अष्टांग मार्ग और चार आर्य सत्य

आर्यसत्य चार हैं -

(1) दुःख : संसार में दुःख है  |

(2) समुदय : दुःख के कारण हैं, दुःख का कारण है आसक्ति या तृष्णा।

(3) निरोध : दुःख के निवारण  हो सकते है  |

(4) मार्ग : निवारण के लिये अष्टांगिक मार्ग हैं।

१. सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य को जानना और उसको समझ जाना | कोई भी घटना होती है तो मन उसे अलग अलग नज़रिये से प्रभावित हो सकता है | लेकिन उसे चार आर्य सत्य पर तोलने से पता चलता है के आसक्ति ही दुःख का कारन है न की कोई घटना होती है | 

२. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना | अपनी गलत आदते सुधारना | 

३. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ न बोलना | व्यर्थ की बात न करना | कटु वचन न बोलना , किसी का दिल न दुखाना | बोलने मे समय व्यर्थ न करना | 

४. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्म न करना | नशीली पदार्थ का सेवन न करना | 

५. सम्यक आजिविका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना | मांस का व्यापार न करना | हत्यार का व्यापार न करना | जहर न बेचना | किसी का भी शोषण न करना | इंसान बेचने खरीदने का काम न करना | कमाई से किसी का या खुद का बुरा न हो | नशीली पदार्थ और दारू , खुटका , तंबाखु जैसी चीजों का व्यापार न करना | 

६. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना | निरंतर अपने मन को परखना | 

७. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना |

८. सम्यक समाधि : नियमित विप्पसना साधना करना |  निर्वाण पाना और स्वयं का मुक्त होना | 

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