धम्मपद ८३ पंचसतभिक्खु वठु , धम्मपद २३१ , २३२ , २३३ , २३४ छब्बाग्गीय वठु
पाँच सो भिक्खुवों की कहानी | जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने पाँच सो भिक्खुवों के संदर्भ मे कहा | वेरंज गाव के ब्राह्मण के विनंती करने पर बुद्ध और उनके पाँच सो भिक्खु वेरंज गाव मे आये थे | जब वे वेरंज आये थे ब्राह्मण उनकी देख भाल करना भूल गया | वेरंज के लोग उस समय सूखे का सामना कर रहे थे , इसलिये वे भिक्खुवों को बहुत कम खाना दे पा रहे थे जब भी वे भिक्षा मांगने जाते | इन सब मुसीबतों के बावजूद उन्होंने अपना दिल छोटा नही किया , वे उन बासी चनों से संतुष्ट थे जो घोड़े के व्यापारी उनको भिक्षा मे दे रहा था | वसा के समाप्ति पर , वेरंजा के ब्राह्मण को बता के , बुद्ध अपने पाँच सो शिष्यों के साथ जेतवन मठ वापस चले गए | सावत्थी के लोगों ने उनका फिरसे स्वागत किया और हर प्रकार के भोजन खाने के लिए परोसा | कुछ लोगो का समूह जो भिक्खुवों के साथ रह रहे थे , भिक्खुवों के खाने के बाद जो बचता वह खाते थे | और लालच से भुक्कड़ की तरह खाते और सो जाते | जब वे जागते तो शोर मचाते , गाते और नाचते , ऐसे खुद को बहुत चिढ़ उत्पन्न करते | जब भिक्खु शा...