संदेश

धम्मपद ५१ , ५२ छत्तापानी उपासक वठु

छत्तापानी गृहस्थ उपासक की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ में ठहरे हुवे थे तब उन्होंने यह धम्मपद गृहस्थ उपासक छत्तापानी और कोसल के राजा पसेनदी की दो पत्नियों के संदर्भ में कहा |  सावत्थी नगर में छत्तापानी जो अनागामी था वह रहता था | एक समय छत्तापानी बुद्ध के यहा जेतवना मठ में रुककर आदरपुर्वक और ध्यान देकर धम्म प्रवचन सुन रहा था , तब राजा पसनदी भी वहा आया | तब छत्तापानी अपने आसन से उठा नही क्योंकि उसने ऐसा करने से ऐसा लगेगा की वह बुद्ध को मान न देते हुवे पसनदी को मान दे रहा है | राजा को वह अपमान लगा और आघात महसुस हुवा | बुद्ध को बिलकुल सही महसुस हुवा के राजा को कैसा लग रहा है , इसलिए बुद्ध ने छत्तापानी के बारे मे कुछ तारीफ के शब्द कहे , जिसे धम्म का अच्छा ज्ञान था और अनागामी बन चुका था | यह सुनकर राजा प्रभावित हुवा छत्तापानी के और उसके पक्ष झुक गया |  जब वह अगले समय छत्तापानी से मिला , राजा ने छत्तापानी से कहा , तुम बहुत विद्वान हो , क्या तुम कृपा करके महल आके मेरे दो पत्नियों को धम्म उपदेश सिखावोगे ?  छत्तापानी ने...

धम्मपद ६४ उदयी थेरा वठु

उदयी थेरा की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद मिथ्याभिमानी भिक्खु थेरा उदयी के संधर्भ मे कहा |  थेरा उदयी अक्सर उस आसन पर बैठ जाता जिसपर विद्वान भिक्खु प्रवचन देते थे | एक समय , एक भेट देने वाले भिक्खु , उसको बहुत विद्वान भिक्खु समझकर , उससे पंच तत्वों के बारे मे पूछा | थेरा उदयी जवाब नही दे सका , क्योंकि उसको धम्म के बारे मे कुछ पता ही नही था | तब उन भिक्खुवों को बहुत आच्छर्य हुवा ये जानकर के बहुत जादा समय तक बुद्ध जिस मठ मे रहते है उस मठ मे रहकर भी थेरा उदयी पंच तत्व और अयातन के बारे मे कुछ नही जानता था |  उनको भगवान बुद्ध ने कहा |  " एक मुर्ख , अगर वह बुद्धिमान के साथ पुरी जिंदगी भी रहे , धम्म को नही जान पाता , उसी तरह जैसे चमच शोरबे का स्वाद नही जान पाता  | "

धम्मपद ६१ महकस्सप थेरा सद्विविकारिका वठु

थेरा महकस्सप के रहिवासी छात्र की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा महाकस्सप के उस रहिवासी छात्र के बारे मे कही |  जब थेरा महकस्सप राजगृह नगर के पास रह रहे थे , उसके साथ दो जवान भिक्खु रह रहे थे | उनमे से एक थेरा महकस्सप से आदरयुक्त , आज्ञाकारी , कर्तव्य परायण था , लेकिन दूसरा नही था |  जब थेरा महकस्सप को दूसरे को डाटा क्योंकि वह अपने कर्तव्यों को निभाने मे सुस्त था , तब उसने बहुत अपमान महसूस किया |  एक मोके पर वह गृहस्थ के घर गया जो थेरा महकस्सप का शिष्य था , और उससे झूठ बोला के महाकस्सप बीमार है | तब उसे उसके मनचाहा खाना मिला ले जाने के लिए , लेकिन उसने वह खाना बिच रास्ते मे ही खुद खा लिया |  जब थेरा महकस्सप को इस कृत्य के लिए उसे डाटा तब वह बहुत क्रोधित हुवा | अगले दिन जब थेरा महकस्सप भिक्षा मांगने बाहर पड़े तो वह मुर्ख जवान भिक्खु वही ठहरा , उसने बर्तन और बाकी सामान तोडा और मठ को आग लगा दी |  जब राजगृह के भिक्खुवों ने बुद्ध को यह बताया , तब बुद्ध ने कहा अगर थेरा महाकस्सप अक...

धम्मपद १६ धम्मिका उपासक वठु

धम्मिक उपासक की कहानी |  जब बुद्ध सावत्थी नगर के जेतवन मठ में रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद गृहस्त उपासक धम्मिक के संदर्भ मे कहा |  एक समय सावत्थी नगर में धम्मिक नाम का गृहस्थ उपासक रहता था ,वह सदगति और दान धर्म मे उत्सुक रहता | उसने उदारता से नियमित भिक्खुवों को खाना और अन्य जरूरी चीजें दान की और खास मोके आने पर भी | वह दरअसल सावत्थी नगर के पाँचसो गृहस्थ अनुयायियों में बुद्ध के लिए अग्रणी था | धम्मिक को सात बेटे और सात बेटिया थी , वे सब अपने पिता की तरह गुण वान और दान धर्म के लिए तत्पर रहते | जब धम्मिक बहुत बीमार था तब उसने बौद्ध संघ से विनंती की के वे उसके यहा आकर बुद्ध धम्म के पवित्र वचन उसके यहा कहे जब वह मरने की कगार पर था | जब भिक्खु महा सरिपट्ठाना सूत्र का जप कर रहे थे , छह आकाशीय जगत के छह सजे हुवे रथ आये उसे अपने अपने जगत का न्योता देने | धम्मिक ने उन्हें ठहरने के लिए कहा ताकी सूत्र जप में बाधा न आ सके | भिक्खुवों को लगा उसने उन्हें ही रुकने कहा है इसलिये उन्होंने पठन रोक कर उस जगह से चले गए |  थोडे समय बाद धम्मिक ने उस...

धम्मपद १८ सुमनदेवी वठु

सुमनदेवी की कहानी |  भगवान बुद्ध जब जेतवन मठ मे सावत्थी नगर में रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद अनाथपिण्डिक के सबसे छोटे लड़की के संदर्भ में कहा |  सावत्थी नगर में अनाथपिण्डिक और विशाखा के घर हर रोज दो हजार भिक्खुवों को खाना दिया जाता था | विशाखा के घर खाने की देखरेख उसकी पोती करती थी | अनाथपिण्डिक के घर खाने की देखरेख उसकी पहले सबसे बड़ी लड़की करती थी , बाद में दूसरी बड़ी बेटी फिर आखिर में सुमनदेवी | दो बड़ी बेटिया धम्म प्रवचन सुनकर सोतापना बनी , भिक्खुवों को खाना परोसने का और अच्छा काम करके सुमनदेवी सकदगामी बनी |  तीनो बेटियों के विवाह कर दिये गए | बाद मे सुमनदेवी बिमार पडी और पिता को पुकारने लगी | जब उसके पिता आये उसने कहा ' छोटा भाई ' फिर गुजर गयी | उसके ऐसे कहने से अनाथपिण्डिक अचरज में था और वह परेशान रहा , सोच रहा था के बेटी बेहोश थी और ठीक मानसिक स्थिति मे नही थी जब वह मर गयी थी | इसलिए उसने बुद्ध से मुलाकात की और बेटी के मृत्यु का समाचार सुनाया | तब भगवान बुद्ध ने उस कुलीन अमिर आदमी से कहा के उसकी बेटी सही मानसिक स्थिति और पुरी तरह से होश मे थी जब वह गुज...

धम्मपद ७ , ८ महाकालाथेरा वठु

थेरा महाकाल की कहानी |  जब बुद्ध सेतब्य गाव के नजदिग रह रहे थे , तब उन्होंने यह धम्मपद थेरा महाकाल और उसके भाई कुलकाल के संदर्भ मे कही |  महाकाल और कुलकाल दो भाई सेतब्य गाव के व्यापारी थे , एक समय जब अपने व्यापार के लिए जब वह यात्रा कर रहे थे , उनको बुद्ध ने दिये प्रवचन सुनने का मौका मिला था | प्रवचन सुनने के बाद महाकाल ने भगवान बुद्ध से भिक्खु संघ में शामिल होने की अनुमति चाही | कुलकाल भी भिक्खु संघ मे शामिल हुवा लेकिन उसका उद्देश्य था के वह उसके भाई को साथ लेकर बाहर आ सके |  महाकाल गंभीरता से समाधि तपस्या मे अभ्यास करता था और ख़ुशी से क्षय और अस्थिरता पे ध्यान करता रहा | आखिरकार उसको अंतर्दृष्टि हुवी और अरहंत बन गया |  बाद में बुद्ध और उनके शिष्य , दोनों भाई मिलकर , सिमसप वन में ठहरे थे , सेतब्य गाव के पास | जब वह ठहरे हुवे थे कुलकला के पूर्व पत्नियों ने बुद्ध और उनके शिष्यों को घर पे बुलाया | कुलकाला खुद आगे गया बुद्ध और उनके शिष्यों के लिए आसन व्यवस्था करने को | वहा पहुँचते ही पुर्व पत्नियों ने कुलकाला को गृहस्थ के क...

धम्मपद २६ , २७ बालनक्खत्तयसङ्घुट्ठा वठु

बालनक्खत्ता त्योवहार की कहानी |  बुद्ध जब जेतवन मठ रह रहे थे तब उन्होंने बालनक्खत्ता त्योवहार के संदर्भ में यह कहा |  एक समय , बालनक्खत्ता त्योवहार सावत्थी नगर में मनाया जाता था | त्योवहार के दौरान , बहुत सारे नौजवान गाय का गोबर और राख शरीर पर पोतकर शहर में घूमते हुवे चिल्लाते और लोगों में चिढ लाते | वे दूसरे लोगो के दरवाजे भी रुकते और तभी चलते बनते जब तक पैसे नही मिलते |  उस समय सावत्थी में भगवान बुद्ध के कही सारे महान अनुयायी रहते थे , इन उपद्रवी मुर्ख नौजवानों को देखकर बुद्ध को समाचार भेजा , बुद्ध से विनंती की के वह सात दिन तक मठ में ही रुके और तब तक सावत्थी मे प्रवेश न करे | उन अनुयायी लोगो ने मठ में खाना भेजा और वे खुद भी अपने घर रुके रहे | आठवे दिन जब त्योवहार ख़तम हुवा , बुद्ध और उनके शिष्यों को नगर में भिक्षा में खाना खाने के लिए और दूसरे दान प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया गया | जब उन युवकों के अशिष्ट और लज्जास्पद व्यवहार के बारे मे जब बताया गया , तब बुद्ध ने टिपणी की के मुर्ख और अज्ञानी मे लज्जास्पद व्यवहार करने का स्वभाव होता है |  तब बुद्ध ...