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जातक कथा संग्रह

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मेहनत न करने का फल  एक किसान था ।  वह खेती करने के लिए दो बैल पालता था । वह बैल खेती में बड़ी मेहनत करते थे । पर किसान उन दोनों का  कुछ खास ख़याल नहीं रखता था । उन दोनों के लिए बस कुछ सुखी घास डालता था । बहुत दिन ऐसे ही बिताने के बाद एक बैल दूसरे से बोला | " हम इतनी मेहनत करते है और किसान हमें खाने के लिए सिर्फ कुछ सुखी घास और रहने के लिए यह गंदी सी जगह का ही इंतज़ाम कर पाया है । मैं तो इस फ़िजूल की मेहनत से परेशान हो गया हुं ।  हम दोनों से अच्छा तो उस किसान के सुवर है जो बिना कुछ किये दिन रात बहुत दिनों से अच्छा खाना खा रहे है । किसान उनका कितना ख्याल रखता है । " यह बात सुनकर दूसरे बैल ने उसे कुछ दिन और रुकने के लिए कहता है । एक दिन किसान घर जल्दी आ जाता है । उसके साथ कुछ मेहमान भी होते है । दरअसल किसान उनको अपनी बेटी के लिए रिश्ता तय करने के लिए घर बुलाता है । रसोई घर में महिलाये जोरो से काम की तैयारी कर रही होती  है । कुछ ही देर में किसान बाहर आता है और सुवरो को मुक्त करके उनका गला काट देता है । यह सारी घटना देखकर बोधिसत्व बैल पहले से कहता है "मैंने तुम्हे

राजकुमार सिद्धार्थ की कहानी

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भिक्षु बनने के पहले भगवान बुद्ध शाक्य कुल के राजकुमार थे ।  उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था । उनकी माँ महामाया नेपाल देश के एक राज्य में कोलिय कुल की राजकुमारी थी । उनका विवाह राजा शुद्धोदन से हुवा था । ये दोनों कुल के लोग सिर्फ एक दूसरे के कुल में ही विवाह करते थे क्योंकि वे राज घराने के सदस्य थे । शुद्धोधन के राज्य की राजधानी  कपिलवस्तु नाम से जानी जाती थी । राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म से पूर्व रानी महामाया ने एक सपना देखा था । उस सपने में उन्होंने एक सफ़ेद हाथी देखा और उस सपने में मधुर संगीत भी था और सुन्दर नृत्य घटित हो रहा था ।  उस सपने का अर्थ दारर्शनिक विद्वानों ने सकारात्मक बताया था । दरअसल उनके सपने में देव दूत सुमेध आये थे जो उनके द्वारा जन्म लेने के लिए अनुमति पाने के लिए विनंती कर रहे थे  ऐसी मान्यता है । सपने का अर्थ जानने के बाद रानी महामाया बहुत खुश हुई थी । जब जन्म देने का समय बहुत नजदिग आ गया था तब रानी महामाया ने रीती अनुसार राजा शुद्धोधन से अपने पिता के घर जाने की अनुमति चाही । राजा उन्हें रोकने की कोशिश की क्योंकि समय काफी बित चुका था । पर राजा उन्हें रोक नहीं सके । रान

धम्मपद हिंदी में

दुनिया का कोई भी शत्रु इतनी हानि हमें नहीं कर सकता , जितना के मन में बैठे तृष्णा , नफ़रत और ईर्ष्या । हमारे अस्तित्व का सारा सार निर्भय होने में ही है । निडर रहो , हमारा क्या होगा इसकी चिंता छोड़ दो , किसी पे निर्भर न रहो । तभी तुम असली अर्थो में मुक्त कहलाओगे । सेहत सबसे बड़ा उपहार है , संतुष्टि सबसे बड़ी दौलत , विश्वास ही सबसे बड़ा रिश्ता है। किसी पर बस इतने के लिए भरोसा मत करो क्योंकि तुमने सुना है , सहज मत मान लो क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है , विश्वास न करो क्योंकि बहुत लोग कह रहे है और अटल है , इसलिए नहीं मानो क्योंकि पवित्र ग्रंथो में लिखा है , बस इसलिए ही नहीं मानो क्योंकि शिक्षक , उच्च पदस्थ बड़े या होशियार लोग कहते है , विश्वास तभी करो जब तुम खूबी से निरीक्षण और चिंतन मनन करो और वह तुम्हारे तर्क पर उतरकर मान्य होकर सभी के लिए लाभकारी हो । जो हर एक जीवन में , खुद में ,और दूसरे सजीवों में और इसके विपरीत भी , एक जीवता का अनुभव करता है , वह हर चीज विपक्ष भाव से देखता है । एक बार एक इंसान ने भगवान बुद्ध से जीवन का मूल्य पूछा तो भगवान ने कहा " जीवन का कोई विशेष मूल्य नहीं है

बुद्ध का मध्यम मार्ग

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बहुत सालों तक बुद्ध होने से पहले सिद्धार्थ किसी साधू की तरह रहे । भूखे रहकर समय बिताया । वे किसी रहने की जगह बिना , और बिना माथे पे छत के रह रहे थे । जब तक उनका सुंदर धष्ट पुष्ट शरीर एक काले , बारीक़ और करीब करीब मरने के नजदिग आ गया । एक दिन बुद्ध बोधी वृक्ष के नीचे नदी किनारे ध्यान कर रहे थे ,  नदी के उस पार एक मछुवारा अपने बेटे को संतूर वाद्य की लय बजाना सिखा रहा था । मछुवारेने अपने बेटे से कहा  " अगर तुमने संतूर की तार बहुत ज्यादा कसी तो वह टूट जाएगी , और बहुत जादा ढीली कसी तो बज ही नहीं पायेगा । अगर तुमने तार  सही तरह से योग्य मात्रा में तान कर लगाया तो वह बहुत मधुर संगीत बजा सकेगा । " मछुवारे का यह कहना सुनकर सिद्धार्थ के समझ में आया के जीवन को सुखी और सुंदर बनाने के लिए जीवन के तार नही बहुत कसे हुवे और नही बहुत ढीली होने चाहिए । अलग शब्दों में नहीं बहुत अधिक अमिर या बहुत गरीब , नही अधिक भूखा या बहुत भरे पेट रहना जीवन को ठीक है । जीवन को सुखी बनाने के लिए मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए ।