज्यादा कसी तो वह टूट जाएगी , और बहुत जादा ढीली कसी तो बज ही नहीं पायेगा । अगर तुमने तार  सही तरह से योग्य मात्रा में तान कर लगाया तो वह बहुत मधुर संगीत बजा सकेगा । " मछुवारे का यह कहना सुनकर सिद्धार्थ के समझ में आया के जीवन को सुखी और सुंदर बनाने के लिए जीवन के तार नही बहुत कसे हुवे और नही बहुत ढीली होने चाहिए । अलग शब्दों में नहीं बहुत अधिक अमिर या बहुत गरीब , नही अधिक भूखा या बहुत भरे पेट रहना जीवन को ठीक है । जीवन को सुखी बनाने के लिए मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए । 

सम्यक कम्मा / कर्म

बुद्ध धर्म में अष्टांग मार्ग में से एक नियम ' सम्यक कर्म ' नाम से जाना जाता है , जो बहुत महत्त्वपूर्ण नियम है। आम तोर पर खुद को सन्यासी और धार्मिक बताने वाले व्यक्ति कहते फिरते है की जीवन मोह माया है , सब कुछ अनर्थ है.…इत्यदि इत्यादि। फिर भी उनकी तीव्र चाह होती के जादा से जादा अमिर लोग उनके अनुयायी बने | यह समाज को और ख़ास तोर पर नवयुवको को गुमराह करने का काम है। युवक आलसी भी बन सकते है। सम्यक कर्म और सम्यक आजिविका का मतलब है की अपनी उप जीविका का साधन सन्मार्ग होना चाहिए । उपजीविका का साधन किसी के हत्या या बुराई से सबंधित न हो । कर्म कल्याणकारी होना चाहिए । चोरी , डकैती , जहर बेचना , हत्या करना , शस्त्र , शराब बेचने जैसे फर्जी काम निषिद्ध है। कर्म का जीवन में बड़ा महत्व है इससे ही जीवन की गती निर्धारित होती है । भगवान बुद्ध ने लोगो की सेवा करने वाले कुछ भले चिकिस्तक और अन्य कल्याणकारी लोगो को दीक्षा देने के बाद भिक्षु बनने से मना कर दिया था ताकि वह समाज की सेवा करते रहे। भगवान बुद्ध कहते है।  " जब प्रयास करना चाहिए , तब प्रयास नहीं करता , जवान और पुष्ट होकर भ...

व्यक्ति चार प्रकार के

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एक बार बुद्ध उपदेश के लिए बहुत दूर चलते हुवे एक गाव में पहुँच कर कुछ समय विश्राम के लिए ठहरे हुवे थे । तब यह बात गाव में फेल गयी । तभी एक बुजुर्ग इंसान ने बुद्ध से मिलने की ठानी । बुद्ध से मिलने के बाद उसने बुद्ध से पूछा " ये महान व्यक्ति जरा मुझे यह बताइये की इस दुनिया में सबसे श्रेष्ठ इंसान कोण है ?"  तब भगवान बुध ने कहा " हे सज्जन पुरुष, वैसे किसी एक व्यक्ति का नाम बताना तो मुश्किल है , पर इतना ज़रूर बता सकता हुं की दुनिया में चार प्रकार के इंसान होते है । पहले प्रकार का इंसान जो नहीं खुद के लिए जीता है , न ही औरो के लिए ।  वह एक चिता के समान है क्योंकि वह किसी काम नहीं आता , और एक दिन ऐसे ही शरीर त्याग देता है । दूसरे प्रकार का इंसान जो दुसरो के लिए जीता है और खुद के प्रति उपेक्षा से जीता है । वह पहले प्रकार के इंसान से अच्छा जीवन जीता है ।  वह खुश नहीं होता पर थोड़े ही संतोष के साथ जीता है । तीसरे प्रकार का इंसान सिर्फ खुद के लिए जीता है , औरो के प्रति वह उपेक्षा की भावना से जीता है । वह खुश रहता है मगर पुण्य नहीं कम पाता । चौथे प्रकार का इंस...