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धम्मपद १०२ , १०३ कुण्डलकेसीथेरी वठु

थेरी कुण्डलकेसी की कहानी | जब बुद्ध जेतवन मठ मे ठहरे हुवे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरी कुण्डलकेसी के संदर्भ मे कहा | कुण्डलकेसी राजगृह नगर के अमिर आदमी की बेटी थी | उसने जीवन समाज से अलग रहकर बिताया था | उन दिनों माता पिता बेटियों को बुरे संगती से बचने के लिए समाज से अलग रखते थे | वह उसका विवाह अच्छे और अमिर लडके से लगाना चाहते थे | लेकिन एक दिन , उसने देखा के एक चोर को नगर से ले जाया जा रहा था उसे मार देने के लिए और वह उसके प्रेम मे पड़ गयी | वह चोर से शादी करने के जिद पर तुली रही | माता पिता न चाहते हुवे भी राजी हो गए क्योंकि उनको अपने लड़की की जान की परवाह थी |  उसके माता पिता को उस चोर को छुड़ाने के लिए पैसे देने पड़े और उन्होंने उसकी शादी चोर से कर दी | हालाँकि उसने पति से जी जान से प्रेम किया , उसका पति चोर होने के कारण , केवल उसके संपत्ति और गहनों मे रूचि रखता था | एक दिन उसने सारे गहने उतारने को राजी कर लिया और उसे पर्वत पर ले गया यह कहकर के वह पर्वत के रक्षणकर्ता देवता का शुक्रिया करना है जिसने उसे मरने से बचाया था | कुण्डलकेसी उसके पति के साथ गयी , लेकिन जब वे लक्ष्य पे पह

धम्मपद ३१८ , ३१९ तिथियासवका वठु

गैर बौद्ध सन्यासियों के अनुयायियों की कहानी | जब बुद्ध निर्गोदरम मठ रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद तिथि के अनुयायियों के संदर्भ मे कहा | तिथि के अनुयायी नही चाहते थे के उनके बच्चे बुद्ध के अनुयायियों के बच्चों के साथ मिले | वह अक्सर अपने बच्चों से कहते , " जेतवन मठ मे न जावो , साक्य वंश के भिक्खुवों का आदर मत करो | " एक अवसर पर , तिथि के बच्चे बौद्ध बच्चे के साथ जेतवना मठ के दरवाज़े के बाहर खेल रहे थे , उनको बहुत प्यास लगी | जिस प्रकार तिथि के अनुयायियों ने अपने बच्चों से कहा था के जेतवन मठ मे प्रवेश नही करना है , तो उन्होंने बौद्ध बच्चों से अंदर जाकर पानी लाने को कहा | नन्हा बौद्ध बच्चा बुद्ध को आदर प्रकट करने गया जब उसने पानी पी लिया था , और उसने उसके मित्रों के बारे मे बताया जिनके माता पितावों ने मठ मे आने से मना किया था | बुद्ध ने तब बौध्द बच्चे से कहा के वह उन बच्चों को अंदर आकर पानी पिने के लिए कहे | जब वे बच्चे आये , बुद्ध ने उनको उनके मुताबिक उपदेश किया | इससे , उन बच्चों का तीन रत्नों ( बुद्ध , धम्म और संघ ) मे विश्वास हुवा | जब बच्चे घर गए , उन्होंने उनके जेतवन मठ

धम्मपद २३९ अन्नताराब्राह्मण वठु , धम्मपद २४२ , २४३ अन्नताराकुलपुत्त वठु

एक ब्राह्मण की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक ब्राह्मण के संदर्भ में कहा |  एक समय , ब्राह्मण ने भिक्खुवों के समूह को देखा जो अपने पोशाक को उलटफेर कर रहे थे जैसे ही वे नगर मे भिक्षा मांगने जाने वाले थे | उसने देखा के कुछ भिक्खुवों के पोशाक ज़मीन को लगे और घास के नमी से गिले हो गए | तो उसने उस जगह को साफ किया | अगले दिन उसने देखा के जैसे उन भिक्खुवों के पोशाक खाली ज़मीन को लगे वे मेले हो गए | इसलिये उसने उस जगह को रेत से ढक दिया | फिर उसने देखा के भिक्खु धुप से पसीने से गीले होते और बारिश आने पर भीग जाते | आखिरकार उसने भिक्खुवों के लिए विश्राम गृह बनाया जहा वे नगर मे भिक्षा मांगने के पहले जमते |  जब वास्तु तैयार हुवी , उसने भिक्खु और बुद्ध को खाना खाने बुलाया | ब्राह्मण ने बुद्ध को बताया के उसने किस प्रकार थोड़ा थोड़ा करके इस विश्राम गृह को बनाया | उसे बुद्ध ने कहा , " ओ ब्राह्मण ! , होशियार व्यक्ति पुण्य के काम थोड़ा थोड़ा करके पूरा करते है , और क्रम और नियमित रूप से वे अपने नैतिक मैल को निकाल देते है | " बुद्ध ने तब यह धम्मपद कहा |  &qu

धम्मपद १३१ , १३२ संबहुला कुमारका वठु , धम्मपद १६४ कालाथेरा वठु

अनेक युवाओं की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद अनेक युवाओं के संदर्भ मे कहा |  एक समय , बुद्ध भिक्षा के लिए सावत्थी नगर मे निकल पड़े थे तब वह उनको अनेक लड़के नजर आये जो साप को लकड़ी से पिट रहे थे | पूछने पर , लड़कों ने कहा वे साप को इसलिए मार रहे है ताकी उनको डर है के वह उनको काट लेगा | उनको बुद्ध ने कहा , " अगर तुम चाहते हो के खुद को हानि न हो , तुमने भी दूसरों को हानि नही पहुँचानी चाहिए , अगर तुम दूसरों को हानि पहुँचाते हो , तुम लोगों को अगले अस्तित्व मे सुख नही मिल सकेगा | " तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " जो खुद के ख़ुशी के लिए दूसरों को दबाता है , उसको जो खुद भी ख़ुशी की आकांशा रखता है , अगले अस्तित्व मे खुश नही रह सकेगा  | " धम्मपद १६४ कालाथेरा वठु  मुर्ख मनुष्य , जो उसके गलत दृषिकोण से , आदर करने योग्य कुलीन लोगों की जो धम्म के अनुसार जीते है उनकी घृणा करते है वे बाम्बू के तरह होते है जिसका फल खुद के विनाश का कारण बनता है |  थेरा काला की कहानी |  बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा काला के संदर्भ

धम्मपद २१२ अन्नताराकुटुम्बिका वठु , धम्मपद ९० जीवकपन्हा वठु

एक अमिर गृहस्थ की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक अमिर ग्रहस्थ के संधर्भ मे कहा जिसने पुत्र खोया था |  एक समय , एक गृहस्थ पुत्र के मृत्यु के कारन बहुत तनाव मे था | वह लगातार कब्रिस्थान जाकर बहुत रोया | एक बार बहुत सवेरे , बुद्ध ने एक अमिर आदमी को अंतदृष्टि से देखा | इसिलिये भिक्खु को साथ लेकर वे उस आदमी के घर जा पहुँचे | वहा भगवान बुद्ध ने उससे पूछा के वह इतना दुःखी क्यों है | तब आदमी ने बुद्ध को उसके पुत्र के बारे मे बताया जो मर गया था और उससे हो रहे दुःख और कष्ट के बारे मे बताया | उससे बुद्ध ने कहा , " मेरे अनुयायी , मृत्यु केवल एक जगह पर नही होती | सभी सजीव जो जन्मे है उनको एक वक्त मरना ही है | वास्तव मे जीवन मृत्यु से समाप्त होता  है | तुमने हमेशा स्मरण रखना चाहिए के जीवन मृत्यु से ख़तम हो जाता है | केवल यह कल्पना न करो के सिर्फ तुम्हारा प्रिय पुत्र मृत्यु के अधीन है | इतने तणावग्रस्थ मत हो , न ही हिलो | दुःख और भय स्नेह से उत्पन्न होते है |  तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " स्नेह खिन्नता उत्पन्न करता है  , स्नेह भय उत्पन्न करता है  |

धम्मपद ८३ पंचसतभिक्खु वठु , धम्मपद २३१ , २३२ , २३३ , २३४ छब्बाग्गीय वठु

पाँच सो भिक्खुवों की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पाँच सो भिक्खुवों के संदर्भ मे कहा |  वेरंज गाव के ब्राह्मण के विनंती करने पर बुद्ध और उनके पाँच सो भिक्खु वेरंज गाव मे आये थे | जब वे वेरंज आये थे ब्राह्मण उनकी देख भाल करना भूल गया | वेरंज के लोग उस समय सूखे का सामना कर रहे थे , इसलिये वे भिक्खुवों को बहुत कम खाना दे पा रहे थे जब भी वे भिक्षा मांगने जाते | इन सब मुसीबतों के बावजूद उन्होंने अपना दिल छोटा नही किया , वे उन बासी चनों से संतुष्ट थे जो घोड़े के व्यापारी उनको भिक्षा मे दे रहा था | वसा के समाप्ति पर , वेरंजा के ब्राह्मण को बता के , बुद्ध अपने पाँच सो शिष्यों के साथ जेतवन मठ वापस चले गए | सावत्थी के लोगों ने उनका फिरसे स्वागत किया और हर प्रकार के भोजन खाने के लिए परोसा |  कुछ लोगो का समूह जो भिक्खुवों के साथ रह रहे थे , भिक्खुवों के खाने के बाद जो बचता वह खाते थे | और लालच से भुक्कड़ की तरह खाते और सो जाते | जब वे जागते तो शोर मचाते , गाते और नाचते , ऐसे खुद को बहुत चिढ़ उत्पन्न करते | जब भिक्खु शाम मे भिक्खुवों के समूह के यहा आये , उन्होंने

धम्मपद १९ , २० द्वेसहायकभिक्खु वठु , धम्मपद ३९६ एक ब्राह्मण वठु

दो मित्रो की कहानी |    जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद दो भिक्खुवों के बारे मे कहा जो मित्र थे |  एक समय सावत्थी नगर मे दो मित्र जो भिक्खु थे वे कुलीन घर से आये थे | उनमे से एक ने त्रिपिटिका पढ़ी , वह पवित्र शाश्त्र का पाठ और प्रवचन करने मे बहुत माहिर था | उसने पाँच सो भिक्खुवों को पढ़ाया और अठारा भिक्खुवों के समुह का निर्देशक बना | दूसरा भिक्खु कड़ी लगन और मेहनत से अंतदृष्टि विप्पसना ध्यान धारना करते करते अरहंत बना और अंतदृष्टि अवलोकन भी हासिल की |  एक बार जब वे दो भिक्खु बुद्ध को आदर प्रकट करने आये , जेतवना मठ मे , वे दोनो मिले | त्रिपिटक ग्रंथ का विद्वान नही जानता था के दूसरा पहले ही अरहंत बन चुका है | उसने उसे कम आका , यह सोचकर के यह बुढा भिक्खु पवित्र ग्रंथ के बारे मे बहुत कम जानता है , पांच निकय से एक भी नही या तीन पिटिका मे से एक | तब उसने दूसरे से प्रश्न पूछने की सोचकर उसे शर्मिंदा करना चाहा | बुध्द को उसके गलत इरादों के बारे मे पता था और यह भी के उसके अच्छे अनुयायी के साथ बुरा व्यवहार करके वह निम्न जगत मे जन्म लेगा | इसलिए , दया भावना से

धम्मपद ३५६ , ३५७ , ३५८ , ३५९ अंकुर वठु

देव अंकुर की कहानी |  जब बुद्ध तवतीम्स जगत को भेट दे रहे थे तब बुद्ध ने यह धम्मपद देव अंकुर के संदर्भ मे कहा |  बुद्ध ने तवतीम्स जगत को भेट दी ताकी वे देव संतुसित के लिए अभिधम्म की व्याख्या कर सके , जो उनकी माँ हुवा करती थी | उस समय मे तवतीम्स जगत मे इंदक नाम का एक देव था | इंदक जब पिछले जन्म मे आदमी था उसने थेरा अनुरुद्ध को भिक्षा मे खाना दिया था | बुद्ध के समय मे उसने यह अच्छा काम किया इसलिये उसका जन्म तवतीम्स जगत मे हुवा और उस जगत के सारे ऐश्वर्य का उपभोग करने को उसको मिल रहा था | उसी समय वहा अंकुर नाम का एक देव भी रहा करता था जिसने दान धर्म मे बहुत अर्पण किया था , असल मे देव इंदक से कही जादा | लेकिन उसने जो दान धर्म किया था वह किसी भी बुद्ध के शिक्षा के न रहते किया था | इसलिये उसके बहुत अधिक मात्रा मे दान करने से भी वह इंदक से कम मात्रा मे सुख और ऐशर्य भोग रहा था | तब बुद्ध को अंकुर ने इसका कारण पूछा | उसको बुद्ध ने जवाब दिया , " ओ देव ! जब भी दान धर्म करना हो तब तुमने देखना चाहिए की तुम किसे दान दे रहे हो | दान पुण्य करना बीज की तरह काम करता है | जो बीज उपजावु जमीन मे डाले है

धम्मपद ३८८ अन्नताराब्राह्मण पब्बजित वठु , धम्मपद २८२ पोथिलाथेरा वठु

एक वैरागी ब्राह्मण की कहानी |  जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने एक ब्राह्मण अनुयायी के संदर्भ के कहा |  एक समय सावत्थी नगर मे एक ब्राह्मण था | एक दिन ऐसा हुवा के बुद्ध ने कुछ भिक्खुवों को पब्बजित कहा तब ब्राह्मण ने कहा के उसे भी पब्बजित कहना चाहिए क्योंकि वह भी बुद्ध का अनुयायी है | तब वह बुद्ध के पास गया और पूछा के उसे पब्बजित क्यों नही कहा जाता | बुद्ध ने उसे इस प्रकार से जवाब दिया , " केवल अनुयायी होने से कोई पब्बजित नही हो जाता , पब्बजित मे और भी गुण होने आवश्यक है | " तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " उसने बुराई को त्याग दिया है इसलिए उसे ब्राह्मण कहते है , वह शांति से रहता है इसलिए उसे समन कहते है , और उसने अपने अशुद्धियों को निकाल दिया है इसलिए उसको पब्बजिता कहते है  | " उपदेश के अंत मे ब्राह्मण सोतपन्न बना |  धम्मपद २८२ पोथिलाथेरा वठु  वास्तव में , बुद्धिमता ध्यान करने से विकसित होती है , ध्यान न करने से बुद्धिमत्ता समाप्त होती है | इस बुद्धिमत्ता पाने और खोने के दो नियमों को जानकर , खुद ने प्रयास करना चाहिए ताकी बुद्धिमत्ता बढ़ सक

धम्मपद १६६ अत्तदठथेरा वठु

अत्तदठ थेरा की कहानी | जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा अत्तदठ के संदर्भ मे कहा | जब बुद्ध ने घोषणा की उनका चार महीने मे परिनिब्बान होगा , बहुत सारे पृथुजना भिक्खु भयभीत हो गए और उनको समझ नही आ रहा था के क्या करे इसलिये वे बुद्ध के पास ही रहते | लेकिन अत्तदठ बुद्ध के पास नही जाता , संकल्प किये हुवे के बुद्ध के रहते ही अरहंत बनना है , वह बहुत परिश्रम से ध्यान करता रहा | दूसरे भिक्खु उसे समझ नही सके , उसे बुद्ध के पास लेकर गए और कहा , " भंते , यह भिक्खु शायद आपको प्रेम और सम्मान नही करता जैसे हम करते है , वह  केवल खुद मे ही रममान है | " तब थेरा ने उनसे कहा के वह अरहंत बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है इसलिये वह बुद्ध के पास नही आ सका , वह बुद्ध के परिनिर्वाण के पूर्व ही अरहंत बनना चाहता है |  बुद्ध ने तब भिक्खुवों से कहा , " भिक्खुवों , जो मुझसे प्रेम और सम्मान करते है उन्होंने अत्तदठ के समान काम करना चाहिए | आप मुझे केवल फूल , अत्तर , धुप और मुझसे मिलने आके श्रद्धा नही जता रहे | आप मुझे केवल मैने सिखाये हुवे धम्म जो के लोकुत्तर धम्म है उसका आचरण करक

धम्मपद ९७ सारिपुत्तथेरा वठु , धम्मपद १४५ सुखसामणेर वठु

थेरा सारिपुत्त की कहानी |  जब बुद्ध भगवान जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा सारिपुत्त के संदर्भ मे कहा |  तिस भिक्खु गाव से भगवान बुद्ध को आदर व्यक्त करने जेतवन मठ आये थे | बुद्ध को पता था के उन भिक्खुवों का अरहंत बनने का समय आ गया है | तब उन्होंने ने सारिपुत्त को बुलाया , और उन भिक्खुवों के सामने उन्होंने पूछा , " मेरा पुत्र सारिपुत्त , क्या तुम स्वीकार करते हो के कोई चेतनावों पर ध्यान लगाने से कोई निब्बान / निर्वाण अनुभव कर सकता है ? " सारिपुत्त ने जवाब दिया , " भंते , निब्बान का अनुभव चेतनावों के ऊपर ध्यान करने के बारे , मैं इसलिए स्वीकार नही करता क्योंकि मेरी आप पर श्रद्धा है , जिन व्यक्तिओं ने निजी तोर पर अनुभव नही किया है , वे ही दूसरों के कहने पर विश्वास कर लेते है | " सारिपुत्त का उत्तर भिक्खुवों को ठीक से समझ नही आया | उन्होंने ने सोचा के सारिपुत्त ने अभी तक गलत धारणायें नही त्याग दी है , अभी तक उसकी बुद्ध पर श्रद्धा नही है |  तब बुद्ध ने उनको सारिपुत्त के कहने का मतलब समझाने का प्रयास किया | " भिक्खुवों , सारिपुत्त का कहने का  मतलब क

धम्मपद २०१ कोसलरन्नो पराजय वठु , धम्मपद ८४ धम्मिकथेरा वठु

कोसल के राजा के पराजय की कहानी |  जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धमपद उन्होंने अजातसत्तु से पराजित हुवे कोसल के राजा के संदर्भ मे कहा , अजातसत्तु उसका भतीजा था |  अजातसत्तु के खिलाफ लढते लढते कोसल के राजा की तीन बार हार हुवी | अजातसत्तु राजा बिम्बिसार और रानी वहेदी जो कोसल के राजा की बहन थी उनका का बेटा था | कोसल का राजा बहुत शर्म महसूस कर रहा था और हार से बहुत उदास था | तब उसने विलाप मे कहा , " क्या कलंक है ! मैं इस लड़के को हरा नही सकता जिसकी अभी भी माँ के दूध की गंध आती है | यही अच्छा रहेगा के मैं मर जावु | उदास और शर्मिंदगी के कारण उसने खाना खाना बंद किया , और अपने पलंग पर ही रहा | राजा के तनाव की खबर जंगल मे आग फैलती है उस तरह फैली और जब बुद्ध को इस के बारे मे पता चला , उन्होंने कहा , " भिक्खुवों ! जब जित होती है , शत्रुता और घृणा बढ़ती है , जिसकी पराजय होती है वह क्लेश और पीड़ा सहता है | " तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " विजय पाना शत्रुता निर्माण करता है , पराजित कष्ट मे जीता है , शांती से रहने वाला सुख से जीता है  , हार और पराजय त्याग कर  |

धम्मपद २७३ , २७४ , २७५ , २७६ पंचसताभिक्खु वठु

पाँच सो भिक्खुवों की कहानी | जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पाँच सो भिक्खुवों के संदर्भ मे कहा | पाँच सो भिक्खु , बुद्ध के साथ गाव तक पहुँचने के बाद , जेतवन मठ मे लौट गये | शाम को वे यात्रा के बारे मे बात करने लगे , खासकर ज़मीन के बनावट के बारे में , वह समतल थी या पहाड़ी , मट्टीमय थी या पत्थरी इत्यादि | बुध्द उनके बातचीत के दौरान आये और उनको बताया , " भिक्खुवों , जिस मार्ग की तुम बात कर रहे हो वह बाहरी है , भिक्खुवों ने केवल कुलीन लोगों के आर्य मार्ग के बारे चिंतन करना चाहिए और जो आर्य मग्गा का मार्ग है उसे पाने के लिए हर उचित संभव प्रयास करना चाहिए , वह उत्तम शांति ( निब्बान )अनुभव करने की तरफ जाता है |  तब बुद्ध ने यह धम्मपद कही |  " अनेक पथों में , अष्टांग मार्ग सबसे कुलीन है , सत्यों में , चार आर्य सत्य सबसे कुलीन है , सर्व धर्मो में , आसक्ति विरहित होना ( निर्वाण ) सबसे श्रेयस्कर है , दो पैरो के सजीवों में , सारे देखे गए बुद्ध सबसे कुलीन है  | " " ये केवल एक मार्ग है , और दूसरा कोई मार्ग नहीं है शुद्ध दृष्टि पाने के लिए , इस मार्ग क

धम्मपद १७१ अभयराजकुमार वठु , धम्मपद ८१ लकुण्डकभद्दीयथेरा वठु

राजकुमार अभय की कहानी | वेळुवन मठ मे जब भगवान बुद्ध रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद राजकुमार अभय के संदर्भ मे कहा | एक समय , राजकुमार अभय राज्य के सीमावर्ती भाग से राजद्रोहीयों को दडप कर विजयी होकर लौटा | राजा बिम्बिसार उसके बहुत प्रभावित था इसलिए उसने सात दिन तक , राजकुमार अभय को राज्यकर्ता को मिलने वाला सम्मान और महिमा दियी , इसके साथ नृत्य करने वाली लड़की मन बहलाने के लिए | सातवें दिन जब नाचने वाली लड़की बगीचे मे उसे और उसके साथियों का मनोरंजन कर रही थी , उसे बड़ा दिल का दौरा पड़ा , वह गिरकर उसी स्थान पर गिर गयी | राजकुमार अचंभित हुवा और बहुत तनाव मे था | दुखी होकर वह बुद्ध के पास गया हौसला पाने केलिए | उसे बुद्ध ने कहा , " ओ राजकुमार , तुमने जितने आसु पुनर्जन्मों तक बहाये है उसे माप नही सकते | इस तत्वों ( स्कंद ) के दुनिया की यह जगह है जहा मुर्ख तड़पते है | " तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " आवो , इस दुनिया को देखो ( पांच स्कंद ) , जो एक सजे हुवे राजसी वाहन की तरह है  | मुर्ख इस स्कंद रूपी कीचड़ मे तड़पते है , लेकिन बुद्धिमान इसमे आसक्ति नही रखता  | " धम्मप

धम्मपद २१६ अन्नताराब्राह्मण वठु , धम्मपद ७१ अहिपेटा वठु

एक ब्राह्मण की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद उस ब्राह्मण के बारे मे कहा जो खेती करता था |  एक ब्राह्मण सावत्थी नगर मे रहता था जो बौद्ध नही था | लेकिन बुद्ध को पता था के वह ब्राह्मण कुछ समय मे सोतापन्न बन सकेगा | तो बुद्ध उसके यहाँ गये जहा वह खेत की जताई कर रहा था और उससे बात की | ब्राह्मण ने मिलनसार होकर बात की और बुद्ध को शुक्रिया अदा किया क्योंकि बुद्ध ने उसमे और उसके काम मे रूचि ली | एक दिन उसने बुद्ध से कहा , " समन गौतम , जब मै खेत से चावल जमा करूँगा तब कुछ चावल मै तुम्हें उपहार में दुंगा फिर ही मै उसे उपयोग करूँगा | मै चावल नही खावुंगा जब तक के मै कुछ चावल उन्हें तुमको उपहार में न दे सकु | " लेकिन बुद्ध को पहले से ही पता था के वह ब्राह्मण खेत से चावल नही पा सकेगा उस साल , पर बुद्ध चुप रहे |  तब , रात में ब्राह्मण के फसल निकालने से पहले , बारिश का बहुत पानी का बाढ़ आया जिससे सारी फसल बह गयी | ब्राह्मण बहुत तनाव में था , क्योंकि वह उसके मित्र समन गौतम को कोई चावल उपहार मे नही दे सकता था |  बुद्ध उस ब्राह्मण के घर गये और ब्राह्मण ने बु

धम्मपद २६० , २६१ लकुण्डकभड़ीया थेरा वठु

थेरा भद्दिय की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा भद्दिय के संदर्भ मे कहा | उसे लकुण्डका भद्दिय भी कहा जाता था क्योंकि वह कद से छोटा था |  एक दिन , तिस भिक्खु बुद्ध को आदर व्यक्त करने आये | बुद्ध को पता था के उन भिक्खुवों का अरहंत बनने का समय पक चुका है | तब बुद्ध ने उनसे पूछा के उन्होंने कक्ष मे आने से पहले थेरा को देखा था ! तब उन्होंने जवाब दिया के उन्होंने किसी थेरा को नहीं देखा आते समय पर केवल एक युवा श्रामणेर को देखा जब वे अंदर आ रहे थे | उनके कहने के बाद बुध्द ने उनसे कहा , " भिक्खुवों ! , वह व्यक्ति श्रामणेर नही है , वह जेष्ठ भिक्खु है पर वह शरीर से छोटा और बहुत नम्र है | मै कहता हु कोई सिर्फ इसलिए थेरा नही है के वह उम्र से बड़ा और वैसा दिखता है , केवल जो चार आर्य सत्यों को अच्छे से समझता है और दूसरों को क्षति नही पहुँचता उसे थेरा कहते है | "  वह थेरा केवल इसलिये नही है क्योंकि उसका सर सफ़ेद है , जो केवल आयु से बड़ा हुवा है उसे कहते है " व्यर्थ मे बुढ़ा होना " |  सिर्फ वह बुद्धिमान इंसान जो चार आर्य सत्य और धम्म समझता हो , जो अहिसं

धम्मपद २४६ , २४७ , २४८ पंच उपासक वठु , धम्मपद २१४ लिच्चवि वठु

पाँच गृहस्थ अनुयायियों की कहानी |   जेतवन मठ मे बुद्ध रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पांच गृहस्थ अनुयायियों के संदर्भ मे कही |  एक समय पांच गृहस्थ जेतवन मठ मे विश्राम कर रहे थे | उनमे से ज़्यादातर पंचशीलों मे से एक या दो का ही पालन कर रहे थे | उनमे से हर कोई बता रहा था शील जो वे पालन कर रहे थे वह दूसरों के मुकाबले जादा कठिन है और इसपर झगड़ पड़ते थे | आखिरकार इस मसले को लेकर वे बुद्ध के यहा आये | उनको बुद्ध ने कहा , " तुम सबने कोई एक शील को आसान और महत्त्वहीन समझने की गलती नही करनी चाहिए | इनमें से हर शील का पालन करना जरुरी है | किसी भी शील के पालन मे सहजता से न सोचों | उनमें से किसी का भी पालन करना आसान काम नही है | "  तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " जो जीवन को बर्बाद करता है , झूठ बोलता है , जो नही दिया होता वह लेता है , व्यभिचार करता है और नशीली पदार्थों का सेवन करता है , इसी जीवन मे खुद की जड़ों को खोदता है  | " " जान लो , ये इंसान ! खुद पे काबू न होना बुराई है ; लालच और बुरी भावना को अपनी लंबी दुर्गती बनने न दो  | " उपदेश के अंत में उन पांच गृहस

धम्मपद १८८ , १८९ , १९० , १९१ , १९२ अग्गिदत्तब्राह्मण वठु

अग्गिदत्त की कहानी |  जेतवन मठ मे जब बुद्ध रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद अग्गिदत्त ब्राह्मण के संदर्भ मे कहा | राजा पसेनदी के पिता राजा महाकोसल के समय मे अग्गिदत्त प्रमुख पुरोहित था | राजा महाकोसल के मृत्यु के बाद अग्गिदत्त ने अपनी सारी संपत्ति दान धर्म मे दे दी , और बाद मे गृह त्याग कर तपस्वी बन गया | वह उसके दस हज़ार अनुयायियों के साथ अंग , मगध और कुरु इन तीन राज्यों के सिमावों के नजदिग रहा , वहा से पास मे रेत का पहाड़ था जहा शक्तिशाली नाग रहता था | वह उसके अनुयायी और इन तीन राज्यों को उपदेश देता " जंगलों , बगीचों , उद्यान , पर्वत और पेड़ों को श्रद्धांजली दो , ऐसा करने से तुम जीवन के बुराइयों से मुक्त हो सकोगे | " एक दिन , बुद्ध ने अग्गिदत्त और उसके शिष्यों को अपने दृष्टि से देखा और अहसास हुवा के उन सबका अरहंत बनने का समय आ गया है | तब बुद्ध ने थेरा महा मोग्गल्लाना को अग्गिदत्त और उसके शिष्यों के यहाँ जाकर बताने को कहा के बुद्ध उनके यहाँ आयेंगे | थेरा महा मोग्गल्लाना उनके यहा गया और एक रात्रि के लिए निवास के लिए जगह मांगी | उन्होंने पहले इनकार किया , लेकिन आखिरकार वे

धम्मपद १५९ पधनिकातिस्साथेरा वठु

थेरा पधनिकातिस्सा की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा पधनिकातिस्सा के संदर्भ मे कहा |  बुद्ध से विपस्सना ध्यान की शिक्षा सिखाने के बाद थेरा पधनिकातिस्सा वन में पाँचसो भिक्खुवों के साथ चला गया | उसने भिक्खुवों से कहा के उन सबने अपने विप्पसना ध्यान साधना मे परिश्रमी और सचेत रहना चाहिए | सबको प्रोत्साहित करने के बाद वह बाद मे लेटा रहता और सो जाता | जवान भिक्खुवों ने वैसा ही किया जैसा बताया गया | उन्होंने विप्पसना साधना रात के पहले प्रहर और सोने से पहले की , पधनिकातिस्सा तभी उठता और उन सबको जगाकर ध्यान करने के लिए जगाता | जब वे सारे भिक्खु दूसरे और तीसरे प्रहर विप्पसना ध्यान करके वापस आते तब भी वह वैसा की करता और वापस भेजता |  इस तरह वह हमेशा ऐसा ही व्यवहार करता , जवान भिक्खुवों को कभी मन मे शांति नही रही , इसलिये वे अपने विप्पसना साधना पर या धम्म पाठ पढ़ने मे ध्यान केंद्रित नही कर सके | एक दिन सब भिक्खुवों ने पता लगाने की ठानी के उनको पढ़ाने वाला भिक्खु क्या सहिमे इतना उत्साही और सतर्क है या नही जिस तरह वह व्यवहार करता है | जब उनको पता चला के उनका शिक

धम्मपद ११४ किसागौतमी वठु

थेरी किसागौतमी की कहानी |  जेतवन मठ मे बुद्ध जब रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने किसागौतमी के संदर्भ मे कहा |  किसागौतमी सावत्थी नगर के एक अमिर आदमी की बेटी थी | वह किसागौतमी नाम से जानी जाती थी क्योंकि वह पतली थी | किसागौतमी का विवाह एक अमिर व्यक्ति से हुवा और एक लड़का हुवा | बच्चा जब बहुत काम उम्र का था तभी वह मर गया , इससे वह बहुत शोक से सहम गयी , वह एक व्यक्ति के पास गयी जिसे वह जानती थी ताकि वह कोई दवा हासिल कर सके जिससे उसका बच्चा जीवित हो सके | लोगों को लगने लगा था के वह पागल हो गयी है | एक होशियार आदमी को उसकी तकलीफ समझ आयी तब उसने उसको मदत करने की सोची | तो उसने उससे कहा , " बुद्ध ऐसे व्यक्ति है जिससे आप मदत मांग सकती है , उनके पास कोई दवा होगी जो काम करेगी , उनके पास जाओ " | वह बुद्ध के पास गयी और कोई दवा मांगी जो उसके मरे हुवे लड़के को जिंदा कर सके |  बुद्ध से बहुत याचना करने पर आखिरकार बुद्ध ने उसको सरसों के बीज लाने को कहा उस घर से जहा कोई कभी मरा न हो | किसागौतमी अपने बच्चे को छाती से लगाकर हर घर गयी और सरसों के बीज मांगे | हर कोई मदत करना चाहता था पर ऐसा को

धम्मपद २६६ , २६७ अन्नाताराब्राह्मण वठु

एक ब्राह्मण की कहानी |  बुद्ध जब जेतवन मठ में रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने एक ब्राह्मण के संदर्भ मे कहा |  एक समय , एक ब्राह्मण था जिसे भिक्षा के लिए जाने की आदत थी | एक दिन , उसने सोचा , " समन गौतम ने यह घोषित किया है के जो भिक्षा माँगकर जीवन व्यतीत करता है वह भिक्खु है | अगर ऐसा है , तो मुझे भी भिक्खु कहना चाहिए | " ऐसा सोचकर वह बुद्ध के पास जाकर कहा के उसे / ब्राह्मण को भी भिक्खु कहना चाहिए | क्योंकि वह भी भिक्षा मांगने जाता है | उसे बुद्ध ने जवाब दिया , " ब्राह्मण , मैने ऐसा नही कहा के तुम ब्राह्मण हो सिर्फ इसलिये के तुम भिक्षा मांगने जाते हो | जो झुठे श्रद्धा की डिंग हाकता है और वैसा ही आचरण करता है उसे भिक्खु नही कहा जा सकता | सिर्फ वह जो अनित्य , असंतुष्टता और मुलतत्वों की अस्थिरता पर ध्यान करता है उसे भिक्खु कहते है | "  तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " सिर्फ दरवाज़े पर भिक्षा के लिए ठहरने से कोई भिक्खु नही बनता , वह इसलिये भिक्खु नही बन सकता क्योंकि वह उसका पालन करता है जो धम्म के अनुसरण नही है  | " इस जगत में , जो अच्छे या बुरे को बाज़ू रखता है

धम्मपद २०३ एक उपासक वठु , धम्मपद ३४५ , ३४६ बंधनगरा वठु

एक ग्रहस्त शिष्य की कहानी | अलवी गाव मे बुद्ध ने यह धम्मपद एक गृहस्थ शिष्य के बारे मे कहा | एक दिन , बुद्ध ने देखा के अलवी गाव का एक गरीब आदमी सोतापन्न बन पायेगा | इसलिए बुद्ध उस गाव गये , जो सावत्थी नगर से ३० योजना दूर था | उस दिन उस गरीब का एक बैल खो गया | उसे बैल को खोजते रहना पड़ा | उसी समय बुद्ध और उनके शिष्यों को भोजन उस गांव के एक घर मे दिया जा रहा था | खाना खाने के बाद उस गाव के लोग बुद्ध का प्रवचन सुनने के लिए तैयार बैठे थे , लेकिन बुद्ध उस जवान आदमी की राह देखी | आखिरकार उस आदमी को उसका बैल मिल गया , वह आदमी भागते हुवे उस घर आया जहा बुद्ध रुके थे | वह थका और बहुत भुखा था , तब बुद्ध ने दानकर्तावों को निर्देश दिया के उसे खाना परोसा जाना चाहिए | जब उस आदमी का खाना पूरा हुवा तभी बुद्ध ने प्रवचन शुरू किया , धम्म को क्रम क्रम से समझाते हुवे चार आर्य सत्य को बताया |  गृहस्थ शिष्य इससे प्रवचन के आखिर में सोतापन्न हुवे |  उसके बाद बुद्ध और इनके शिष्य जेतवन मठ लौट गए | राह से गुजरते हुवे भिक्खु चर्चा कर रहे थे के भगवान बुद्ध ने प्रवचन शुरू नही किया जब तक के उस गरीब आदमी ने खाना नह

धम्मपद ३२७ पवेय्यकहठी वठु , धम्मपद ३७८ संतकाया थेरा वठु

पवेय्यक हाथी की कहानी |  बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद हाथी के संदर्भ कहा जिसका नाम पवेय्यका था |  पवेय्यक जब जवान था तब बहुत शक्तिशाली था , समय बितने के बाद , वह बुढ़ा और निर्बल हुवा | एक दिन जब बुढ़ा पवेय्यक तालाब मे उतरा तो वह दलदल मे फस गया और किनारे तक नही आ पा रहा था | जब राजा पसेनदी को इसके बारे में बताया गया , उसने एक महावत को वहा भेजा उस हाथी को दलदल से बाहर निकालने | महावत वहा चला गया जहा हाथी फसा हुवा था | वहा उसने संगीतकारों से युद्ध की धुन बजवाई | युद्ध के वक्त बजने वाला संगीत सुनकर हाथी को लगा के युद्ध भूमि मे है | उसका उत्साह जगा , उसने पूरी शक्ति से खुद को बाहर निकाला , और जल्दी से बाहर आ चुका था |  जब भिक्खुवों ने यह बुद्ध को बताया , तब बुद्ध ने कहा "  भिक्खुवों  ! जैसे उस हाथी ने खुद को दलदल से बाहर निकाला , वैसे ही तुम सबने खुद को नैतिक मलिनता के दलदल से खुद को बाहर निकालना चाहिए | " तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " सचेत रहने मे ख़ुशी मानो , अपने मन की ठीक से रक्षा करो  | जैसे दलदल में फसा हुवा हाथी खुदको बाहर निकालता है , वै

धम्मपद ३६३ कोकलिक वठु , धम्मपद ३०२ वज्जिपुत्तकाभिक्खु वठु

कोकलिक भिक्खु की कहानी |  बुद्ध जब कोकलिक मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद कोकलिक भिक्खु के संदर्भ मे कहा |  भिक्खु कोकलिक ने दो प्रमुख शिष्य भंते सारिपुत्त और भंते मोग्गल्लाना को गाली गलोच की थी | इस बुरे बर्ताव के कारण कोकलिक को ज़मीन ने निगल लिया था और पदुमा निरय मे जाना पड़ा था |  उसके भाग्य के बारे मे पता चलने पर , भिक्खुवों ने आपस मे कहा के कोकलिक को सजा भुगतनी पड़ी क्योंकि उसने खुदके जबान पर काबू नही रखा | उन भिक्खुवों से भगवान बुद्ध ने कहा , " भिक्खुवों , भिक्खु ने अपने जबान पर काबू रखना चाहिए , उसका आचरण अच्छा होना चाहिए , उसका मन शांत होना चाहिए , नियंत्रित और जैसे लगे वैसे नही होना चाहिए | "  तब बुद्ध ने कहा |   " वह भिक्खु जो अपना मुँह / वचन काबु मे रखता है , जो मन को संयमित रखके बुद्धिमानी से बोलता है , जो धम्म का अर्थ और पाठ समझाता है , उस भिक्खु के शब्द मधुर होते है  | " धम्मपद ३०२ वज्जिपुत्तकाभिक्खु वठु  वज्जिस राज्य के भिक्खु की कहानी |  जब बुद्ध वेलुवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद वैशाली नगर जो की वज्जिस राज्य का हिस्सा था

धम्मपद ३२० , ३२१ , ३२२ अत्तदन्ता वठु

स्वयं को वश में करने के बारे में |  जब बुद्ध घोसितरम मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद खुद ने दिखाए धैर्य और सहन शक्ति के संधर्भ मे कहा जब उनको भाड़े के सिफायियों और लोगों से गाली गलोच हुवी थी , जो राजा उदेणा की तीन रानियों मे से एक ने भेजे थे |  एक समय , मंगदिया के पिता , बुद्ध के व्यक्तित्व और रूप से बहुत प्रभावित होकर , उसकी सुंदर बेटी के रिश्ते का प्रस्ताव सामने रखा |  वह भागते हुवे अपने निवास स्थान गया और अपने बीवी से कहा के पुत्री को अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनाये ताकि वे उस व्यक्ति से मिल सक |  जब वह उस स्थान पहुँचे तो बुद्ध वहा से चले गए थे | वहा सिर्फ बुध्द के पैरो के निशान थे | उसे देखकर उसकी बीवी ने कहा पैरो के निशान है जिसपे चक्र भी है | यह असामान्य व्यक्ति अपनी काम वासनावों पर विजय पा चुका होगा तो शादी नही कर सकता |  दरअसल वे इन चीजों को जानते थे क्योंकि वे ब्राह्मण जाति के थे | लेकिन फिर भी वे सारे पैरों के निशान देखते हुवे बुद्ध से मिले |  लेकिन बुद्ध ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा के वह ऐसी चीज को पैर से भी स्पर्श नही करना चाहते जो मल मूत्र से भरी हो | बुद्

धम्मपद ४८ पतिपूजिका कुमारी वठु

पतिपूजिका कुमारी की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ में ठहरे हुवे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पतिपूजिका कुमारी के संदर्भ मे कहा |  पतिपूजिका कुमारी सावत्थी मे रहने वाली महिला थी | वह सोलह साल के उम्र मे ब्याही थी और उसके चार बेटे थे | वह धार्मिक और उदार महिला थी , जिसे भिक्खुवों के लिए खाना और ज़रुरी सामान दान करना पसंद था | वह अक्सर मठ जाती और परिसर साफ करती , बर्तन और मट्टी के घड़े पानी से भरती और दूसरे काम भी करती |  पतिपूजिका को जातिसार ज्ञान अवगत था जिससे उसको उसके एक पिछले जन्म का अस्तित्व याद आया जब वह मालभारी की कही पत्नियों में से एक थी , देव लोक के तवतीम्स जगत में | उसको यह भी याद आया के वह वहा मर गयी थी जब वे सारे बगीचे मे मजे कर रहे थे , फुल चुनते और तोड़ते समय | तब वह जब भी भिक्खुवों को भिक्षा देती या कोई भी अच्छा काम करती , वह प्रार्थना करती के वह फिर से तवतीम्स जगत मे पैदा होकर मालभारी की पत्नी बने , जो उसका पिछला पति था |  एक दिन , पतिपूजिका बीमार पड़ी और उसी शाम मर गयी | जिस तरह उसने उत्साह से मनोकामना की थी , वह तवतीम्स जगत मे पैदा हुवी और मालभारी की पत्नी बनी | पृथ्वी के

धम्मपद ६३ गन्थिभेदकाकरा वठु , धम्मपद ५० पवेय्य आजीवका वठु

दो चोरों की कहानी | जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने दो चोरों के संदर्भ मे कहा | एक समय , दो चोर उच्चक्के गृहस्थ अनुयायी के समूह मे घुस गए जब वह जेतवन मठ जा रहे थे , जहा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे | उनमे से एक चोर ने प्रवचन लक्षपूर्वक सुना और वह सोतापन्न हो गया , हलाकि दूसरा चोर कोई प्रवचन सुन नही पाया क्योंकि उसका सारा लक्ष लोगों की चीजें चुराने पे लगा था और वह कुछ अनुयायियों से कुछ पैसे छीन ने मे भी सफल हुवा था | प्रवचन ख़तम होने के बाद वे दोने चोर वापस चले गए और दूसरा चोर जो चोरी करने में सफल रहा था उसके घर खाना बनाया | उसके बीवी ने पहले चोर को ताना कसा , " तुम बहुत बुद्धिमान हो , तुम्हारे पास कुछ भी नही है जिससे अपने घर कुछ पका सको " | यह कटाक्ष सुनकर , पहले चोर ने खुद से विचार मे कहा , " यह औरत बहुत मुर्ख है जो खुद को बहुत होशियार समझती है | " बाद में कुछ रिश्तेदारों के साथ वह सुधारा हुवा चोर बुद्ध के पास गया और सारी बात बताई |  उस आदमी से बुद्ध ने कहा |  " मुर्ख जिसे पता है के वह मुर्ख है , उसे इस लिए बुद्धिमान कहा जा सकता है , पर मु

धम्मपद ४४ , ४५ पञ्चसता भिक्खु वठु

पाँच सो भिक्खुवों की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे , बुद्ध ने यह धम्मपद उन पाँच सो भिक्खुवों के संदर्भ मे कहा |  पाँच सो भिक्खु भगवान बुद्ध को साथ देकर गाव से जेतवन मठ पहुँचे | शाम को , जब भिक्खु उस यात्रा के बारे मे बात कर रहे थे , मुख्य तोर से जमीन की रचना , क्या वह समतल या पहाड़ी थी , या धरती मट्टी युक्त थी या रेत , लाल या काली , इत्यादि | बुद्ध उनके पास आये , उनके बातचीत का विषय पता था , उन्होंने उनसे कहा , " भिक्खुवों , पृथ्वी जिसकी बात कर रहे हो वह शरीर से बाहर है , अच्छा होगा अगर तुम अपने खुद के शरीर का परीक्षण करो और ध्यान लगाने के लिए तैयारी करो |  तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " कौन पृथ्वी ( शरीर ) का परीक्षण करेगा , यम जगत और मनुष्य जगत और देव लोक मिला के  ?  कौन परीक्षण करेगा इस अच्छे से बताये सदाचारी धर्म ( धम्मपद ) जैसे माहिर माली फूलों को चुनता है  ? " " अरिया सेखा पृथ्वी ( शरीर ) का परीक्षण करेगा , यम जगत के साथ मनुष्य जगत और देव जगत | अरिया सेखा इस अच्छे से बताये सदाचारी धर्म ( धम्मपद ) का परिक्षण करेगा जिस तरह माहिर माली फूलों को चुनता है 

धम्मपद ९८ खदिरावनियारेवताथेरा वठु

थेरा रेवता की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे , यह धम्मपद कहा , एकेसिय वन के थेरा रेवता के बारे मे कहा |  रेवता प्रमुख शिष्य सारिपुत्त का छोटा भाई था | वह केवल अकेला भाई था , सारिपुत्त के भाई और बहनों मे जिसने अपना घर और गृहस्थ जीवन त्याग नही किया था | उसके माता पिता उसकी शादी के लिए चिंतित थे | रेवता केवल सात वर्ष का था जब उसके माता पिता ने उसके शादी के लिए लड़की चुनी | शादी के रसम निभाते समय उसके रिश्तेदारों ने उससे पुछा के तुम चाहोगे न की तुम्हारी पत्नी तुम्हारी नानी की उमर तक तुम्हारा साथ निभाये | जब उसने उसके नानी को देखा जो १२० साल आयु की थी तो उसने सोचा के क्या उसकी पत्नी इतनी बुढ़ी हो जाएगी , उसको अहसास हुवा के सारे जीवित प्राणी क्षय और वृद्ध होते है | वह घर से भाग गया और सीधे मठ मे चला गया , जहा तिस भिक्खु रहते थे | उन भिक्खुवों से भंते सारिपुत्त ने विनंती की थी के उसका छोटा भाई मठ मे आये तो उसे श्रामणेर बना दिया जाये | उसके अनुसार उसको श्रामणेर बनाकर सारिपुत्त को बताया गया |  श्रामणेर रेवता ने उन भिक्खुवों से विपस्सना साधना सिखी और एकेसिय वन मे चला गया , जो ३० योज

धम्मपद ५६ महाकस्सप थेरा वठु

थेरा महाकस्सप की कहानी |  जब भगवान बुद्ध वेळुवन मठ में रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा महाकस्सप के संधर्भ में कहा |  निरोधसमापति से निकालके थेरा महाकस्सप राजगृह नगर के गरीब रहने वाले इलाके मे भिक्षा के लिए गया | उसका उद्देश्य केवल इतना था के वह गरीब लोगों को पुण्य पाने का मौका दे रहा था , जो के निरोधसमापति साधना से जगे इंसान को भिक्षा मे दान देने से मिल सकता है | सक्का जो देवों का राजा है , उसने चाहा के वह थेरा महाकस्सप को भिक्षा में दान करके पुण्य कमाये , वह अपने पत्नी सुजाता के साथ राजगृह नगर गरीब जैसे वेशभूषा करके आया | थेरा महाकस्सप उनके द्वार रुका , गरीब जैसे कपडे पहने सक्का ने महाकस्सप का पात्र लेकर उसमे चावल और सब्जी परोसी , और स्वादिष्ट आहार की महक सारे नगर में फैली | तब थेरा महाकस्सप को अहसास हुवा के यह मामूली आदमी नही हो सकता , तब उसे यकीन हुवा के वह दरअसल देवों का राजा सक्का है | सक्का ने स्वीकार किया और कहा के वह भी बहुत गरीब था उसके पास कोई अवसर नही था जिससे वह किसी को भी कुछ दान कर सके बुद्ध के समय में | ऐसा कह के सक्का और उसकी पत्नी सुजाता ने आदर जताकर निकल गए |  बु