धम्मपद ७७ अस्सजिपुनब्बसुका वठु

भिक्खु अस्सजी और पुनब्बसुका की कहानी |

जेतवन मठ में जब भगवान बुद्ध रुके हुवे थे तब उन्होंने यह धम्मपद भिक्खु अस्सजी और पुनब्बसुका के संदर्भ में कही |

भिक्खु अस्सजी और पुनब्बसुका उनके पांच सो शिष्य भिक्खुवों के साथ कीटगिरी गांव में रह रहे थे |  तब उन्होंने फूल पौधे और फल वृक्ष लगाकर आमदनी शुरू की | जो की भिक्खु के लिए बनाये गये मुलभूत नियमों का उल्लंघन कर रहा था |

जब बुद्ध को पता चला तब उन्होंने अपने दो प्रमुख भिक्खु सारिपुत्त और मोग्गल्लाना को वहा जाकर उनको दुराचार रोकने को कहा | 
बुद्ध ने अपने प्रमुख भिक्खु शिष्यों से कहा " उन दो भिक्खुवों को उपासको की श्रध्दा और उदारता की हानि अपने दुराचार से न करने  को कहे  , अगर कोई मानने से इनकार करे तो उनको मठ से बाहर करे , मैने जो कहा वैसे करने में संकोच न करे , केवल मुर्ख व्यक्तियों को ही अच्छी सलाह और बुराई से मना करना पसंद नहीं आता  | "

तब भगवान् बुद्ध ने धम्मपद कहा  |

" प्रज्ञामय व्यक्ति ने दुसरो को सलाह देनी चाहिए , उसने दुसरो को बुरा करने से रोकने के लिए चेतावनी और सलाह देनी चाहिए , ऐसा व्यक्ति अच्छे लोगों का प्रिय बनता है , उसे केवल बुरे व्यक्ति अप्रिय समझते है  | "

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