धम्मपद हिंदी में
दुनिया का कोई भी शत्रु इतनी हानि हमें नहीं कर सकता ,
जितना के मन में बैठे तृष्णा , नफ़रत और ईर्ष्या ।
हमारे अस्तित्व का सारा सार निर्भय होने में ही है ।
निडर रहो , हमारा क्या होगा इसकी चिंता छोड़ दो ,
किसी पे निर्भर न रहो ।
तभी तुम असली अर्थो में मुक्त कहलाओगे ।
सेहत सबसे बड़ा उपहार है , संतुष्टि सबसे बड़ी दौलत ,
विश्वास ही सबसे बड़ा रिश्ता है।
किसी पर बस इतने के लिए भरोसा मत करो क्योंकि तुमने सुना है ,
सहज मत मान लो क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है ,
विश्वास न करो क्योंकि बहुत लोग कह रहे है और अटल है ,
इसलिए नहीं मानो क्योंकि पवित्र ग्रंथो में लिखा है ,
बस इसलिए ही नहीं मानो क्योंकि शिक्षक ,
उच्च पदस्थ बड़े या होशियार लोग कहते है ,
विश्वास तभी करो जब तुम खूबी से निरीक्षण और चिंतन मनन करो और वह तुम्हारे तर्क पर उतरकर मान्य होकर सभी के लिए लाभकारी हो ।
जो हर एक जीवन में , खुद में ,और दूसरे सजीवों में और इसके विपरीत भी , एक जीवता का अनुभव करता है ,
वह हर चीज विपक्ष भाव से देखता है ।
एक बार एक इंसान ने भगवान बुद्ध से जीवन का मूल्य पूछा तो भगवान ने कहा " जीवन का कोई विशेष मूल्य नहीं है ,
जीवन ही एक अवसर है मूल्यवान बनने के लिए। "
जो व्यक्ति बस पवित्र ग्रंथो का पाठ करता है पर वैसा आचरण ही नही करता , वह व्यक्ति बस उस गोपाल की तरह है जो बस दुसरो की गांय गिनता रह जाता है ।
उसे उन ग्रंथो का कुछ लाभ नहीं हो पाता है।
जो व्यक्ति बहुत कम धार्मिक ग्रंथ पढ़ता है परंतु जो अपने जीवन में सदव्यवहारी होता है , और लोभ , नफ़रत , काम वासना सहित सारे कुविचारों का त्याग करके सम्यक ज्ञान से मन को निर्मल करता है। वह जातक पवित्र जीवन का अनुभव करता है।
जो व्यक्ति मूर्खो की संगती करता है ,
वह बहुत समय शोक करता रह जाता है।
मूर्खो के साथ रहना वेदनादायक है ,
जैसे शत्रु वो के साथ रहना।
प्रज्ञा जनो के साथ रहना बहुत सुखकारक है,
जैसे आत्मिय परिजन मिलते है।
इसलिये व्यक्ति ने अच्छे बुद्धिमान,
जो प्रज्ञ , व्यवहारिक और पढ़ा लिखा ,
पुण्य से प्रतिपध , कर्तव्य प्रिय, और महान है,
उसका अनुसरण करना चाहिए।
जैसे चंद्रमा तारों और नक्षत्रो में मार्ग क्रमन करता है।
वासना जैसी कोई आग नहीं है, घृणा जैसा कोई अपराध नही ,
जुदाई जैसा दुःख नही , भूख की तरह कोई रोग नही ,
और आज़ादी से बड़ा कोई आनंद नही।
आप वही खोते है जिससे आप आसक्त होते है।
हर सुबह जब हम जागते है,
जो आज करते है , वही मायने रखता है।
वह कर्म न होने पाये जिससे बाद मे प्रज्ञावान निंदा करे।
प्रज्ञावान वही है , जिसने अपने वाणी, मन और शरीर पर स्वामित्व पाया है ।
घृणा घृणा से खत्म नही होती , यही सनातन सत्य है।
भूतकाल पर ध्यान केंद्रित मत करो ,
और नही भविष्य के सपने देखो ,
बस वर्तमान के हर पल पर ध्यान केंद्रित करो।
चाहे मुर्ख व्यक्ति प्रज्ञावान के साथ सारा जीवन बिता दे ,
वह सत्य का अनुभव नही कर सकता।
जैसे शोरबे का स्वाद चमच को अनुभव नही हो सकता।
जैसे बड़ी चट्टान हवा से स्थिर रहती है ,
उसी तरह प्रज्ञावान प्रशंसा या निंदा में स्थिर रहता है।
जब प्रयास करना चाहिए , तब प्रयास नही करता ,
जवान और पुष्ट होकर भी निष्क्रिय और बेकार रहता है,
जो विचारों और लक्ष्य से अस्पष्ट है , आलसी है,
उसे प्रज्ञा का मार्ग कभी नही मिल पाता।
जिसका मन अस्थिर है , जिसको भलाई की शिक्षा नही है ,
जिसका आत्म विश्वास डट कर नही रहता।
उसकी प्रज्ञा पूर्णता प्राप्त नही कर पाती।
वासना और मोह दुःख उत्पन्न करती है ,
जो मोह और वासना से मुक्त है वह दुःख से मुक्त है।
उसे किस प्रकार का भय होगा ?
मै उसके बारे मे नही सोचता जो हो चूका है ,
मै वह सोचता हु जो करना बाकी है।
हमारा जीवन मन से बना हुआ है , हम वही बनते है जो सोचते है ,
सुख शुद्ध विचारों का पिछा करता है , जिस तरह परछाईं साथ चलती है।
हमें कोई नही बचाता , या न बचा सकता है ,
हमें अपना मार्ग खुद ही चलना है।
हर एक जीव खतरे से डरता है , मृत्यु से हर कोई घबराता है।
जब इंसान यह समझ पाता है तब वह नही हत्या करता है ,
नही हत्या का कारण बनता है।
निस्वार्थता सबसे बड़ी उपलब्धि है।
सबसे बड़ा श्रेय खुद का स्वामित्व पाने मे है।
सबसे बड़ा गुण है दुसरो की मदद करना।
सब से बड़ा नियम हमेशा सतर्क रहना है।
सबसे बड़ी दवा सबकुछ मे शून्य अनुभव करना।
सबसे बड़ा कार्य दुनिया की नियमों से सहमत न रहना।
सबसे बड़ा जादू है जुनून को ख़त्म करना |
अनासक्तता सबसे बड़ी उदारता है।
शांत मन सबसे बड़ी अच्छाई है।
सबसे बड़ा धैर्य विनम्रता में है।
सबसे बड़ा प्रयास है नतीजों से चिंतित न होना।
सबसे बड़ी समाधि वह है जहा मन सब गुजरने दे।
सबसे बड़ी प्रज्ञा है , अनुभव से जानना।
क्रोध को प्रेम से जीतो ,
बुराई अच्छे से ,
लोभी को उदारता से जीतो ,
असत्य को सत्य से जीतो।
अकेले राह चलना श्रेयस्कर है ,
मुर्ख का साथ नही हो सकता ,
बिना कोई बुराई से शांति में अकेले चलो ,
जैसे एक विशाल हाथी वन में संचार करता है।
नही आकाश मे , नही समुद्र के मध्य मे ,
नहीं पर्वतो की गुफावो मे ,
ऐसी कोई जगह नही है,
जहा व्यक्ति अपने बुरे कर्म से भाग सके।
दुसरो की बुराई मत धुंडों ,
नहीं दुसरो की ग़लतियाँ निकालो ,
पर खुद की किये अन किये कर्मो को जानो।
गलत राह चलने वालो को संगती टालो ,
उनकी संगती न करो।
पर अच्छे , महान और प्रज्ञावान की संगत और मैत्री करो।
दुनिया में ऐसा कोई नहीं है ,
जिसकी पूरी तरह प्रशंसा हुई हो ,
या पूरी तरह निंदा।
वे पैरो तले खड़े होने पर निंदा करते है ,
और बैठ जाने पर भी निंदा करते है।
वे जो बोलता है उसकी निंदा करते है ,
और उसकी भी निंदा करते है जो मौन रखता है।
हज़ारों सालों तक जी कर भी जिसे सत्य ( नाश और पुन निर्माण / अनित्य ) का ज्ञान नहीं होता उससे ज्यादा वह प्रगति करता है जो एक ही दिन जिता है पर सत्य (अनित्य बोध) को जान जाता है |
नहीं बच्चो में शरण मिलती है , नहीं पिता या रिश्तेदारों में ,
जिसको अंत काल से प्रहार हुवा है उसको परिवार भी नही बचा पाता | जिसको परिणामों का पता होता है ,
वह प्रज्ञावान अपने गति की रक्षा करता है ,
अपने कर्मो की राह को जल्दी से सुधार कर निर्वाण की ओर बढ़ता है |