धम्मपद ५ कलयखिनी वठु

कलयखिनी  की कहानी | 

यह कहानी तब की है जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ मे ठहरे हुवे थे | यह धम्मपद भगवान बुद्ध ने उस बांझ स्त्री के संदर्भ मे कहा जिसकी एक दूसरी स्त्री से शत्रुता अनेक जम्नो तक रही | 

तब एक श्रावस्ती नगर में एक गृहस्त था जिसकी पत्नी बांझ थी | तब उसने दूसरे स्त्री से शादी की |  शत्रुता तब शुरू हुवी जब बड़ी पत्नी ने उस नयी पत्नी का गर्भ गिराया | जो बाद में संतान को जन्म देते वक़्त मर गयी | बाद के जन्म में वो दोनों मुर्गी और बिल्ली बनी | ऐसे शत्रुता निभाते हुवे वे दोनों उसके अगले जन्मो में कबूतर और तेंदुवा बनी | वे एक दूसरे के बच्चे जन्म लेकर मार डालते थे क्योंकि उनके मन में प्रति शोध की भावना चलती आ रही थी |  फिर बाद के जन्म में उसने श्रावस्ती के कुलीन घर में बेटी के तोर पर जन्म लिया | और दूसरी ने नरभक्षक काली के नाम से जन्म लिया | नरभक्षिणी कलयखिनी उस स्त्री और उसके बच्चे को मार डालने पर तुली हुवी थी | तब उस कुलीन स्त्री को पता चला के बुद्ध भगवान पास के श्रावस्ती नगर में मठ में बुद्ध धम्म का प्रवचन कर रहे है | तब वह कुलीन स्त्री बच्चे को लेकर भगवान बुद्ध के पास खुद का और बच्चे का बचाव करने के लिए भाग पड़ी और बच्चे को भगवान बुद्ध के पैरो के नझदीग रखा | मठ के बाहर द्वार की रक्षा करने वाले देव ने नरभक्षणी को रोके रखा | 
बाद में बुद्ध भगवान ने दोनों को बुलाया और शब्दों से फटकार लगाई |  
भगवान बुद्ध ने दोनों को बाद में उनसे कहा की किस तरह वह पूर्व जन्म में एक ही पति की बीविया थी और किस तरह उनमे वैर उत्पन्न होकर अनेक जन्मो तक एक दूसरे का बदला लेती रही | भगवान बुद्ध ने बताया की किस तरह उनके अंदर का वैर , घृणा और प्रति शोध की भावना और जादा घृणा और वैर निर्माण करेगी और ऐसा ही चलता रहेगा | उनको अहसास कराया की प्रति शोध की भावना घृणा उत्पन्न करती रहेगी | इसका निवारण केवल मैत्री , समझदारी और सदभावना से हो सकता है | 

तब भगवान बुद्ध ने कहा 
" दुनिया में घृणा , घृणा से कभी समाप्त नही हो सकती  | उसका निवारण केवल दया , प्रेम अथवा क्षमा भावना से किया जा सकता है  | यह प्राचीन नियम है  | "

आखिर मे वह नरभक्षिणी सोतापन्न हुवी | और इस तरह उन दोनों स्त्रियों का जन्मो जन्मो का वैर ख़तम हो गया | 

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